पादप वृद्धि एवं परिवर्धन | पादप वृद्धि की प्रावस्थायें | padap brahdi

पादप वृद्धि एवं परिवर्धन 

 

  • वृद्धि सभी जीवधारियों का लाक्षणिक विशेषताएं है | 
  • वृद्धि एक जैविक प्रक्रिया है, जो कि किसी पादप तथा उसके भागों में स्थायी व एक दिशीय परिवर्तन लाता है।
  • वृद्धि सफल उपापचय का अंतिम उत्पाद है, अर्थात्‌ वृद्धि के उपरांत उपचयी क्रियाएं, अपचयी क्रियाओं से अधिक प्रभावी होती हें।
  • पादप में वृद्धि स्थानीकृत जबकि जंतुओं में वृद्धि सभी ओर होती है। (पौधों के तनें पर कील ठोकने पर कुछ वर्षों पश्चात्‌ भी वहीं रहती है)
  • परिवर्धन एक क्रिया है जिसमें कोशिकाएं अपने रूप तथा कार्यों में परिवर्तन कर पादप-चक्र में आवश्यक ऊतक, अंग तथा संरचनाओं का निर्माण करती हैं। यह बीजाण्ड के निषेचन के पश्चात्‌ प्रथम कोशिका विभाजन के साथ प्रारंभ हो जाता है तथा बीज परिवर्धन, बीज-अंकुरण,नन्हे  पादपों का विकसित पादपों में विकास, पुष्पीकरण तथा अगली पीढ़ी के लिए बीजाण्ड का उत्पादन इत्यादि के साथ निरंतर चलता रहता है। कोशिका मृत्यु तथा जीर्णता प्रक्रियाएं भी इसके अंतर्गत आती हैं। इस काल के उपरांत, एक जटिल शरीर संगठन का निर्माण होता है जो मूल, पत्तियों, टहनियों, पुष्पों, फलों तथा बीजों का उत्पादन करता है तथा अंतिम में मर जाता है। ।

 

पादप वृद्धि – 

  • पादप वृद्धि सामान्यतः अपरिमित होती है
  • पादप वृद्धि अनूठे ढंग से होती है; क्योंकि पौधे जीवन भर असीमित वृद्धि की क्षमता को अर्जित किए होते हैं। इस क्षमता का कारण उनके शरीर में कुछ खास जगहों पर विभज्योतक ऊतकों की उपस्थिति है। ऐसे विभज्योतकों की कोशिकाओं में विभाजन एवं स्वअविरत (निरंतरता) की क्षमता होती है। ये कोशिकाएं विभाजन की क्षमता खो देती हैं, तथा बाद में पादप शरीर की रचना करती हैं।
  • कुछ पादपों के भाग परिमित होते हैं तथा अन्य भाग अपरिमित होते हैं। एक परिमित भाग कुछ निश्चित आकार तक वृद्धि कर रूक जाता है, तथा जीर्णता की ओर जाते हुए मर जाता है। (जैसे-पत्तियां, फूल तथा फल)। दूसरी ओर, वर्धी तना तथा जड़, अपरिमित भाग हे। ये विभज्योतक द्वारा वृद्धि करते हैं तथा निरंतर पुनः पूर्ति करते हैं। जब एक अपरिमित वर्धी विभज्योतक जनन करने लगता है (अर्थात्‌ फूल का पुनः बनना), तब वह परिमित हो जाता है। 
  • पादपों में तीन विभज्योतक क्षेत्र पाए जाते हें-शीर्षस्थ, अन्तर्विष्ट तथा पार्श्व।

 

-शीर्षस्थ विभज्योतक : ये विभज्योतक प्ररोह एवं मूल शीषों पर स्थित होते हैं। इन विभज्योतक की सक्रियता के परिणामस्वरूप पादप लंबाई में वृद्धि करता है। आवृतबीजी और अनावृतबीजी में विभज्योतक कोशिकाओं का समूह होता है कितु ब्रायाफाइट्स ओर टेरिडोफाइट्स में एकल चतुष्फलकीय कोशिका, प्ररोह शीर्ष पर उपस्थित रहती हे। 

