स्थिर क्वाथी मिश्रण ( Azeotropic Mixtures)
दो द्रवों का स्थिर क्वाथी मिश्रण वह है जो कि स्थिर ताप पर उबलता है तथा अपने संगठन में अपरिवर्तित रूप में आसुत किया जा सकता है । ये अनादर्श विलयनों द्वारा बनते हैं । ये दो प्रकार के होते है
(a) कम उबलने वाले स्थिर क्वाथी’ – दो द्रवों के ऐसे मिश्रण होते हैं जिनका क्वथनांक दोनों में से किसी भी शुद्ध घटक की अपेक्षा कम होता है। ये धनात्मक विचलन दर्शाने वाले अनादर्श विलयन द्वारा बनते हैं ।
उदा. एथेनॉल (95.5%) + जल (4.5%) मिश्रण, 351.15K पर उबलता है
(b) अधिक उबलने वाले स्थिर क्वाथी’ दो द्रवों के ऐसे मिश्रण होते हैं जिनका क्वथनांक दोनों शुद्ध घटकों की ‘अपेक्षा अधिक होता है। ये ऋणात्मक विचलन दर्शाने वाले अनादर्श विलयन द्वारा बनते हैं । उदा. HNO3 (68%) + जल ( 32 ) मिश्रण 393.5K पर उबलता है ।
जियोट्रोपिक मिश्रण
वह मिश्रण जिसमें वाष्प अवस्था में मिश्रण का संगठन असमान होता है। इसके अवयवों को प्रभाजी आसवन द्वारा पथक किया जा सकता है ।
तनु विलयनों के अणुसंख्य गुणधर्म
(i) एक तनु विलयन वह होता है जिसमें विलेय की मात्रा विलायक से काफी कम होती है ।
(ii) अवाष्पशील विलेय युक्त तनु विलयन कुछ विशेष गुण दर्शाते हैं जो इनके स्वभाव पर निर्भर न रहकर विलयन में उपस्थित विलेय कणों की संख्या पर निर्भर करते हैं । ये गुण अणुसंख्य गुणधर्म कहलाते हैं ।
(iii) अणुसंख्य गुणधर्म हैं-
(a) वाष्पदाब में आपेक्षिक अवनमन
(b) क्वथनांक में उन्नयन
(c) हिमांक में अवनमन
(d) परासरण दाब
(iv) अणुसख्य गुणधर्म, कणों की संख्या के समानुपाती होते है |
अणुसख्य गुणधर्म, अणुओं की संख्या (विद्युत अपघट्य के विलयन में) के समानुपाती होते है |
अणुसख्य गुणधर्म, आयनों की संख्या (विद्युत अपघट्य के विलयन में) के समानुपाती होते है |
अणुसख्य गुणधर्म, विलेय के मोल के समानुपाती होते है |
अणुसख्य गुणधर्म, विलेय का मोल प्रभाज के समानुपाती होते है |
(v) अणुसंख्य गुणधर्म तनु विलयन के गुणधर्म है । विभिन्न पदार्थो (अवाष्पशील, विद्युत अनअपघट्य) के सममोलर विलयन अणुसंख्य गुणधर्म के समान मान रखते हैं।
वाष्प दाब का आपेक्षिक अवनमन
जब एक शुद्ध विलायक में अवाष्पशील विलेय को मिलाया जाता है तो विलायक के वाष्प दाब का अवनमन हो जाता है अर्थात इस विलयन का वाष्प दाब हमेशा शुद्ध विलायक से कम होगा क्योंकि विलायक के अणुओं की निर्गामी क्षमता (Escaping tendency) घटती है, इसका कारण वाष्पीकरण के लिऐ उपलब्ध विलयन के सतही क्षेत्र का कम होना है।
(II) क्वथनांक का उन्नयन – द्रव का क्वथनांक वह ताप है जिस पर वाष्प दाब, वायु दाब (760mm) के समान हो जाता है। जब अवाष्पशील विलेय को शुद्ध विलायक में मिलाया जाता है तो इसका वाष्प दाब घटता है।
क्वथनांक में उन्नयन ज्ञात करने की विधि –
(i) लेन्ड्स बर्गर व वालकर की विधि
(ii) बेकमैन की विधि
(iii) कॉट्रेल की विधि
हिमांक में अवनमन
द्रव का हिमांक वह ताप है जिस पर द्रव एवं इसकी ठोस अवस्था एक दूसरे के साथ साम्य अवस्था में हो ।
इसे इस प्रकार भी परिभाषित किया जा सकता है कि वह ताप जिस पर किसी पदार्थ की द्रव एवं ठोस अवस्थाओं का वाष्प दाब समान है ।
जब शुद्ध विलायक में अवाष्पशील, अन-अपघट्य (non-electrolyte) मिलाया जाता है तो विलायक का वाष्प दाब कम हो जाता है। यदि विलायक का हिमांक है एवं T. विलयन का हिमांक है |
हिमांक में अवनमन ज्ञात करने की विधियाँ –
(i) बैकमेन की विधि
(ii) रास्ट की कपूर
(IV) परासरण तथा परासरण दाब
(a) परासरण : अर्धपारगम्य झिल्ली द्वारा विलायक का विलयन में स्वतः प्रवाह परासरण कहलाता है। दूसरे शब्दों में, “विलायक का कम सांद्रता के विलयन से अधिक सांद्रता के विलयन की ओर अर्धपरागम्य झिल्ली में से स्वतः प्रवाह परासरण कहलाता है।”
