ठोसों में दोष
- ऐसे अनेकों क्रिस्टल हैं जो घटक कणों की व्यवस्था में परिपूर्णता की अनुपस्थिति को दर्शाते हैं उनको दोष या अपरिपूर्णतायें कहते हैं।
- कभी-कभी इन दोषों को ऊष्मागातिकी दोष भी कहते हैं। क्योंकि यह दोष वस्तु के ताप पर निर्भर करते हैं। क्रिस्टलों में कुछ अन्य दोष भी पाये जाते हैं जो कि उसमें उपस्थित अशुद्धता के कारण होते हैं।
- अपरिपूर्णता या दोष न केवल ठोसों के गुणों को बदल देते हैं बल्कि कुछ नए गुण भी उत्पन्न कर देते हैं।
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इलेक्ट्रॉनिक दोष-
इलेक्ट्रॉन हमेशा पूर्णपूरित निम्न ऊर्जा अवस्था में रहता है लेकिन जैसे-जैसे तापमान बढ़ता हैं इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर में पहुँच जाता है वो किस ऊर्जा स्तर में जायेगा, इसका मान तापमान पर निर्भर करता है।
उदाहरण : शुद्ध Si या Ge के क्रिस्टल में इलेक्ट्रॉन ऊष्मीय आधार पर मुक्त होते हैं। जैसे-जैसे तापमान 0K से बढ़ाते है इलेक्ट्रॉन सहसंयोजक बंध तोड़कर बाहर निकल जाते हैं। यह इलेक्ट्रॉन क्रिस्टल में कहीं भी गति करने के लिए मुक्त होते हैं व इनके कारण विद्युत का चालन भी होता है। इस प्रकार की चालकता अन्तरकाशी चालकता कहलाती है।
इलेक्ट्रॉन मुक्त होने के कारण इलेक्ट्रॉन न्यून बंध बनता हैं जिसे छिद्र कहते हैं। विद्युत क्षेत्र की उपस्थिति में ये छिद्र, इलेक्ट्रॉनों के गमन की विपरीत दिशा में संचरण करते हैं जिनके कारण विद्युत का चालन होता है।
(II) परमाण्विक दोष –
वह दोष जो आयनों या परमाणुओं के अव्यवस्थित ढंग से जमाये जाने के कारण होता है परमाण्विक दोष कहलाते है। यदि दोष जालक बिन्दुओं की कमी के कारण उत्पन्न होता है तो इसे बिन्दु दोष कहते हैं।

रससमीकरणमितीय दोष :
वे यौगिक जिसमें धनायन तथा ऋणायन की संख्या का अनुपात निश्चित होता है। रससमीकरणमितीय यौगिक कहलाते हैं, जैसे NaCl(1:1)(a) रिक्त स्थान दोष -क्रिस्टल के कुछ जालक बिन्दु जब रचक घटक नहीं रखते अर्थात् रचक घटक रहित होते हैं तो यह दोष रिक्त स्थान दोष कहलाता है। यह दोष क्रिस्टल को गर्म करने पर उत्पन्न होता है।
इस दोष के कारण क्रिस्टल का घनत्व कम हो जाता है ।
(b) अन्तराकाशी दोष (Inter tial defect)-जब जालक बिन्दुओं के मध्य अन्तराकाशी स्थान (space) में भी कुछ
रचक घटक अतिरिक्त (extra) आ जाते हैं तो यह दोष अन्तराकाशी दोष कहलाता है। यह दोष क्रिस्टल पर उच्च
दाब आरोपित करने से उत्पन्न हो जाता है। इस दोष के कारण क्रिस्टल के घनत्व में वृद्धि हो जाती है।
रचक घटकों के मध्य का रिक्त स्थान अन्तराकाशी स्थान कहलाता है। इसमें उपस्थित कण अन्तराकाशो कण कहलाते हैं।
आयनिक क्रिस्टल में यह दो प्रकार के होते हैं-
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शॉट्की दोष:
जब किसी जालक में एक धनायन तथा ऋणायन अनुपस्थित होता है तो आयनिक यौगिक के क्रिस्टल जालक में दो छिद्र उत्पन्न हो जाते हैं अतः आयनिक क्रिस्टल में धनायन की रिक्ति के साथ एक ऋणायन की भी रिक्तियाँ होती है। इस प्रकार के दोष युग्मित रिक्ति या शौट्की दोष कहलाते हैं।
- शॉट्की दोष उच्च सहसंयोजी संख्या वाले आयनिक यौगिकों में तथा जिनमें धनायन व ऋणायनों का आकार लगभग समान होता है, में पाया जाता है।
- क्रिस्टल में शॉट्की दोष की उपस्थिति से घनत्व घटता है।
उदाहरण :NaCl, KCI,CSCI, KBr आदि.