 

– अंतर्विष्ट विभज्योतक: ये . विभज्योतक के ऊपर स्थित होते हैं, इन विभज्योतक की सक्रियता के परिणामस्वरूप लंबाई में वृद्धि होती है। उदाहरणबाँस। 

 

पार्श्व विभज्योतक : ये विभज्योतक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है जो केवल अरीय  दिशा में विभाजन करती हैं। कॉर्क एधा (फेलोजन) ओर संवहन एथा पार्श्व विभज्योतक के उदाहरण होते हैं। प्ररोह और जड़ों की चौड़ाई में वृद्धि एथधा की सक्रियता के कारण होती है। इसे पादप का द्वितीयक वृद्धि कहा जाता हेै।

representation of location of root apicals meristem, shoot aplical meristem and vascular cambium

वृद्धि माप योग्य है

  • वृद्धि मुख्यतः जीवद्रव्य मात्रा में वृद्धि का परिणाम है। चूंकि जीवद्रव्य की वृद्धि को सीधे मापना कठिन है किन्तु वृद्धि को विभिन्‍न मापदंडों द्वारा मापा जाता है जो कम या ज्यादा जीवद्रव्य की मात्रा के अनुपात में होता है।
  • पादपों में वृद्धि अर्थात्‌ पादप या पादप भागों के आकार, प्रकार, भार व आयतन में वृद्धि है। वृद्धि के कारण ताजा भार, शुष्क भार लम्बाई, क्षेत्रफल आयतन तथा कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है तथा जिनका नियंत्रण बाह्य स्तर पर (वातावरणीय कारकों द्वारा) व आंतरिक स्तर (केन्द्रक तथा जीवद्रव्य द्वारा) पर होता हे।

पादप वृद्धि की प्रावस्थायें – 

  • वृद्धि की अवधि को तीन अवस्थाओं में विभक्त किया गया हैमेरिस्टेमेटिक, बढ़ोत्तरी तथा परिपक्वता।
  • कोशिका निर्माण प्रावस्था : यह अवस्था तने तथा जड़ के शीर्षस्थ विभज्योतकों में सीमित रहती है। इस भाग की कोशिकाएं निरंतर विभाजित होती रहती हैं तथा संख्या में बढ़ती रहती हैं। इन कोशिकाओं में पर्याप्त जीवद्रव्य, बड़ा केन्द्रक तथा पतली सेलुलोस-भित्ति होती है।
  • कोशिका-विवर्धन प्रावस्था : यह अवस्था निर्माण-अवस्था वाली कोशिकाओं के ठीक नीचे पाई जाती है। इस अवस्था में अनेक छोटी-छोटी रिक्तिकाएँ बन जाती हैं। इनमें जल तथा उसमें घुलित पदार्थ एकत्र होते रहते हैं और अन्त में सभी रिक्तिकाएँ जुड़कर एक बडी रिक्तिका बनाती हैं। यह बड़ी रिक्तिका कोशिका के केन्द्र में इस प्रकार स्थित होती है कि केन्द्रक एवं कोशिकाद्रव्य (०शकाबशा) कोशिका-भित्ति की आन्तरिक सतह पर एक पतली परत के रूप में सटा रहता है जिसे कोशिका दृति कहते हैं।

 

  • कोशिका परिपक्वता-प्रावस्था या विभेदीकरण प्रावस्था : परिपक्वता-प्रावस्था कोशिका-निर्माण तथा कोशिका विवर्धन प्रावस्थाओं का अनुसरण करते हुए विशिष्ट विकसित ऊतकों का विकास करती है, उदाहरण: कुछ कोशिकाओं का दारु वाहिकाओं तथा वाहिनिकाओं में विभेदित हो जाना तथा अन्यों का चालनी नलिकाओं तथा सखी कोशिकाओं में।

parallel line technique zones of elongation as A,B,C,D immediaely behind the apex

