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pH मान | बफर विलयन | ले शातेलिए का नियम | BEST NOTES 11TH CLASS

ले-शातेलिए का नियम

ले-शातेलिए के नियम अनुसार, “यदि साम्यावस्था पर ताप, दाब, सान्द्रण, आयतन आदि का परिवर्तन किया जाये तो साम्यावस्था ऐसी दिशा में परिवर्तित हो जाती है जिससे किये गये परिवर्तन का प्रभाव नगण्य हो

जाए।

(a) सान्द्रता में परिवर्तन का प्रभाव : अभिकारकों की सान्द्रता बढ़ाने पर साम्यावस्था अग्रिम दिशा में तथा उत्पादों की सान्द्रता बढ़ाने पर साम्यावस्था प्रतीप दिशा में विस्थापित होता है।

(b) दाब परिवर्तन का प्रभाव : ले-शातेलिए के नियमानुसार दाब बढाने पर साम्यावस्था उस ओर विस्थापित होती है जिस ओर गैसीय पदार्थों के अणुओं की संख्या में अथवा दाब में कमी होती है।

(i) दाब बढ़ाने पर साम्य उस ओर विस्थापित होता है। जिस ओर मोलों की संख्या में कमी होती है। अर्थात दाब बढ़ाने पर साम्य अग्र दिशा में विस्थापित होता

(ii) दाब घटाने पर साम्य उस ओर विस्थापित होता है जिस ओर गैसीय पदार्थों के अणुओं की संख्या में वद्धि होती है। अर्थात् दाब घटाने पर साम्य अग्र दिशा में विस्थापित होता है।

(iii) यदि ∆n=0 है, तो दाब का कोई प्रभाव नहीं होता है।

(c) ताप परिवर्तन का प्रभाव :

(i) ऊष्माशोषी अभिक्रिया : ताप बढ़ाने पर साम्य अग्र दिशा में विस्थापित होता है जो ऊष्मा के अवशोषण के साथ आगे बढ़ता है।

(ii) ऊष्माक्षेपी अभिक्रिया : ताप बढ़ाने पर साम्य प्रतीप दिशा में विस्थापित होता है।

(d) उत्प्रेरक का प्रभाव : धनात्मक उत्प्रेरक अग्र एवं प्रतीप अभिक्रियाओं की दर को समान रूप से प्रभावित करता है अतः साम्यावस्था कम समय में प्राप्त कर ली जाएगी। ऋणात्मक उत्प्रेरक अग्र एवं प्रतीप अभिक्रियाओं की दर समान रूप से घटाता है, अतः सम्यावस्था प्राप्त करने में अधिक समय लगता है।

pH मान

किसी विलयन का pH मान उस विलयन में उपस्थित हाइड्रोजन आयनों के मोल प्रति लिटर में सान्द्रता का ऋणात्मक लघुगुणक  होता है अथवा हाइड्रोजन आयन सान्द्रता के व्युत्क्रम का लघुगुणक होता है।

अथवा

किसी जलीय विलयन का pH मान उसमें उपस्थित हाइड्रोजन आयनों के मोल प्रति लिटर में 10 के आधार पर व्यक्त सान्द्रण के ऋणात्मक घात का संख्यात्मक मान होता है।

बफर विलयन

ऐसा विलयन जिसमें थोड़ी मात्रा में अम्ल या क्षार मिला देने पर उसके pH मान में कोई परिवर्तन नहीं होता है, बफर विलयन कहलाता है। ऐसे विलयन की अम्लता या क्षारकता आरक्षित (reserved) रहती है।

बफर विलयन दो प्रकार के होते हैं-

  1. एकल पदार्थों के विलयन-एक दुर्बल अम्ल और दुर्बल क्षार से बने लवण का विलयन, जैसे-अमोनियम ऐसीटेट का विलयन बफर का कार्य करता है।

(2) मिश्रणों के विलयन- इन्हें पुनः दो प्रकारों में बाँटा गया है-

(a) अम्लीय बफर (Acidic Buffer)-यह दुर्बल अम्ल व इस अम्ल के किसी प्रबल क्षारक के बने हुए लवण को विलयन में मिश्रित करने पर बनता है। उदाहरणार्थ-(i) ऐसीटिक अम्ल व सोडियम ऐसीटेट के विलयनों का मिश्रण;

इनमें थोड़ी मात्रा में प्रबल अम्ल या प्रबल क्षार मिला देने पर अथवा तनु करने पर इनके pH मान में कोई परिवर्तन नहीं होता।

  1. क्षारकीय बफर –  यह दुर्बल क्षार व इसके प्रबल अम्ल के साथ बने लवण के विलयनों को मिश्रित करने से बनता है। उदाहरणार्थ-अमोनियम क्लोराइड व अमोनियम हाइड्रॉक्साइड विलयनों का मिश्रण।

बफर क्षमता या बफर सूचकांक

यह किसी बफर विलयन के एक लिटर के लिए आवश्यक अम्ल या क्षार के मोलों की वह संख्या है जो इसके pH मान में

एक इकाई का परिवर्तन कर देता है।

बफर विलयन का महत्त्व

1.मानव शरीर की अनेक जीव-रासायनिक क्रियाएँ निश्चित pH मान के माध्यम में होती हैं, जैसे-आमाशय में पेप्सिन एन्जाइम केवल 1.4 से 2 pH तक कार्य करता है।

2.हमारे रक्त में एक बफर तन्त्र  पाया जाता है जो रक्त के pH को 7.4 के निकट बनाये रखता है,

  1. रासायनिक क्रियाओं के वेग का अध्ययन करते समय pH मान को स्थिर रखने में।
  2. बैक्टीरियोलॉजिकल अनुसंधान में,
  3. चमड़ा पकाने में

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