(ii) फ्रेन्कल दोष :
क्रिस्टलों में इस प्रकार के दोष तब उत्पन्न होते हैं, जब कोई आयन अपने नियत लैटिस बिन्दु से हटकर अन्तराकाशी रिक्ति में अपना स्थान बना लेता है। अत: लैटिस बिन्दु पर रिक्ति हो जाती है।
- आयनों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
- यह दोष कम समन्वयन अंक वाले क्रिस्टलों में पाया जाता है |
- इन क्रिस्टलों में धनायन का आकार ऋणायन की अपेक्षा छोटा होता है।
- यह दोष ZnS, AgCI, AgBr, Agl आदि क्रिस्टलों में पाया जाता है।
(1) अरससमीकरणमितीय यौगिकों के दोष :
ऐसे कई प्रकार के यौगिक हैं। जिनमें धनात्मक तथा ऋणात्मक आयनो की संख्या रासायनिक सूत्र द्वारा निर्देशित अनुपात में नहीं होती है। इस प्रकार के यौगिक अरससमीकरणमितीय यौगिक कहलाते
हैं। उदाहरण : Vo, जहाँ x, 0.6 से 1.3 के बीच हो सकता है। इन यौगिकों में धनात्मक
तथा ऋणात्मक आवेशों का संतुलन अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनों या अतिरिक्त
धनात्मक आवेश द्वारा बनाये रखा जाता है जिससे वैद्युत उदासीनता भी बनी रहती है।
इस आधार पर यह दोष निम्न प्रकार का है :
i) धातु आधिक्य दोष :
ऋणायन रिक्ति के कारण धातु आधिक्य दोष : किसी जालक में से ऋणात्मक आयन लोप हो जाने पर तथा उसके स्थान पर वैद्युत उदासीनता को बनाये रखने के लिए एक इलेक्ट्रॉन आ जाता है।
इन छिद्रों को इलेक्ट्रॉनों द्वारा भरा जाता है इसलिए इन्हें F-केन्द्र भी कहते हैं तथा यौगिक के रंग के लिए उत्तरदायी होता है।
उदाहरण :
(1) NaCl में Na के आधिक्य के कारण क्रिस्टल पीला दिखाई देता है।
(ii) KCI में K के आधिक्य के कारण क्रिस्टल बैंगनी दिखाई देता है।
(ii) LiC1 में Li के आधिक्य के कारण क्रिस्टल गुलाबी दिखाई देता है।
जितने अधिक F-केन्द्र होगें रंग की तीव्रता उतनी ही अधिक होगी। इस प्रकार का दोष उन क्रिस्टल में पाया जाता है जिनमें शॉट्की दोष होता है। अन्तराली धनायन के कारण धातु आधिक्य दोष : जालक में एक अतिरिक्त धनात्मक आयन अंतराली स्थिति पर आ जाने पर उत्पन्न होता है। यदि यह अन्तराली स्थिति में उपस्थित इलेक्ट्रॉन वैद्युत उदासीनता को बनाये रखता है। इस प्रकार का दोष फ्रेन्कल दोष द्योतक है।
उदाहरण : Zns का पीला रंग।
अन्तराली धनायन के कारण धातु अधिक्य दोष
(ii) धातु न्युनता दोष
धनायन रिक्ति के कारण धातु न्युनता : इस प्रकार के दोष में एक धनायन अपने जालक से लुप्त होता है और आवेश संतुलित किसी धनायन के उच्च संयोजकता स्तर तक आक्सीकरण से होता है; यह आक्सीकरण धनायन प्राप्त करने से नहीं होता है। इस प्रकार जालक में धातु परमाणु की कमी रहती है।
धनायन रिक्ति के कारण धातु न्यूनता दोष इस प्रकार के दोष के उदाहरण FeO, FeS, NiO तथा TiO हैं। धातु में ऋणायन रिक्ति के कारण धातु न्यूनता : इस प्रकार का दोष अन्तराकाश में अतिरिक्त ऋणायन की उपस्थिति के कारण होता है। वैद्युत उदासीनता धनायन के अतिरिक्त आवेश द्वारा बनी रहती है।
चूँकि ऋणायन सामान्यतः आकार में बड़े होते हैं इसलिये अन्तराकाश में उनका होना सम्भव नहीं है। इसलिये इस प्रकार के दोष वाला कोई भी क्रिस्टल अभी तक ज्ञात नहीं है। दोष युक्त क्रिस्टल उपयोगी कार्यों के लिये प्रयोग में लाया जाता है जैसे- सेमी-सुचालक, उत्प्रेरण तथा संक्षारण आदि।