जीवों में जनन
INTRODUCTION
जीवों के जन्म से लेकर प्राकृतिक मृत्यु तक का समय जीवनकाल (life span) कहलाता है। यह कुछ दिनों से लेकर कुछ हज़ार वर्षों तक भिन्न होता है और जीवों के आकार से संबंधित नहीं होता है।
जनन सजीवों की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येक जीव अपने ही समान एक नए संतति उत्पन्न करते हैं। यह प्रजाति.की निरन्तरता एवं गुणन का माध्यम है क्योंकि प्रत्येक प्रजाति की व्यक्तिगत श्रेणी ° या कोटि पुनः जन्म लेती है एवं मर जाती है।
प्रजनन के आधारभूत लक्षण-
– कोशिका विभाजन (केवल समसूत्री या समसूत्री एवं अर्धसूत्री दोनों) |
– प्रजनन कायों (reproductive bodies) या इकाईयों का निर्माण।
– प्रजनन कायों का संतति में परिवर्धन
सभी जनन की विधियां सामान्यतः दो प्रकार की होती है – अलैंगिक जनन और लैंगिक जनन।
लैंगिक जनन (ASEXUAL REPRODUCTION) – अलैंगिक जनन के अन्तर्गत नये जीवों की उत्पत्ति युग्मकों के संयोजन को छोड़कर किसी भी अन्य तरीके से होता है अर्थात् ऐसा जनन जिसमें नये जीवों का निर्माण बिना अर्द्धसूत्री विभाजन के तथा बिना युग्मकों के संलयन के होता है, अलैंगिक जनन कहलाता है।
#अलैंगिक जनन को असंगजनन (Apomixis) भी कहते हैं।
#असंगजनन की जानकारी बिंकलर ने दी थी।
#असंगजनन का मुख्य लक्षण है कि इसके द्वारा एक ही जनक से आनुवांशिक तौर पर समान पादपों का शीघ्र गुणन और जनन होता है। इस प्रकार की एक जनक से उत्पन्न पादपों की आबादी को क्लोन तथा क्लोन के प्रत्येक सदस्य को रेमेट कहते हैं।
#प्रजनन की यह विधि पौधों और जंतुओं में सरल शरीर संगठन के साथ एककोशिकीय जीवों में होती है।
#अलैंगिक जनन केवल प्रजातियों के जीवों की संख्या का गुणन करता है। ये विकास में कोई भूमिका नहीं निभाता है, क्योकि इसके द्वारा उत्पन्त हुई नई संततियों में विभिन्नता नहीं पाईं जाती है।
#अलैंगिक जनन स्थिर, अनुकूल वातावरण में सिद्धान्तिक रूप से अधिक लाभदायक है, क्योंकि ये जीवों के निश्चित जीन प्ररूप को स्थिर रखता है।
अलैंगिक जनन के आधारभूत लक्षण
#केवल एक जनक संततियों को उत्पन्न करता है, अर्थात् अलैंगिक जनन एक जनकीय युग्मकों का निर्माण नहीं होता है।
#केवल समसूत्री कोशिका विभाजन होता है|
#उत्पन्न हुये नये जीव, सामान्यत: अपने जनक से, आनुवाशिक रूप से समान होते हैं। यदि विभिन्नता पाई जाती है, तो वह केवल उत्परिवर्तन तक ही सीमित होती है।
#बहुगुणन शीघ्रता से होता है।
#अधिक संख्या में उत्पन्न हुई संतति जनक के समीप होती हेै।
* प्रोटिस्टा एवं मोनेरा में जनक कोशिका दो में विभक्त होकर नए जीवों को जन्म देती हैं। अत: इन जीवों में कोशिका विभाजन एक प्रकार से जनन का आधार है।
* कवक जगत के सदस्य तथा साधारण पादप जेसे शेयवाल विशेष अलैंगिक जननीय संरचनाओं द्वारा जनन करते हैं। इन सरचनाओं में ‘ अत्यंत ही सामान्य संरचनाएँ अलैंगिक चलबीजाणु हैं जो सामान्यतः सूक्ष्मदर्शीय चलनशील सरचनाएँ होती हैं। अन्य सामान्य अलैंगिक जनन संरचनाएँ कोनिडिया (पेनीसिलियम), करल्लिका ( हाइड्रा) तथा जैम्यूल (स्पंज) होते हैं।
