विलेयता | वाष्प दाब | हेनरी का नियम |

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विलेयता

(1) ठोसो की द्रवों में विलेयता

किसी पदार्थ की विलेयता ग्राम में ठोस की वह अधिकतम मात्रा होती है जिसे विशेष तापमान पर संतप्त विलयन बनाने के लिए 100 ग्राम दल (विलायक) में घोला जा सकता है।

द्रवों में ठोस की विलेयता को प्रभावित करने वाले कारक:

विलेय और विलायक की प्रकतिः

ठोस की द्रवों में विलेयता विलय और विलायक की प्रकति के अनुसार “समान-समान को घोलता है” सिद्धांत का अनुसरण करती है। ध्रुवीय यौगिक (आयनिक) जैसे NaC1 पानी की तरह ध्रुवीय विलायक में घुलता है।अधुवीय (सहसंयोजक या कार्बनिक) यौगिक अधुवीय विलायक में घुल जाते हैं जैसे एंथासीन बेंजीन में घुल जाता हैं। 

ताप का प्रभावः

विलायक में विलेय की विलयता हमेशा गतिक साम्य का अनुसरण करती है। यह साम्य पर ताप में बदलाव के लिए ले-शातैलिये सिद्धांत का पालन करती है।(i) विलेयता ताप के बढ़ने के साथ बढ़ती है जब घुलने की प्रक्रिया ऊष्माक्षेपी होती है।(ii) घुलने की प्रक्रिया ऊष्माक्षेपी (ATH<0) होने पर ताप में वद्धि के साथ विलेयता कम हो जाती है।(II) गैसों की द्रवों में विलेयताकिसी विलेय के एक इकाई आयतन में, सामान्य ताप व दाब पर घुलित गैस का वह आयतन जो एक वायुमंडलीय गैस दाब के अंतर्गत एक विशेष तापमान पर संतप्त विलयन का निर्माण करता है, विलेयता कहलाती है।विलयन में गैस की विलेयता को प्रभावित करने वाले कारकः(i) गैस की विलायक की प्रकतिः हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन आदि गैसें पानी में बहुत ही कम मात्रा में घुलती हैं लेकिन CO2,  HCI, NH, जैसी गैसें जल में अत्यधिक घुलनशील होती हैं। एक विलायक में गैस की अधिक विलेयता उनकी रासायनिक समानता के कारण होती है।(ii) ताप की प्रकतिः तापमान में वद्धि के साथ गैसों की विलेयता कम  होती जाती है।(iii) दाब का प्रभाव (हेनरी का नियम): दाब बढ़ाने से घुलनशीलता बढ़ जाती है।

हेनरी का नियमः

स्थिर ताप पर द्रव के दिए गए आयतन में घुली हुई गैस का द्रव्यमान द्रव के साथ साम्य में उपस्थित गैस के दाब के समानुपाती होता है।m α Pm= KHPइसके अलावा,किसी गैस का वाष्प अवस्था में आंशिक दाब (p), उस विलयन में गैस के मोल प्रभाज (x) के समानुपाती होती है।p=KHXहेनरी का नियम केवल तभी लागू होता है जब निम्नलिखित शर्त पूरी होती है।(a) दबाव कम होना चाहिए और तापमान अधिक होना चाहिए। यानी गैस एक आदर्श गैस के रूप में व्यवहार करती हो।(b) गैस को विलायक के साथ यौगिक निर्माण या विलायक में संघटित या विघटित नहीं होना चाहिए।

वाष्प दाब

यदि एक शुद्ध द्रव को प्रारम्भ में निर्वातित बन्द पात्र में रखा जाता है, यह द्रव वाष्पित होकर द्रव के ऊपर के स्थान को भर देता है। दिये गये ताप पर जब साम्य प्राप्त होता है तो द्रव की वाष्प द्वारा लगाया गया दाब शुद्ध द्रव P° का वाष्प दाब कहलाता है।H2O(l)                         H2O(g)P° के सन्द्रभ में कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु हैं
  • दो अवस्थाओं के आयतन तथा साथ ही द्रव वाष्प सीमा के लिए क्षेत्रफल तथा वक्रता पर P° निर्भर नहीं करता है।
  • वाष्प अवस्था में अन्य गैसों की उपस्थिति पर P° निर्भर नहीं करता है।
  • निकाय के तापमान वद्धि के साथ, द्रव के P° में भी वद्धि होती है।
  • क्वथनांक : वह ताप जिस पर एक द्रव का वाष्पदाब, प्रयुक्त (लगाये गये दाब) दाब के बराबर हो जाता है, द्रव के क्वथनांक से परिभाषित किया जाता है। यदि प्रयुक्त दाब 1 atm है, तो इस क्वथनांक को द्रव का सामान्य क्वथनांक कहते हैं।
  • एक उच्च वाष्पदाब के साथ एक द्रव अधिक वाष्पशील होता है जिसके कारण इस द्रव का क्वथनांक कम होता है अतः इसका
  • क्वथनांक तथा वाष्पदाब एक-दूसरे के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
  • वाष्प दाब निम्न कारकों पर निर्भर करता है।

(a) विलायक की प्रकति

(b) ताप

(c) द्रव का पष्ठीय क्षेत्रफल या द्रव की प्रतिशत शुद्धता

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