Class 10- 12 Notes PDF Download Hindi Medium

कणाद, आर्यभट्ट, नागार्जुन,ब्रह्मगुप्त, रामानुजन, न्यूटन का जीवन परिचय

Rate this post

विज्ञानिको का जीवन परिचय 

1. महर्षि कणाद का जीवन परिचय: 

  • इनका काल ईसा से 600 वर्ष पूर्व के आसपास माना जाता है। उनका जन्म प्रयाग के पास प्रभाव ग्राम में कश्यप ऋषि के गोत्र में हुआ था। 
  • महर्षि कणाद का वैश्लेषिक दर्शन, वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। प्राचीन अणु विज्ञानियों में महर्षि कणाद का नाम अग्रणी है। इन्हें परमाणुवाद का प्रथम प्रवक्ता और व्याख्याकार कह सकते हैं। इन्होंने ‘वैशेषिक सूत्र’ नामक ग्रंथ की रचना की । 
  • इनके अनुसार प्रकृति अणुमय है, तथा इसके समस्त पदार्थ अणुओं से ही बने हैं। ये स्वतंत्र रूप से नहीं रह सकते। न ही इन्द्रियों से इनका पता लगाया जा सकता है।
  •  महर्षि ने अणुकों को “मूलकणानम” नाम दिया। वह आज मोलीक्यूल शब्द से जाना जाता हैं ।
WhatsApp Group Join Now
Telegram Channel Join Now
Instagram Group Join Now
Class 10 to 12 Notes PDF Download Now

Tag- आर्यभट्ट का जीवन परिचय

2. आर्यभट्ट का जीवन परिचय: 

  • आर्यभट्ट का जन्म प्राचीन कुसुमापुर अर्थात पटना बिहार भारत में ई. सन् 476 में हुआ था। इनकी ख्याति प्राचीन काल में गणित, बीज गणित, खगोल विद्या आदि के क्षेत्र में है । 
  • आर्यभट्ट ने मात्र 23 वर्ष में आर्यभट्रीयम ग्रन्थ की रचना की थी । इनका विषय गणित व ज्योतिष दोनों हैं । आर्यभटीयम में कुल 121 श्लोक हैं । इसे विषयानुसार चार खण्डों मे बांटा गया है, गीतिकापाद, गणितपाद, काल क्रियापाद और गोलापाद इस कृति में वर्गमूल, घनमूल, ज्या आदि का विवरण है । 
  • सबसे पहले आर्यभट्ट ने ही त्रिकोणमिति व बीजगणित को प्रारंभ किया । अक्षरों के द्वारा प्रकट करने की रीति आर्यभट्ट ने ही पहले प्रारंभ की। उन्होंने पाई (TT) का मान 3. 1416 बताया था, जो आधुनिक गणना के निकट है । गोलपाद (आर्यभटीयम) में खगोल विज्ञान का वर्णन हैं। आर्यभट्ट ने चपटी और स्थिर पृथ्वी के सिद्धांत को नकार कर कहा था कि पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूमती है । वह अपनी लंब अक्ष पर एक तरफ झुककर तिरछी चलती है। आठवीं व नवीं शताब्दी में खलीफाओं के शासनकाल में खगोल विज्ञान की आर्यभट्ट पद्धति को अरबों ने स्वीकार किया था। 
  • आर्यभट्ट को ख्याति अनुरूप, उनके सम्मान में आधुनिक भारतीय प्रथम संचार उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा गया था । 

3. नागार्जुन का जीवन परिचय: 

  • नागार्जुन महान भारतीय रसायन विज्ञानी थे, इनका जन्म छत्तीसगढ़ में हुआ था । और भी कई प्रमाण ईसा की पहली शताब्दी में दक्षिण कौशल में जन्म के है। सातवी सदी ई. के प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी उनके इसी स्थान पर जन्म की पुष्टि की है। 
  • छत्तीसगढ से यह पाटली – पुत्र गए और वहां अपने ज्ञान विज्ञान की पताका फैलाई । 
  • नागार्जुन को भारत मे धातुवाद या किमियागिरि का प्रवर्तक माना जाता है। 
  • इनके प्रधान शिष्य आर्य देव हुए है। 

4. वराहमिहिर का जीवन परिचय: 

