शरणार्थियों की समस्या एवं देशी राज्यों का विलीनीकरण
- सन् 1947 में भारत की स्वतन्त्रता के साथ-साथ भारत विभाजन हुआ।
- भारत विभाजन का परिणाम भारत और पाकिस्तान दो देशों के रूप में हुआ।
- इस विभाजन की खबर फैलते ही भारत व पाकिस्तान में साम्प्रदायिक दंगों का ऐसा भयंकर व विकराल ताण्डव हुआ जिसकी हृदय विदारक कल्पना भी मन मस्तिष्क को हिला देती है।
- भारत विभाजन के फलस्वरूप सर्वप्रथम साम्प्रदायिक दंगे पूर्वी पंजाब व पश्चिमी पंजाब में आरंभ हुए। इन दंगों ने दोनों देशों भारत और पाकिस्तान की कड़वाहट ओर बढ़ा इन साम्प्रदायिक दंगों को अंग्रेजों ने प्रोत्साहित कर पारस्परिक नरसंहार का काला अध्याय भारतीय इतिहास में जोड़ दिया। इन दंगों ने आम जनता में ही नहीं सैन्य संगठन में भी अपना प्रभाव दिखाया।
- भारत विभाजन के पीछे भी अंग्रेजों ने अपनी कुटिल चाल चली व साम्ग्रदायिकता की आग को भड़काकर दोनों देशों भारत व पाकिस्तान को आपस में लड़वाया जिससे ये देश कमजोर बने रहें।
- इन साम्प्रदायिक दंगों की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन दंगों में लाखों लोग मारे गये परन्तु उन मृतकों की संख्या का विश्वसनीय हिसाब न भारत में है और न ही पाकिस्तान में ।
- विभिन्न विद्वानों व इतिहासकारों ने इन दंगों में मरने वाले लोगों की संख्या का अनुमान भिन्न-भिन्न लगाया है। पंजाब के पहले भारतीय गवर्नर सर चन्दूलाल द्विवेदी इन दंगों में मरने वाले लोगों की संख्या 2,25,000 के लगभग बताते हैं, वहीं न्यायाधीश जी.डी. खोसला इन आँकड़ों को 5,00,000 बताते हैं। इन विभिन्न अनुमानों के पश्चात् भी यह तो निश्चित ही है कि इन दंगों में मरने वाले लोगों की संख्या लाखों में थी।
- इन दंगों के कई भयावह परिणाम सामने आये। इन दंगों ने दोनों देशों में कई समस्याओं का अम्बार लगा दिया। जन-धन की हानि का अनुमान लगाना असंभव – सा प्रतीत होता है। भारत का यह विभाजन दु:खों व त्रासदी का पर्याय था।
भारत विभाजन के कारण
- 14 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को माउण्टबेटन योजना के अन्तर्गत भारत और पाकिस्तान का जन्म भारत विभाजन के परिणाम के रूप में हुआ। भारत विभाजन के लिए विभिन्न कारक उत्तरदायी थे। इसमें से कुछ निम्न हैं
- मुस्लिम वर्ग, हिन्दू वर्ग से पूर्णतः: सामंजस्य नहीं बैठा पाया। जबकि ये दोनों वर्ग कई सदियों तक साथ में रहे। परन्तु मुस्लिम वर्ग की धर्मान्धता ने मुस्लिम वर्ग को हिन्दू धर्म से अलग रखा।
- इस भावना को मुस्लिम लीग, मोहम्मद अली जिन्ना, इकबाल आदि ने प्रोत्साहित किया व जिसका परिणाम भारत विभाजन के रूप में देखने को मिला।
- मुस्लिम व हिन्दू वर्ग को साम्प्रदायिकता की आड़ में अलग-अलग रखने की अंग्रेजों की कुटिल नीति ने मुस्लिम व हिन्दुओं को एक जुट नहीं रहने दिया। अंग्रेजों ने मुस्लिम वर्ग को संरक्षण प्रदान किया जिससे मुस्लिम वर्ग के पृथक देश की भावना को बल मिला।
- कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति ने मुस्लिम वर्ग की कई अनुचित मांगों को भी मान लिया। इसी अनुचित मांग की श्रृंखला में 1916 में हुए लखनऊ समझौते ने भारत विभाजन की नींव रखी व मुस्लिम वर्ग के हौंसले बुलंद हुए।
- अंत्तरिम सरकार में मुस्लिम लीग के सदस्यों को शामिल किये जाने से सरकार हिन्दू-मुस्लिम दंगों को रोकने हेतु सशक्त निर्णय नहीं ले सकी व हिन्दू-मुस्लिम दंगों की भयावहता ने कांग्रेस को भारत विभाजन स्वीकार करने हेतु बाध्य कर दिया।
भारत विभाजन से उत्पन्न शरणार्थी समस्या
भारत विभाजन ने दोनों देशों में विभिन्न समस्याओं को जन्म दिया। इन समस्याओं में शरणार्थी की समस्या सबसे बड़ी तात्कालिक समस्या थी।
भारत से पाकिस्तान जाने वाले लोग पाकिस्तान में शरणार्थी बने वहीं पाकिस्तान से आने वाले लोग भारत में शरणार्थी बने। पाकिस्तान से भारत आने वाले शरणार्थियों की संख्या लगभग एक करोड़ थी वहीं भारत से पाकिस्तान जाने वाले शरणार्थी भी एक करोड़ के लगभग थे। भारत में सिक्ख शरणार्थी अधिकांशत: तराई क्षेत्रों में बसे ।
भारत विभाजन से उत्पन्न शरणार्थी समस्या ने दोनों राष्ट्रों को प्रभावित किया। दोनों राष्ट्रों के लिए शरणार्थियों को बसाने की समस्या, शरणार्थियों की सम्पत्तियों के निपटारे की समस्या प्रमुख समस्या थी।
शरणार्थियों को बसाने की समस्या
दोनों ही देशों में लगभग एक-एक करोड़ शरणार्थी अपनी दयनीय अवस्था लिए सरकारों से पुनर्वास की आशा लगाये हुए थे। परन्तु एक साथ इतने लोगों का पुनर्वास एक कठिन कार्य था।
इस समस्या ने देश की खाद्यान्न व्यवस्था, आवास व्यवस्था, आर्थिक व्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था, प्रशासनिक व्यवस्था आदि को असमर्थ व असहाय कर दिया था।
व्यवस्था को संतुलित करने हेतु बनाई गई “आपात समिति” जिसके अध्यक्ष लार्ड माउण्टबेटन थे, ने राहत कार्यों में बहुत मदद की। शरणार्थियों को बसाने के लिए समय की आवश्यकता थी अतः यह कार्य धीरे-धीरे सम्पन्न हुआ।
शरणार्थियों की सम्पत्तियों के निपटान की समस्या है
दोनों देशों के शरणार्थी अपनी-अपनी सम्पत्ति छोड़कर भारत से पाकिस्तान व पाकिस्तान से भारत आये अतः दोनों सरकारों के समक्ष शरणार्थियों की सम्पत्तियों के निपटान की समस्या भी खड़ी हो गई थी।
इस समस्या पर भारत व पाकिस्तान के मध्य कई बार बातचीत हुई परन्तु भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण व सुझावों से यह समस्या सुलझ न सकी। अतः भारत से पाकिस्तान गये शरणार्थियों की सम्पत्ति का प्रयोग भारत आये शरणार्थियों हेतु करने का निश्चय किया गया तथा 1956 में दोनों सरकारों ने एक समझौते के तहत . शरणार्थियों के बैंक खातों, लॉकरों एवं स्थिर जमा को हस्तांतरित करने पर सहमति प्रकट की।
सन् 1950 में भारत पाकिस्तान के तात्कालीन प्रधानमंत्रियों जवाहरलाल नेहरू एवं लियाकत के मध्य शरणार्थियों की स्थायी सम्पत्तियों को वापस करने या स्थानान्तरित करने संबंधी समझौता हुआ। इस समझौते को नेहरू लियाकत समझौता कहा जाता है।