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परमाणु संरचना

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परमाणु 

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परमाणु – किसी पदार्थ का वह छोटा से छोटा या सूक्ष्मतम कण जो स्वतंत्र अवस्था मैं नहीं रह सकता तथा जो रासायनिक क्रिया में भाग लेता है, जो मुख्य रूप से इलेक्ट्रान, प्रोटॉन व न्यूट्रॉन का बना होता है, परमाणु कहलाता है |

  1. परमाणु की खोज 1803 में डाल्टन द्वारा की गई |
  2. रदरफोर्ड ने परमाणु के नाभिक की खोज की |

इनके अनुसार परमाणु में 2 भाग होते हैं

  1. नाभिकीय भाग– परमाणु का केंद्रीय एवं धन आवेशित भाग होता है जिसमें मुख्य रुप से न्यूट्रॉन एवं प्रोटॉन उपस्थित होते हैं |
  1. बाह्य नाभिकीय भाग- नाभिक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमे इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते हैं इलेक्ट्रॉन के कारण ये ऋण आवेशित

होता है |

  1. किसी परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन होते हैं उसके कारण वह धन आवेशित होता है और जो नाभिकीय आवेश कहलाता है या तत्व का परमाणु क्रमांक कहलाता है इसे Z द्वारा प्रदर्शित करते हैं

Z = P (NO. OF PROTON )

  1. परमाणु के नाभिक में उपस्थित न्यूट्रॉन एवं प्रोटॉन की संख्या का योग द्रव्यमान संख्या कहलाती है, इसे A द्वारा प्रदर्शित किया जाता है |

A = n + P              [ A= द्रव्यमान संख्या,    n = न्यूट्रॉन की संख्या,  P = प्रोटॉन की संख्या ]

  1. अक्रिय गैसों को छोड़कर अन्य सभी तत्वों के परमाणु क्रिया करते हैं या स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकते |
  2. परमाणु की रासायनिक अभिक्रिया इलेक्ट्रान के कारण होती हैं |
  3. किसी तत्व या परमाणु के भौतिक गुण द्रव्यमान संख्या पर निर्भर करते हैं |
  4. किसी परमाणु के नाभिक में उपस्थित न्यूट्रॉन एवं प्रोटॉन को नाभिकी तत्व कहते हैं |
  5. परमाणु के नाभिक मैं जितनी संख्या में प्रोटॉन उपस्थित होते हैं उतनी संख्या में उसके चारों और इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते हैं इनके कारण परमाणु उदासीन होता है अर्थात उस पर कोई आवेश नहीं होता है |
  6. परमाणु में 35 से अधिक कणों की खोज की जा चुकी है लेकिन इसके मूल्य कारण इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन है
  7. परमाणु के नाभिक से इलेक्ट्रॉन की बीच की औसत दूरी या त्रिज्या की कोटि या क्रम 10-8 सेंटीमीटर या 10-10 मीटर होता है |
  8. किसी परमाणु के आयतन की कोटि या का क्रम 10-24 cm3 होता है |

रासायनिक आबंधन एवं आण्विक संरचना

कैथोड किरणें-

विलियम कुक्स (William crooks) ने विसर्जन नलिका में कम दाब पर गैस लेकर जब इसे उच्च विभव वाली बैटरी से जोडा तो अपने प्रयोग मे इन्होने देखा कि कुछ किरणे कैथोड से एनोड की ओर चलती है। जो विर्सजन नलिका की दीवार से टकराकर चमकीला प्रकाश उत्पत्र करती है, चूंकि ये किरणे कथोड से एनोड की और चलती है। इसलिये इन्हे कैथोड किरणे कहते है। इनका विश्लेषण J.J. Thomson  द्वारा किया गया उनके अनुसार ये किरणे ऋणावेश कणो से मिलकर बनी होती है। जिनको स्टोनी (Stoney) ने इलेक्ट्रॉन नाम दिया।