  • वराहमिहिर को खगोलशास्त्र के नक्षत्र के रूप में जाना जाता है इनका जन्म मध्यप्रदेश के उज्जयिनी से 20 कि.मी. कपित्थला ग्राम में हुआ था । 
  • इनके पिता का नाम आदित्यदास था तथा महाराजा विक्रमादित्य के नव रत्नों में से एक थे यह फलित ज्योतिष और गणित ज्योतिष के आचार्य थे । 
  • इन्होंने सन् 505 ई. में खगोल विज्ञान की अति महत्व पूर्ण पुस्तक ‘पंच-सिद्धान्तिका’ की रचना की तथा नवीन पंचाग का सूत्रपात किया। 
  • गणित की अनेक विधाओं सहित शून्य एवं अनंत की अवधारणाओं पर व्यापक शोध व उपयोग वराहमिहिर की महान देन है। 

5. ब्रह्मगुप्त का जीवन परिचय: 

  • ब्रह्मगुप्त को उज्जैन नरेश का खगोलशास्त्री कहा जाता है इन्होंने ‘ ब्रह्मस्फुट’ सिद्धांत की रचना की थी। यह खगोलीय पुस्तक ‘ब्रह्मसिद्धांत’ का संशोधित एवं परिवर्धित रूप थी । 
  • खगोल शास्त्र व गणित से संबंधित उनकी दूसरी कृति ” कर्ण खण्डखाधक” है । 
  • वे अंकीय विश्लेषण के जनक कहे जाते है ब्राह्मगुप्त ने बीजगणित व ज्यामिति में काफी योगदान दिया । 
  • महान गणितज्ञ भास्कर ने उन्हें “गणक चक्र चूड़ामणि’ की उपाधि से विभूषित किया।

6. श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय: 

  • रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 में मद्रास के एक छोटे से गांव इंरोद में हुआ था । विद्यार्थी जीवन में इन्होंने अपनी कक्षा में एक प्रश्न किया की शून्य को शून्य से विभाजित किया जाये तो परिणाम क्या होगा ? पूछकर गणित में नए अध्याय को जन्म दिया था । 
  • केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में इन्होंने संख्याओं से संबंधित अनेक कार्य किए। इन्हें 28 फरवरी 1918 को रायल सोसायटी लंदन का फैलो बना दिया गया। 
  • मद्रास के कुम्भकोणम नामक स्थान पर 26 अप्रैल 1922 ई. को रामानुजन ने अंतिम सांस ली। बीजगणित के सूत्रों, पूर्ण संख्याओं; अनंत श्रेणियों, सत्त भिन्न एवं संयुक्त संख्याओं पर उनका कार्य सर्वथा चमत्कारिक है । वे स्मरण शक्ति के जीते-जागते कंप्यूटर थे। 

7. आचार्य जगदीश चन्द्र बसु का जीवन परिचय: 

  • जगदीश चन्द्र वसु का जन्म 30 नवम्बर 1858 में ढाका के निकट एक गांव में हुआ था। 
  • भौतिक शास्त्री वसु ने 1895 में प्रकाश और विद्युत के संयोग का तथा रेडियो के अविष्कार का पहला यांत्रिक प्रयोग करके सभी दिग्गज वैज्ञानिकों को आश्चर्यचकित कर दिया था । 
  • रेडियो तरंगों के क्षेत्र में हुई अत्याधुनिक खोजों का श्रेय पहले वसु को जाता है फिर हर्ट्ज को । 
  • जैव भौतिक के अध्ययन की नई शाखा का सूत्रपात इन्होंने ही किया था। आपने अध्ययन काल में क्रिस्कोग्राफ नामक यंत्र बनाया, जिसके माध्यम से पेड़-पौधों की सूक्ष्मतम गतिविधियों को दस  सहस्रगुना आवर्धित करके दिखाया जा सकता था । 
  • अपने इस अविष्कार के माध्यम उन्हें पेड़-पौधों और अन्य जीवों जंतुओं में अनेक समानताएं दिखाने में सफलता प्राप्त हुई थी। 
  • आपने 1902 में रिस्पॉस इन द लिंविग एण्ड नॉन लिविंग और 1926 में दी नर्वस मैकेनिज्म ऑफ प्लान्टस कृतियों की रचना की । 
  • आपने रेडियो तरंगों का पता लगाने के लिए ‘कौहरर’ नामक यंत्र का निर्माण किया था। आपका निधन 23 नवंबर 1937 ई को बिहार के गिरडीह में हुआ। निधन से पूर्व कलकत्ता में बोस अनुसंधान संस्थान की स्थापना की थी। 

8. बीरबल साहनी का जीवन परिचय: 