पादप वद्धि दर: 

  • प्रति इकाई समय के दौरान हुई वृद्धि को वृद्धि दर कहते हं। 
  • यह दो प्रकार से होती है
  • अंकगणित वद्धि : इसमें एक कोशिका से दो नई कोशिकाओं का निर्माण होता हे (सूत्री विभाजन द्वारा) जिनमें से एक संतति कोशिका लगातार विभाजित होती रहती है जबकि दूसरी विभेदित व परिपक्व हो जाती हे। (विभाजित होना रुक जाती हैं)।

 

ज्यामितीय/चरघातांकी वृद्धि : इसमें विभाजित कोशिका से निर्मित समसूत्री विभाजन द्वारा व दोनों ही संतति कोशिकाओं में विभाजन की प्रवृत्ति होती है व वे विभाजित होती रहती है। – उदा, सभी कोशिकाएं, ऊतक, पादप अंग, परिपक्व होते बीज, अंकुरित होते बीज, मौसमी क्रियाएं आदि। इसे गणितीय रूप से इस प्रकार निरूपित करते हैं।

वृद्धि को समय के विपरीत रखने पर, एक विशेषतासूचक सिग्मॉयड या $-आरेख प्राप्त होता है।

– इसकी तीन प्रावस्थाएं होती हैं:

  • प्रगामी प्रावस्था : इस प्रारंभिक काल में वृद्धि धीमी रहती है। यह निर्माण या कोशिका विभाजन प्रावस्था प्रदर्शित करती हे। 
  • लॉग चरण“ घातांकी प्रावस्था : इसे घातांकीय काल भी कहते हैं, जिसमें वृद्धि तेज व अधिकतम होती है। यह कोशिका दीर्घीकरण प्रावस्था प्रदर्शित करती है।
  • अप्रगामी प्रावस्था: यह कोशिका परिपक्वन प्रावस्था दर्शाती है। |

_वृद्धि की अवस्थाओं में लगने वाले समय (मुख्यतः लॉग चरण) को वृद्धि का समग्र काल कहा जाता है।

  • जीव तंत्र की वृद्धि के मध्य की मात्रिक तुलना विधियों द्वारा मापी जा सकती हैः
  • परम/निरपेक्ष वृद्धि दर : मापन व प्रति इकाई समय में हुई कुल वृद्धि की तुलना।
  • सापेक्ष वृद्धि दर : प्रति इकाई समय में हुई वृद्धि को सामान्य आधार जेसे-पादप-भागों प्रति इकाई प्रारम्भिक मापदंड। सापेक्ष वृद्धि दर सामान्यतः तरूण विकासशील पादप भागों में अधिक पायी जाती है।

पादप वृद्धि का मापन

नीचे दी गयी विधियां वृद्धि को लंबाई में मापने के लिए योजित की गयी हैं

  • .बोस प्रत्यक्ष विधि : किसी भी अंकित दो बिंदुओं के बीच की दूरी को निश्चित अंतराल पर स्केल द्वारा मापा जा सकता है। 
  • बोस का क्षैतिज सूक्ष्मद्शी . 
  • बोस का क्रेस्कोग्राफ : यह वृद्धि को 10,000 गुना बढ़ाकर दर्शाता है।
  • वृद्धिमापी 
    • आर्क-वृद्धिमापी 
    • फेफर का वृद्धिमापी 
    • माइक्रोमीटर स्क्र-वृद्धिमापी .

दक्षता सूचक-

  • इकाई समय में पादप अंगों के आकार अथवा क्षेत्र (पत्ती, पुष्प, फल आदि) में होने वाली वृद्धि को दक्षता सूचक कहते हैं। दक्षता सूचक का मान भिन्न-भिन्न जातियों एवं भिन्न-भिन्न अंगों में अलग-अलग होता हे।