(b) परासरण दाब –
(i) परासरण दाब द्रव स्थैतिक दाब है जो उत्पन्न होता है जब किसी विलयन को विलायक से अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा पथक किया जाता हैं।
(ii) किसी विलयन का परासरण दाब उस अतिरिक्त दाब के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो अर्धपारगम्य झिल्ली द्वारा इसमें विलायक के प्रवाह को रोकने के लिए प्रयुक्त होता है।
(c) तनु विलयनों के लिए वॉट हॉफ का नियम : नियत तापमान पर, विलयन का परासरण दाब (P या ग) इसकी सांद्रता (C) के सीधे समानुपाती होता है। मोल के विलयन की V लिटर में सांद्रता 1/V के बराबर होती है ।
परासरण दाब ज्ञात करने की विधियाँ :
(i) फैफर की विधि
(ii) मोर्स तथा फ्रेजर की विधि
(iii) डी ब्रीज की विधि
(iv) बर्कले हार्टले की विधि
(v) टाउनसेंड की विधि
(f) व्युत्क्रम परासरणः
यदि एक दाब जो परासरण दाब से अत्यधिक है विलयन पर लगाया जाता है, तो विलायक अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा विलयन से शुद्ध विलायक में प्रवाहित होगा। चूंकि यहां विलायक का प्रवाह सामान्य परासरण में प्रेक्षित दिशा से विपरीत दिशा में हैं, इसलिए क्रिया व्युत्क्रम परासरण कहलाती है ।
उपयोग : समुद्र के पानी से शुद्ध पीने का पानी प्राप्त करने के लिए व्युत्क्रम परासरण का उपयोग किया जाता है।
(g) समपरासरी विलयन :
(i) विलयनों का एक युग्म जिनके परासरण दाब समान होते हैं आइसो स्मॉटिक विलयन के नाम से जाने जाते हैं। यदि ऐसे दो विलयन अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा पथक् किये जाते हैं, तो विलायक का एक
विलयन से दूसरे विलयन की ओर कोई स्थानान्तरण नहीं होता, समान परासरण दाब वाले विलयन अर्द्धपरागम्य झिल्ली द्वारा पथक किये जाने पर समपरासरी विलयन कहलाते हैं ।
(ii) समपरासरी विलयनों की मोलर सान्द्रता समान होती है ।
(iii) एक विलयन जिसका परासरण दाब दूसरे से कम या अधिक होता है दूसरे विलयन की तुलना में क्रमशः अल्पपरासरी या अतिपरासरी विलयन कहलाता है ।
(iv) जब अल्पपरासरी विलयन में एक जन्तु कोशिका को रखा जाता है, तो कोशिकायें फूल जाती है एवं फट जाती है । (हिमोलिसिस) (v) जब एक कोशिका को अतिपरासरी विलयन में रखा जाता है तो ।
कोशिकायें संकुचित हो जाती है (प्लाज्मोलिसिस) । जब उर्वरक (जैसे यूरिया) अधिक मात्रा में प्रयुक्त किया जाता है, तो प्लाज्मोलिसिस की क्रिया होती है तथा पौधे शुष्क हो जाते है । (कुम्हलाना)
असामान्य अणुसंख्य गुणधर्म
ऐसा पाया जाता है कि विलेय के प्रेक्षित अणु भार एवं गणना किये गये अणु भार में अन्तर होता है ऐसा विलयन में विलेय के अणुओं के संयोजन या वियोजन के कारण होता है जिसके परिणामस्वरूप विलयन में कणों की संख्या परिवर्तित होती है ।
(I) विलेय के अणुओं का संयोजन
विलेय के दो या अधिक अणुओं के मिलकर एक बड़ा अणु बनाने को संयोजन कहते हैं। माना ‘n‘ साधारण अणु मिलकर एक बड़ा अणु बनाते हैं ।
जिसके कारण विलयन में उपस्थित कणों की कुल संख्या में, प्रारम्भिक विलयन में उपस्थित कुल कणों की संख्या की तुलना में कमी हो जाती और इस प्रकार अणुसंख्य गुणधर्म का मान कम हो जाता है। विलेय का मोलर द्रव्यमान, अणुसंख्य गुणधर्म के व्युत्क्रमानुपाती होता है इसलिऐ विलेय का मोलर द्रव्यमान सैद्धान्तिक मान से अधिक होगा ।
(II) विलेय अणुओं का वियोजन
विद्युत अपघट्य के अणु आयनीकरण या वियोजन के द्वारा विलयन में आयनित होकर दो या अधिक कण देते हैं ।
उदाहरण, AB विलयन में आयनित होकर दो कण देता है ।
इस वियोजन से, कणों की कुल संख्या में वद्धि होती है, और इस प्रकार विलयन के अणु संख्य गुणधर्म का मान अधिक होगा। जैसाकि अणु संख्य गुणधर्म, अणु भार के व्युत्क्रमानुपाती होता है इसलिए आयनित विलेय के अणुभार का मान सैद्धान्तिक मान से कम होगा।