  • 14 नवंबर 1891 को ग्राम भेड़ा जि. शाहपुर पंजाब में जन्मे बीरबल साहनी, वनस्पति शास्त्र की एक शाखा पेलियो बोटनी पुरा जीवाश्म वानस्पतिकी के भारत में चोटी के वैज्ञानिक व अनुसंधानकर्ता थे । 
  • फासिल प्लॉट्स व कृत्रिम रूप से वृक्ष के तने को पत्थर में रूपातंरण पर अनुसंधान साहनी के नाम हैं। 
  • 1936 में वे रायल सोसायटी के फैलो चुने गए। 10 अप्रैल 1949 को आप स्वर्गवासी हुए । निधन के पूर्व 1945 मे लखनऊ में ‘साहनी अनुसंधान संस्थान’ की नींव रखी थी। 
  • उनकी स्मृति में ‘डॉ. बीरबल साहनी’ पुरूस्कार प्रति वर्ष ‘ प्राणी विज्ञान’ के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए दिया जाता है ।। 

9. चन्द्रशेखर वैंकट रमन का जीवन परिचय : 

  • 7 नवम्बर 1888 को तिरूचिरापल्ली में जन्मे चन्द्रशेखर वैंकट रमन ने कई महत्वपूर्ण कार्य किए। 1960 में आपका पहला शोध पत्र प्रकाश विवर्तन पर ‘फिलासोफिकल’ पत्रिका में छपा। जून 1907 में आप असिस्टेंट एकाउटेंट जनरल बने। 
  • 1917 में यह पद छोड़ कर कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्राध्यापक बने । 1924 में रायल सोसायटी के फैलो बने। 28 फरवरी 1928 को रमन ने युगात्तरकारी ‘रमन प्रभाव’ व ‘रमन लाइन्स’ की खोज की। रमन प्रभाव से उन्होंने सिद्ध किया कि प्रकाश छोटे-छोटे कणों ‘फोटान्स’ से मिल कर बना है। 
  • रमन की इस खोज से पदार्थों के आणविक व क्रिस्टल संरचनाए ज्ञात करने में सहायता मिलती है। इस खोज से रमन को विज्ञान के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ पुरूस्कार, 1930 के नोबल पुरूस्कार से सम्मानित किया गया। 
  • उन्हें सर की उपाधि 1929 में प्रदान की गई। 
  • उन्हें भारत सरकार ने 1954 में ‘भारत रत्न’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। 28 फरवरी प्रतिवर्ष ‘विज्ञान दिवस’ के रूप में मनाई जाती है। 
  • 1933 में रमन बैंगलौर आये तथा टाटा इन्स्टीट्यूट के संचालक बनाए गए। अनेक महत्वपूर्ण अनुसंधानों की श्रृंखला में उन्होंने, ध्वनि, प्रकाश, पत्थर मणि, चिड़ियों, कीड़े, समुदी शैल, पेड़ पौधें, पुष्पों, आकाश, मौसम, श्रवण आदि क्षेत्रों में कार्य किया । 
  • इन्होंने 1934 में इंडियन ऐकेडमी ऑफ सॉइसेज की स्थापना की। 21 नवंबर 1970 को जब आपका निधन हुआ तब भी आप अनुसंधानों में ही लीन थे । 

10. ‘डॉ. होमी जहांगीर भाभा का जीवन परिचय: 

  • भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 को एक पारसी परिवार मुंबई में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा बंबई व केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हुई, 1932 में ट्रिनिटी कॉलेज, ‘राडज्वेल ट्रेवलिंग स्टूडेंटशिप’ अनुसंधान छात्रवृति मिली। तदुपरांत नील्स वोर की अध्ययन शाला में अध्ययन किया। 
  • उनकी ब्रह्मण्ड किरणों की बौछार सिद्धांत क्रास्केड थ्योरी आफ इलेक्ट्रॉन शावर्स ने उनको विश्व प्रसिद्ध बनाया। भाभा ने बताया कि ब्रह्माण्ड किरण बौछार के कुछ कण प्रोटान और इलेक्ट्रॉन से भिन्न होते हैं, इन्हें उन्होंने ‘मैसान’ कहा। 
  • क्वान्टम फिजिक्स में लगातार अनुसंधान करते हुये डॉ. भाभा को 1947 में परमाणु शक्ति आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। भारत के ऊर्जा श्रोतों के लिए परमाणु शक्ति के उपयोग की उन्होंने पूरी योजनायें बनाई। 
  • भारत की परमाणु शक्ति में आत्मनिर्भरता और तारापुर, कोटा तथा अन्य स्थानों के परमाणु बिजलीघर डॉ. भाभा के स्वप्न को साकार कर रहे हैं। भाभा की प्रमुख रचनाएं क्वॉटम थ्योरी, एलीमेंट्री फिजिकल पार्टीकिल्स एंड कास्मिक रेडियेशन हैं। 
  • 1954 में आपने टाटा इन्स्टीट्यूट ऑफ फन्डामेंटल रिसर्च की स्थापना की थी। 
  • 1956 में प्रथम भारतीय परमाणु भट्टी ‘अप्सरा’ ट्राम्बे बंबई में चालू की गई। आपके ही सरंक्षण में ‘सायरस’ व‘जरलिना’ दो यूक्लियर रियेक्टर भी चालू किए गए। 
  • आपने 1956 में जेनेवा में परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रथम सम्मेलन की अध्यक्षता की। 
  • 1954 में राष्ट्रपति ने पद्म भूषण से सम्मानित किया। 24 जनवरी 1966 को विमान दुर्घटना से उनकी मृत्यु हुई। उनके सम्मान में 1967 में परमाणु ऊर्जा संस्थान ट्राम्बे का नाम भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र’ रखा गया। वे आजीवन अविवाहित रहे । 