 कैथोड किरणों (इलेक्ट्रॉन) के गुण (Properties of Cathode Rays)-

  1. ये किरणें सीधी रेखा में गमन करती है तथा इनका वेग लगभग प्रकाश के वेग के बराबर होता है। यदि इनके रास्ते में कोई ठोस पदार्थ रख दिया जाये तो उस पदार्थ की छाया पड़ने लगती है जिससे यह सिद्ध होता है कि ये किरणें सीधी रेखा में चलती हैं।
  2. इन किरणों द्वारा यान्त्रिकी प्रभाव होता है अर्थात यदि इन किरणों के रास्ते में एक क्षेपणी पहिया (paddlewheel) लगा दिया जाये तो इन किरणों के आघात से यह पहिया घूमने लगता है। इस प्रयोग से यह सिद्ध होता है कि यह किरणें द्रव्य कणों  से बनी होती हैं।
  3. इन किरणों के पथ में विद्युत क्षेत्र लगाया जाये तो ये धन आवेशित प्लेट की ओर मुड़ जाती हैं। इससे सिद्ध होता है कि ये किरणें ऋण आवेशित कणों से बनी होती हैं।
  4. एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक पैरिन ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि ये किरणे अत्यन्त सूक्ष्म ऋण आवेशित कणों से बनी होती हैं। ये कण कैथोड से निकलकर तीव्र गति से ऐनौड की ओर चलते हैं। इन कणों का द्रव्यमान हाइड्रोजन के द्रव्यमान का 1/1837 वाँ भाग होता है अर्थात् ये कण बहुत हल्के होते हैं। इन ऋण आवेशित कणों को इलेक्ट्रॉन (electrons) कहते हैं।
  5. ये किरणें धातुओं की पतली पत्ती को पार कर देती हैं और उसे हल्का गरम कर देती हैं।
  6. ये किरणें काँच की नली की दीवारों पर प्रतिदीप्ति उत्पन्न करती हैं।
  7. ये किरणें गैसों को आयनित करती हैं और फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करती हैं।
  8. इन किरणों द्वारा X-किरणें उत्पन्न होती हैं। जब कैथोड किरणें किसी उच्च गलनांक की धातु- जैसे टंगस्टन पर गिरती हैं तो Xकिरणें उत्पन्न होती हैं।

NOTE– X-किरण या X-Ray  एक प्रकार का विद्युत चुम्बकीय विकिरण है जिसकी तरंगदैर्घ्य 10 से 0.01 नैनोमीटर होती है। यह चिकित्सा में निदान (diagnostics) के लिये सर्वाधिक प्रयोग की जाती है।

ऐनोड की खोज-

इलेक्ट्रॉन परमाणु का अनिवार्य अवयव है और परमाणु विद्युत उदासीन होता है, अत: यह आवश्यक है कि परमाणु में ऋण विद्युत युक्त इलेक्ट्रॉन हैं, तो उनको उदासीन करने के लिए परमाणु में धन विद्युत कण भी होने चाहिए।

गोल्डस्टीन ने सन् 1886 में विसर्जन नलिका में छिद्र युक्त कैथोड का प्रयोग कर यह दिखाया कि नलिका में एक-दूसरे प्रकार की किरणें भी उपस्थित रहती हैं जो कैथोड के छेदों से पार निकल जाती हैं और धन आवेश युक्त होती हैं। ये किरणें ऐनोड से कैथोड की ओर चलती हैं। इनको धन किरणें अथवा ऐनोड किरणें अथवा कैनाल किरणें कहते हैं |

विसर्जन नलिका में प्राप्त धन किरणों के अध्ययन से यह सिद्ध होता है कि परमाणु में धन आवेश युक्त कण होते हैं, परन्तु इलेक्ट्रॉन की भाँति ये कण सदैव समान नहीं होते हैं। इनका भार नली में ली गयी गैस के परमाणु भार के बराबर होता है। स्पष्ट है कि धन किरणें इलेक्ट्रोडों के बीच में उपस्थित गैस से प्राप्त होती हैं तथा यह उन धन आवेश युक्त अवशेषों की बनी होती हैं जो गैस के परमाणुओं में से इलेक्ट्रॉन के निकल जाने से प्राप्त होते हैं।

इस सबसे हल्के धन आवेश युक्त कण को रदरफोर्ड ने प्रोटॉन (proton) कहा।

रासायनिक संयोग के नियम – द्रव्य के संरक्षण का नियम

Hello! My name is Akash Sahu. My website provides valuable information for students. I have completed my graduation in Pharmacy and have been teaching for over 5 years now.

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