पादपों में अलैंगिक जनन
पुष्पी पादपों में अलैंगिक जनन दो प्रकार का होता है – एगेमोस्पर्मी और कायिक प्रवर्धन।
एगेमोस्पर्मी सें बिना निषेचन व अर्द्धसूत्री विभाजन के भ्रूण बनता है। अर्थात् इस प्रकार के पादपों में प्रवर्थत तो बीजों के द्वारा होता है परन्तु भ्रूण के निर्माण में अर्द्धसूत्री विभाजन व युग्मकों का संलयन नहीं होता। एगेमोस्पर्मी तीन प्रकार के होते हैं द्विगुणनबीजाणुकता , अपस्थानिक भ्रूणता और अपबीजाणुकता।
द्विगुणनबीजाणुकता
द्विगुणनबीजाणुकता में आर्कीस्पोरियम विभेदित होकर गुरूबीजाणु मातृ कोशिका तो बनाती है, परन्तु यह गुरूबीजाणु मातृ कोशिका का सीधा ही, बिना अर्द्धसूत्री के, भ्रूणकोष का निर्माण करती है। यह भ्रूण कोष द्विगुणित होता है और इसके ट्विगुणित अण्ड से बिना निषेचन के भ्रूण बनता है। द्विगुणनबीजाणुकता को छविगुणन अनिषेकजनन भी कहते हैं।
उदाहरण-पार्थीनियम टैराक्साकम
अप्स्थानिक भ्रूणता –
# इस विधि में भ्रूण का निर्माण भ्रूणफोष के अतिरिक्त भ्रूणकोष के बाहर उपस्थित किसी भी पादप की द्विगुणित कोशिका से होता है। यह द्विगुणित कोशिका युग्मनज की तरह व्यवहार करती है।
#अपस्थानिक भ्रूणता बीजाण्डकाय से व्युत्पन्न होती है (उदाहरण सिट्रिस, मेंगीफेरा, ऑपन्शिया) तथा अध्यावरण (उदाहरण स्पाइरेन्थस ऑस्ट्रेलिस)।
अपबीजाणुकता
#इसकी खोज रोजेन बर्ग ने हाइरेसियम पादप में की थी।
#इसके अन्तर्गत बीजाणुद्भिद् की कोई भी द्विगुणित कोशिका गुरूबीजाणु मातृ कोशिका के अतिरिक्त बिना अर्द्धसूत्री विभाजन के भ्रूण कोष या मादा युग्मकोद्भिद का निर्माण करती है।
#इसमें युग्मकोद्भिद हमेशा द्विगुणित रहता है। उदाहरणहाइरेसियम रेननक्यूलस तथा रूबसा
कायिक जनन/प्रवर्धन
इसके अन्तर्गत आने वाले पादपों का प्रवर्धन बीजों के अतिरिक्त पादप के किसी भी भाग के द्वारा किया जाता है।
#पादप की वह संरचनात्मक इकाई जिसका उपयोग बीज के स्थान पर किया जाता है कायिक प्रोपेग्यूल कहलाती है।
#पुष्पीय पादपों में कायिक प्रवर्धन के लिए पादप का कोई भी भागजड़, तना तथा पत्ती का उपयोग किया जाता हेै।
#कायिक प्रवर्धन की सामान्य विधियाँ दो प्रकार की होबी हैं -प्राकृतिक और कृत्रिम।
प्राकृतिक का्यिक प्रवर्धन
# प्रवर्धन तकनीक में जब पादप काय का एक भाग उससे अलग होता है और प्राकृतिक तौर पर प्रोपेग्यूल के रूप में कार्य करता है तो उसे प्राकृतिक कारयिक प्रवर्धन कहते हैं।
#यह जड़ों, भूमिगत तनों, अनुसर्पी और पत्तियों आदि के द्वारा किया जाता है।
#जड़ के द्वारा ; शक्करकंद, टेपिओका, याम, डाहलिया तथा टीनोस्पोरा आदि पादपों की रूपांतरित कन्दमूल को मृदा में उगाकर कायिक जनन किया जा सकता है।
#कुछ पादपो में, सामान्य जड़ों में अपस्थानिक कलियां विकसित होती हैं जैसे-शीशम, पोपूलस, अमरूद, जामफल अलबिज्जीय लेब्बेक आदि, जो नये पादप का निर्माण करती है।