11. डॉ. हरगोविंद खुराना का जीवन परिचय: 

  • खुराना का जन्म 9 जनवरी 1922 को पंजाब के छोटे से ग्राम रायपुर में हुआ था, जो आज पाकिस्तान का भाग है। प्रारंभिक शिक्षा लाहौर से प्राप्त की तथा एम. एस. सी. कार्बनिक रसायन में कर छात्रवृति प्राप्त कर इंग्लैण्ड चले गए। 1959 में आपने एक इन्जाइम का निर्माण किया, जिससे आपकी ख्याति फैलने लगी। 1960 में अमेरिका चले गए। वहाँ आपने कृत्रिम जीन पर कार्य किया। 
  • यहाँ पर आपने डी.एन.ए. व आर. एन. ए. के निर्माण की विधि खोज निकाली। जिसके लिए 1968 ई. मार्शल निरेनवर्ग और राबर्ट हाले के साथ संयुक्त रूप से नोबेल पुरूस्कार प्रदान किया गया। 
  • 1970 ई. में मेसाचुसेट्स इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी में प्रोफेसर बनाए गए। जहाँ आपने जैनेटिक कोड पर कार्य किया । नोबेल पुरस्कार से पहले आपने अमेरिकन नागरिकता ले ली थी। आपने इश्चेरिचिया कोलाई नामक जीवाणु के 207 जीन बनाएँ । 
  • अगस्त 1976 में अपने द्वारा निर्मित जीन को इस जीवाणु में सफल प्रवेश कराया। 1969 में भारत सरकार ने पदमभूषण की उपाधि से सम्मानित किया। 

12. डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का जीवन परिचय: 

  • डॉ. अबुल पाकिर जैनुल आबेदीन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूवर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था। डॉ. कलाम एक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं, तथा भारतीय मिसाइल के जनक होने के कारण लोग इन्हें मिसाइल मेन भी कहते हैं । 
  • प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद डॉ. कलाम ने मद्रास इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी से वैज्ञानिकी इंजीनियरिंग को ही विशेष अध्ययन का मार्ग चुना। 
  • आपने उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण की दिशा में भारत को संसार के महत्वपूर्ण देशों में छठा स्थान दिलवाया। ‘अग्नि’ और ‘पृथ्वी’ मिसाइलों की दुनिया में चर्चा हुई तथा भारत को रक्षा विज्ञान के क्षेत्र में न केवल आत्म निर्भरता दी, बल्कि विश्व की महाशक्तियों के बीच लाकर प्रतिष्ठित किया । 
  • आपके इन्ही उत्कृष्ट कार्यों, लगन एवं देशभक्ति के कारण ‘ भारत रत्न’ उपाधि से सम्मानित किया गया तथा भारत के राष्ट्रपति बने । 

13. अल्फ्रेड बर्नहार्ड नोबल का जीवन परिचय: 

