रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय | भावपक्ष एवं कला पक्ष | दिनकर की भाषा शैली

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रामधारी सिंह दिनकर‘ का जीवन परिचय

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिन्दी के प्रमुख कवि, लेखक व निबन्धकार है। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। ‘दिनकर’ स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद इन्हें ‘राष्ट्रकवि’ के नाम से जाना गया। वे छायावादोत्तर कवियों में से एक है।

इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर से आरम्भ हुई। विद्यार्थी जीवन से ही कविता लिखने का शौक था। हाईस्कूल पास करने के बाद ही आपने ‘प्राण भंग’ नामक काव्य पुस्तक लिखी जो सन् 1929 में प्रकाशित की गयी। सन् 1932 में बी. ए. परीक्षा उत्तीर्ण करके आपने एक उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रधान अध्यापक के पद पर कार्य किया।

हिंदी के उत्थान के लिए दिनकर जी ने महत्वपूर्ण कार्य किए। हिंदी साहित्य के महान कवि दिनकर जी का सन 1974 ईस्वी में मृत्यु हो गई।

कृतियाँ-

इनकी प्रमुख काव्य-रचनाएँ—(1) रेणुका, (2) हुंकार, (3) कुरुक्षेत्र तथा (4) उर्वशी (5) खण्डकाव्य-रश्मिरथी, (6) परशुराम की प्रतीक्षा,

नोट- यदि आप कवि का जीवन परिचय लिख रहे तों आप को भाव पक्ष एवं कलापक्ष लिखना पड़ेगा| और अगर आप लेखक का जीवन परिचय लिख रहे है तों आप भाषा शैली को लिखेंगे,

रामधारी सिंह दिनकर का भावपक्ष एवं कला पक्ष

भावपक्ष

रामधारी सिंह दिनकर जी राष्ट्रीय कवि हैं, जो अतीत के सुख स्वप्नों को देखकर उनसे उत्साह व प्रेरणा ग्रहण करते हैं। उन्होंने गरीबों मजदूरों तथा किसानों के प्रति अपनी संवेदनाएं तथा विशेष सहानुभूति अपने गीतों के माध्यम से प्रकट की,  वर्तमान पर तरस व उनके प्रति विद्रोह की भावना जाग्रत करते हैं। इसलिये उन्हें क्रान्तिकारी उपादानों से अलंकृत किया है। उनका उद्देश्य था कि वह अपने गीतों के माध्यम से  मजदूर तथा गरीबों के ऊपर हो रहे अत्याचारों  के विरुद्ध एक क्रांति लाना चाहते थे हिंदी काव्य का अध्ययन करने तथा सुनने वाले को आनंद की अनुभूति होती है

दिनकर जी को अपने देश से लगाव था तथा वहां अपने गीतों के माध्यम से देश की हित के लिए सदैव तत्पर रहते थे।

कला पक्ष

इनकी रचनाएँ में खड़ीबोली का प्रयोग हुआ हैं। भाषा संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ उर्दू-फारसी के प्रचलित शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। आधुनिक मुहावरों एवं अलंकर का प्रयोग बहुत अच्छे से देखने को किया है। इनके रचनाओ की शैली ओजपूर्ण प्रबन्ध शैली है, जिसके माध्यम से इन्होंने राष्ट्रीयता की भावना को व्यक्त किया है। कहीं-कहीं देशज शब्दों के साथ-साथ मुहावरों का प्रयोग भी उनकी भाषा में मिल जाता है। विषय के अनुरूप उनकी शैली के विविध रूप दिखाई पड़ते है|

 

नोट- अगर आप लेखक का जीवन परिचय लिख रहे है तों आप भाषा शैली को लिखेंगे, और यदि आप कवि का जीवन परिचय लिख रहे तों आप को भाव पक्ष एवं कलापक्ष लिखना पड़ेगा|

रामधारी सिंह दिनकर की भाषा शैली

इनके काव्य में सभी रसों का समावेश देखने को मिलता है, लेकिन इनके काव्य में वीर रस की प्रधानता है। कविता का एक-एक शब्द आकर्षक होता है। इनकी रचनाएँ में खड़ीबोली का प्रयोग हुआ हैं। भाषा संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ उर्दू-फारसी के प्रचलित शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। आधुनिक छन्दों का प्रयोग बहुत अच्छे से देखने को किया है। इनके रचनाओ की शैली ओजपूर्ण प्रबन्ध शैली है, जिसके माध्यम से इन्होंने राष्ट्रीयता की भावना को व्यक्त किया है। कहीं-कहीं देशज शब्दों के साथ-साथ मुहावरों का प्रयोग भी उनकी भाषा में मिल जाता है। विषय के अनुरूप उनकी शैली के विविध रूप दिखाई पड़ते है|

रामधारीसिंह ‘दिनकर’ का साहित्यिक योगदान

‘दिनकर’ जी दार्शनिकता और निराशा से दूर सामाजिक चेतना को जागृत करने वाले कवि हैं। ‘रेणुका’ और ‘हिमालय’ नामक काव्य-रचनाओं में इनकी क्रान्तिकारी भावनाओं के दर्शन होते हैं। उनके काव्य में राष्ट्र प्रेम के साथ-साथ विश्व प्रेम, प्रगतिवाद, प्रकृति-चित्रण आदि के भी स्वाभाविक एवं मनोहारी वर्णन मिलते हैं। राष्ट्रीयता के साथ-साथ उनके काव्य में युगबोध और प्रकृति-चित्रण का भी सुन्दर समावेश है।

रामधारीसिंह ‘दिनकर‘ राष्ट्रीय जीवन की आकांक्षाओं के प्रतिनिधि कवि माने गये हैं। इनकी कविताओं में राष्ट्र-प्रेम, अन्याय तथा शोषण के प्रति आवाज उठी है।

गद्य और काव्य विधाओं में दिनकर जी का समान अधिकार था। उन्हें अपने देश और संस्कृति से बहुत लगाव था, इसलिए उन्होंने लेख समाज, जीवन व देश आदि विषयों पर बहुत ही विशेष लेख लिखे। राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित कविताएँ लिखने के लिए उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ का सम्मान मिला। राष्ट्रकवि का सम्मान देकर राष्ट्र ने उनके प्रति कृतज्ञता का परिचय दिया है।

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राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का काव्यगत परिचय दीजिए

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