विद्युत अपघटनी चालकता

विद्युत अपघटनी चालकता | संक्षारण | तुल्यांकी चालकता | BEST NOTES

विद्युत अपघटनी चालकता 

विद्युत धारा की वह मात्रा जो कि विलयन में प्रवाहित हो सकती है. वह उसकी चालकत्व कहलाता है, चालकत्व प्रतिरोध के व्युत्क्रम के बराबर होता है, 

चालकत्व की इकाई को ओम (ohm) के व्युत्क्रम (ओम) में व्यक्त किया जाता है अर्थात म्हो (mho) या सीमेन्स  द्वारा व्यक्त करते हैं | 

विद्युत अपघटनी चालकत्व को प्रभावित करने वाले कारक : 

विद्युत अपघट्य  की प्रकृति:  विलयन की चालकत्क, विद्युत अपघटूय की प्रकति पर निर्भर करती है सामान्यत: विलयन में प्रबल विद्युत अपघट्य का आयनन अत्यधिक होता है फलस्वरूप इनकी चालकत्व भी अधिक होती है जबकि दुर्बल विद्युत अपघट्य कम आयनित होते  हैं । अतः विद्युत प्रवाह भी कम करते हैं । 

विलयन की सांद्रता  सामान्यतः: जब दुर्बल अपघटूय के विलयन को तनु किया जाता है तो विलयन का चालकत्व बढ़ता है॥ (क्योंकि दुर्बल अपचघट्य को तनु करने पर उसकी वियोजन की दर बढ़ती है फलस्वरूप विलयन में आयनों की कुल संख्या बढ़ती है तथा ara की गतिशीलता भी बढ़ती है) |

ताप – जब ताप बढ़ाया जाता है तो सभी आकर्षण बल कमजोर हो जाते हैं एवं वियोजन बढ़ता है फलस्वरूप विलयन का ताप बढ़ाने पर चालकत्व बढ़ता है। 

आयनन की मात्रा – आयनन की मात्रा बढ़ने पर विलयन की चालकत्व बढ़ जाता है 

अन्यर आयनिक आकर्षणः अन्तर आयनिक आकर्षणः बढ़ने से आयनों की गतिशीलता घट जाती है | 

श्यानता-  श्यानता  बढ़ाने पर विद्युल अपघटूय का चालकत्व घट जाता  है क्‍योंकि आयनों की गतिशीलता घट  जाती है | 

(॥) मोलर चालकता एवं तुल्यांकी चालकता ‘ 

(a) मोलर चालकता :

यदि किसी विलयन में विद्युत अपघटय का एक मोल विलेय हो तो 1 सेमी दूरी पर समान्तर इलेक्ट्रोडों के मध्य उस विलयन की चालकता को मोलर चालकता कहते हैं |

तुल्यांकी चालकता :

यदि किसी विलयन में विद्युत अपघदट्य का एक वुल्यांक विलेय हो, तो 1 सेमी दूरी पर स्थित दो समान्तर इलेक्ट्रोडों के मध्य की चालकता को तुल्यांकी चालकता कहते हैं |

मोलर चालकता पर तनुकरण का प्रभाव : वैद्युत अपघट्य के वियोजन की मात्रा तनुकरण के साथ बढ़ती है, मोलर चालकता, भी बढ़ती है लेकिन प्रबल वैद्युत अपघटयों के लिए कम और दुर्बल वैद्युत अपघटनयों के लिए अधिक होती है। 

मोलर चालकता को प्रभावित करने वाले कारक : 

वैद्युत अपघट्य की प्रकृति : KCl, HCl , KOH आदि प्रबल वैद्युत अपघट्य जलीय घोल में पूरी तरह से आयनित होते हैं और मोलर चालकता, का उच्च मान रखते हैं।

विलयन की सांद्रता : प्रबल वैद्युत अपघट्य के सान्द्रित विलयन महत्वपूर्ण अतंरआयनिक आकर्षण रखते हैं जो आयनों की गति को कम करते हैं और मोलर चालकता, के मान को भी कम करते हैं। 