  • नोबेल का जन्म 21 अक्टूबर 1833 ई. को स्टॉकहोम (स्वीडन) में हुआ था । आप डायनामाइट के आविष्कारक एवं नोबेल पुरूस्कार के संस्थापक है। 
  • नोबेल के पास, उनके निधन (10 दिसम्बर 1896 ) के समय 90 लाख डालर की धनराशि थी। जिसका ब्याज हर वर्ष नोबेल पुरूस्कार के रुप में प्रतिवर्ष स्टॉकहोम में उनकी पुण्यतिथि पर विशेष समारोह में दिए जाते है। 
  • आपकी बचपन से ही रुचि रसायन शास्त्र में थी स्टॉकहोम के पास होलेन वर्ग नामक स्थान पर अनुसंधानों के लिए प्रयोगशाला बनाई तथा विस्फोटको पर कार्य करना शुरु किया । बाद, में नाइट्रोग्लिसरीन नामक विस्फोटक बनाया । 
  • नाइट्रोग्लिसरीन के घातक विस्फोट, पनामा, फ्रांसिस्को, न्यूयार्क, और आस्ट्रेलिया में हुए । अतः इसके बनाने पर पाबंदी लगा दी गई। 
  • आपने नाइट्रोग्लिसरीन द्रव के कीसलगुर नामक मिट्टी में अवशोषित कर सुरक्षित विस्फोटक डायनामाइट बनाया। 
  • सन 1887 ई. में आपने बैलिस्टाइट नामक विस्फोटक पदार्थ खोज निकाला। अंत में आपने 100 से अधिक पेटेंट प्राप्त किए । फलस्वरूप अनेकों फैक्ट्रियों के सहारे अथाह धन कमाया।

14. आइजक न्यूटन का जीवन परिचय: 

  • आइजक न्यूटन का जन्म 25 दिसंबर 1642 ई. में बूल्सथोर्प (लिकन शायर) में हुआ । सेव के बाग में बैठे आपने सेव के पेड़ से नीचे गिरने के आधार पर ही गुरूत्व के नियम पर अनुसंधान किया आपने गणित की फलन नामक एक नई प्रणाली का अविष्कार किया । 
  • प्रकाश का अध्ययन किया, ज्वार भाटे का कारण ज्ञात किया । गति के नियम न्यूटन ने ही बनाए जो आगे चल कर यांत्रिकी नामक नए विज्ञान के आधार बने। आप 27 वर्ष की अवस्था में गणित के प्रोफेसर बने। प्रकाश व दृष्टि लैंस पर कार्य करते हुए निष्कर्ष निकाला कि सूर्य का प्रकाश श्वेत नहीं सतरंगी (इन्द्रधनुष) है, तथा इन्हीं रंगों से मिलकर बना है। इसे स्पेक्ट्रम कहा । 
  • न्यूटन ने ऐसी दूरबीन बनाई जिसमें प्रकाश लैंस में से गुजरने के स्थान पर दर्पण से परावर्तित होता है। सन् 1672 में आप रायल सोसायटी के फैलो चुने गए। 
  • 1687 में आपने गुरुत्वाकर्षण व गति के नियमों को अपनी पुस्तक ‘प्रिसिपिया’ में प्रकाशित किया। 
  • 1703 में रायल सोसायटी के अध्यक्ष चुने गए तथा 1705 में ‘सर’ की उपाधि दी गई। 20 मार्च 1727 ई. में आपका निधन हुआ । 

15. एलबर्ट आइन्सटाइन का जीवन परिचय: 

  • भौतिक विज्ञानी एल्बर्ट आइंस्टाइन का जन्म 14 मार्च 1879 ई. को उल्म, जर्मनी में हुआ था। प्रारम्भ में पढ़ने में कमजोर लेकिन प्रतिभा के धनी थे। आपका आरम्भिक जीवन संघर्षपूर्ण रहा तथा रोजी रोटी के लिए जूझते रहे | आपने नौकरी करते हुए अतिरिक्त समय का उपयोग कर ‘समय व स्थान’ की नई व्याख्या दी, तथा 26 वर्ष की आयु में 1905 में विश्व विख्यात सापेक्षता का विशेष सिद्धांत दिया । यह सिद्धांत काफी जटिल था, लेकिन इससे उन प्रश्नों का उत्तर मिल गया था, जिन्होंने वर्षों से गणितज्ञों व भौतिक विज्ञानियों को उलझन में डाले रखा था । 
  • 1914 में वर्लिन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बने। 1921 में आपको नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। 1933 में हिटलर की तानाशाही से छुपते हुए न्यू जर्सी प्रिंसटन चले गए। 1940 में अमेरिका की नागरिकता ग्रहण की। 1905 में आपने निष्कर्ष निकाला था कि द्रव्य को ऊर्जा और ऊर्जा को द्रव्य में बदला जा सकता है । 
  • आपके सिद्धांतों में गुरुत्व एवं विद्युत चुम्बकीयता के नियमों की महत्वपूर्ण व्याख्या की। आपका 18 अप्रैल 1955 ई. को प्रिंसटन अमेरिका में निधन हुआ ।

Hello! My name is Akash Sahu. My website provides valuable information for students. I have completed my graduation in Pharmacy and have been teaching for over 5 years now.

Sharing Is Caring:

Leave a Comment