अणु-
दो या दो से अधिक परमाणु मिलकर अणु बनाते है |
ये दो प्रकार का होता है –
सम परमाणु अणु – ऐसे अणु जिनमे एक सामान परमाणु उपस्थित होते है | Ex- H2, O2, O3, P4
बिषम परमाणु अणु – ऐसे अणु जिनमे असमान परमाणु उपस्थित होते है | Ex- HCl, CO, H2O
रासायनिक आबन्ध –
अणु में परमाणु जिस बल के द्वारा एक दूसरे से बंधे होते हैं, उसे रासायनिक आबन्ध कहते हैं।
रासायनिक आबन्ध के प्रकार –
ये तीन प्रकार के होते है :-
- आयनिक आबंध
- सह्संयोंजक बंध
- उप-सह्संयोंजक बंध
आयनिक आबंध –
दो परमाणुओ के बीच इलेक्ट्रान के पूर्ण स्तानांतरण से बंधने वाला रासायनिक बंध आयनिक बंध कहलाता है |
- इसमें दो विपरीत आवेशित आयन बनते हैं |
- ये स्थितवैद्युत बल द्वारा एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं, इसलिए इसे विद्युत संयोजी आबंध भी कहते हैं।
- खोज – कोसले [KOSSEL]
- यह बंध धातु एवं अधातु के बीच बनता है |
- आयनिक बंध बनते समय दोनों परमाणु अपनी निकटतम अक्रिय गैस का विन्यास प्राप्त कर लेता है |
- यह बंध s एवं p ब्लाक के मध्य बनता है | अपवाद – Be को छोड़कर
आयनिक बंध के निर्माण की शर्ते –
- उच्च विधुत धनात्मक एवं उच्च विधुत ऋणात्मक के मध्य |
- धातुओ का आयनन बिभव निम्न एवं अधतुओ की इलेक्ट्रान बंधुता उच्च होनी चाहिए |
- धनायन का आकार छोटा एवं ऋण-आयन आकार बड़ा होना चाहिए |
आयनिक यौगिक – ऐसे अणु जिनमे एक या एक से अधिक आयनिक बंध होते है , वे सभी आयनिक यौगिक कहलाए है Ex- NaCl
आयनिक यौगिक के गुण –
- भौतिक अवस्था – आयनिक यौगिक सामान्य ताप पर ठोस होते है , क्योकि इनके आयनों के बीच प्रबल विधुत आकर्षण बल होता है | ये मुख्यतः धनायन एवं ऋण-आयन से मिलकर बने होते है |
- गलनांक एवं क्वथनांक– आयनिक यौगिको के गलनांक एवं क्वथनांक उच्च होते है क्योकि इनके आयनों के मध्य प्रबल विधुत आकर्षण बल होता है |
- विलेयता – आयनिक यौगिक धुब्रीय विलायक जैसे- जल में घुलनशील है लेकिन अधुब्रीय विलायक में अघुलनशील है
- चालकता – ठोस आवस्था में आयनिक यौगिक विधुत के कुचालक होते है क्योकि ठोस में आयन गति नहीं करते है | जबकि जलीये विलयन में ये चालक होते है |
- दिशाहीन प्रकृति – आयनिक बंध दिशाहीन प्रकृति के होते है , इसलिए इसमें समावयवता नहीं पाई जाती |
- अवाष्पशील प्रकृति – आयनिक यौगिक अवाष्पशील प्रकृति के होते है | अर्थात इनकी वाष्प नहीं बनती |
- आभिक्रिया की दर – इनके बीच अभिक्रिया तीब्र गति से होती है |
सह्संयोंजक बंध –
दो परमाणुओ के बीच इलेक्ट्रान के सामान सांझे से जो बंध बनता है वह सह्संयोंजक बंध कहलाता है |
- खोज – लुईश [LEWIS]
- यह दिशात्मक होता है |
- यह अधातुओ के मध्य बनता है, अर्थात p- ब्लाक के मध्य बनता है |
बंध बनने के बाद दोनों परमाणु अपना अष्टक पूर्ण कर लेते है |
सहसंयोजक बंध तीन प्रकार के होते है :
- एकल सहसंयोजक बंध
- द्वि सहसंयोजक बंध
- त्रि सहसंयोजक बंध
(i) एकल सहसंयोजक बंधन (Single Covalent Bond)
इसमें दो परमाणुओं के बीच एक जोड़ा इलेक्ट्रॉन का साझा होता है,। उदाहरण के लिए, हाइड्रोजन अणु (H2) में दोनों H परमाणुओं के बीच साझेदारी में भाग लेने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या 2 (या एक जोड़ा) होती है। अतः इनके बीच एकल सहसंयोजक बंध बनता है।
H : H → H – H
(ii) द्विक सहसंयोजक बंधन (Double Covalent Bond):
जब दो परमाणुओं के बीच दो जोड़े इलेक्ट्रॉनों का साझा होता है, तब उनके बीच द्विक सहसंयोजक बंधन बनता है। उदाहरण के लिए, ऑक्सीजन अणु का बनना।
O : : O → O = O
(iii) त्रिक सहसंयोजक बंधन (Triple Covalent Bond):
जब दो परमाणुओं के बीच तीन जोड़ा इलेक्ट्रॉनों का साझा होता है, तब उनके बीच त्रिक सहसंयोजक बंधन बनता है। उदाहरण के लिए, नाइट्रोजन अणु का बनना।
N : : N → N ≡ N
सहसंयोजक यौगिकों के गुण
सहसंयोजक बांध से बनने वाले यौगिक को सहसंयोजक यौगिक कहते हैं। सहसंयोजक यौगक के निम्नलिखित गुण होते हैं-
- अधिकांश सहसंयोजक यौगिक साधारण अवस्था में गैस या द्रव या वाष्पशील ठोस होते हैं।
- सहसंयोजक यौगिकों के गलनांक और क्वथनांक निम्न होते हैं, इसका कारण यह है कि इनमें अन्तराण्विक बल वैद्युत संयोजक यौगिकों के स्थिर वैद्युत आकर्षण बल की अपेक्षा बहुत कमजोर होते हैं।
- सहसंयोजक यौगिक जल में अविलेय, परन्तु कार्बनिक विलायकों में विलेय होते हैं।
- सहसंयोजक यौगिक द्रवित अवस्था में विद्युत् के कुचालक होते हैं, क्योंकि इन अवस्थाओं में ये आयन उत्पन्न नहीं करते हैं। किन्तु HCl और NH3 के जलीय विलयन विद्युत् के सुचालक होते हैं, क्योंकि इन विलयनों में आयन उपस्थित होते हैं।
- दिशात्मक प्रवृत्ति -सहसंयोजक यौगिकों के अणुओं में बन्ध दिशात्मक होते हैं। अर्थात् दो बन्धों के मध्य एक निश्चित कोण होता है।
- ये एक निश्चित ज्यामिति रखते हैं।
- आण्विक क्रिया – सहसंयोजक यौगिक आण्विक क्रिया करते हैं अर्थात् क्रिया अणुओं के मध्य होती है।
- आण्विक क्रिया, आयनिक क्रिया की तुलना में मंद गति से होती हैं । स्वतः क्रिया के विपरीत इन क्रियाओं के लिए ताप, दाब तथा उत्प्रेरकों की आवश्यकता होती हैं।
- समावयवता (Isomerism)-सहसंयोजक यौगिकों के अणु दिशात्मक बन्ध रखते हैं, जिसके कारण इनमें समावयवता पाये जानी की सम्भावना होती है।
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