तापमान : तापमान मैं वद्धि से अंतर-आयनिक, आयनों का साल्वेशन, श्यानता कम हो जाती है और आयनों की गतिज ऊर्जा और उनकी गति बढ़ जाती है इस प्रकार मोलर चालकता . तापमान के साथ बढ़ता है। 

विलायक की श्यानता ; श्यानता का मान जितना अधिक होता है मोलर चालकता का मान उतना ही कम होता है। 

विलायक का परावैद्युत स्थिरांक : विलायक के परावैद्युत स्थिर का मान जितना अधिक होता है, उतना ही मोलर चालकता का मान अधिक होगा

संक्षारण

आधारभूत तौर पर संक्षारण एक वैद्युत रासायनिक अपघटन है। लोहे पर जंग लगना, चांदी का विकतिकरण, तांबे तथा कांसा पर हरे कवच का विकास इत्यादि संक्षारण के उदाहरण है। 

संक्षारण में, धातु ऑक्सीजन को इलेक्ट्रोन देकर स्वयं ऑक्सीकत होता है तथा ऑक्साइड बनाता है। आयरन का अपक्षय (जिसको सामान्यतया रस्टिंग या जंग लगना कहते हैं।) जल तथा वायु (ऑक्सीजन) की उपस्थिति में होता है।

संक्षारण का विद्युत रासायनिक सिद्धान्त 

इस सिद्धान्त के अनुसार, पथक्‌ एनोड एवं कैथोड भाग या क्षेत्रों जिनके बीच विलयन में विद्युत धारा प्रवाहित होती है, के कारण संक्षारण होता है। एनोडिक क्षेत्रों में ऑक्सीकरण क्रिया होने से धातु, आयनों या संयुक्त अवस्था में, बनने के कारण नष्ट हो जाता है। अतः संक्षारण हमेशा एनोड भाग पर होता है।

सक्षारण को प्रभावित करने वाले कारक 

  1. धातुओं की क्रियाशीलता : अधिक क्रियाशील धातु अधिक सरलता से संक्षारित होते हैं।
  2. अशुद्धियों की उपस्थिति : अशुद्धियों की उपस्थिति संक्षारण सेल के बनाने में सहायक होती है जिससे संक्षारण की गति बढ़ जाती है, जैसे उत्कष्ट धातुओं की अशुद्धि Pt, Au, Pd इत्यादि | 
  3. वायु एवं आर्द्रता : संक्षारण में वायु एवं आर्द्रता बहुत सहायक होते हैं।
  4. धातु में तनाव : तनावयुक्त भाग जैसे मोड, खरोंच, खाँचा कटे भाग, वेल्डिंग हिस्से आदि अधिक संक्षारित होते हैं | 
  5. विद्युत-अपघट्यों की उपस्थिति : संक्षारण के वेग को विद्युत-अपघटयों की उपस्थिति भी बढ़ा देती है|

सक्षारण से बचाव या सुरक्षा 

कई तरीकों के द्वारा संक्षारण को रोका जा सकता है इनमें से कुछ को नीचे दर्शाया गया है। 

  1. धातु सतह को पेंट से सुरक्षित किया जाता है जो इसे वायु, नमी आदि के संपर्क से तब तक बचाये रखता है जब तक की पेंट में दरार नही हो जाती हैं। 
  2. मशीनरी तथा लोहे के औजार की सतह पर ग्रीस तथा तेल की परत द्वारा लोहे को जंग से बचाया जा सकता हैं जो लोहे की सतह को हमेशा नमी ऑक्सीजन तथा कार्बन डाई ऑक्साइड से बचाये रखता है। 
  3. लोहे की सतह को असंक्षारक धातुओं जैसे निकिल, क्रोमियम, एत्यूमिनियम (इलेक्ट्रोप्लेटींग द्वारा) या टिन, जिंक आदि (गलित  धातु में लोहे को डुबोकर) से आवरित किया जाता है। इस तरह यह लोहे की सतह को ऑक्सीजन तथा जल की पुनः पूर्ति से अवरूद्ध कर देता है। 
  4. लोहे की सतह को फास्फेट या अन्य रसायनों से आवरित किया जाता है जो मजबूत॑ एवं अविलेय परत बनाने में सहायक होते है। यह लोहे की सतह को हवा तथा नमी के सम्पर्क में आने से बचाते है।

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