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सार्थक अंक की परिभाषा (Sarthak ank ki paribhasha)

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सार्थक अंक की परिभाषा

जब किसी भौतिक राशि का मापन किया जाता है तो शुद्ध रूप में व्यक्त करने के लिए कुछ अंकों की आवश्यकता होती है अर्थात किसी भौतिक राशि के शुद्ध को व्यक्त करने के लिए जिन अंको का उपयोग होता है अंको को सार्थक अंक कहते हैं 

सार्थक अंक (Significant Figure )

प्रत्येक वैज्ञानिक अवलोकन में कुछ सीमा तक अनिश्चितता रहती है । यह अवलोकनकर्ता की क्षमता तथा उपकरण की सीमा पर निर्भर होती है । यदि हम नाप का सही आकलन करना चाहते हैं तो नाप को वैज्ञानिक रिपोर्ट को इस प्रकार प्रस्तुत करना होगा कि पढने  (Reading) की धारणा यह बतलावे कि अंकों की सार्थकता, दाहिने तरफ के अंकित अंक, जो कि अनिश्चित होता है तक सही हो । 

उदाहरण – जब पेंसिल की लम्बाई को 15.43 बतलाया जाता है तो यह पता लगाना है कि अंक 1, 5 और 4 सही है 

जबकि अंक 3 जो कि सबसे दाहिने अंक में है अननिश्चित या  संशययुक्त होता है । 

उदाहरण :- मान लीजिए पेंसिल की लम्बाई निम्न प्रकार दर्शाई 

गई – 

15 से.मी., 

15.0 से.मी., 

15.00 से.मी. 

यद्यपि तीनों पाठ्यांक एक समान दिखलाई देते हैं परन्तु इनका वैज्ञानिक अर्थ अलग अलग  है जैसे – 

(1) पाठ्यांक 15 सेमी. में (1)एक निश्चित अंक (1 एवं 5 )  एक अनिश्चित अंक (5) है | 

(2) पाठ्यांक 15.0 सेमी. में दो निश्चित अंक (1 एवं 5) तथा एक अनिश्चित अंक (0) है | 

(3) पाठ्यांक 15.00 सेमी. में तीन निश्चित अंक (1,5 एवं 0) तथा एक अनिश्चित अंक ( 0 ) है जो  सबसे दाहिने अंत में है । 

अतः वैज्ञानिकों ने माप की परिशुद्धता दर्शाने के लिये इसे सार्थक अंक (Significant Figure) कहा । अर्थात् सार्थक अंक वह अंक है जो सभी निश्चित अंक तथा एक अनिश्चित अंक का योग होता है । 

उदाहरण -पाठ्यांक 15.43 में तीन निश्चित अंक (1, 5 और 4 ) तथा एक अनिश्चित अंक ( 3 ) है इस प्रकार कुल चार सार्थक अंक उपस्थित है । इस प्रकार सार्थक अंक हमें यह जानकारी देते हैं कि सबसे दाहिने अंतिम अंक को छोड़कर सभी अंक परिशुद्ध एवं पुनः प्राप्य (Precise and reproducible) है। 

अर्थात् किसी मापन के परिणाम को पूर्ण रूप से प्रदर्शित करने के लिये शून्य से नौ (9) तक के अंकों में से न्यूनतम संख्या में से जिन अंकों का प्रयोग आवश्यक होता है, उन अंकों को सार्थक अंक (Significant Figure) कहते हैं । 

इसे निम्न प्रकार भी व्यक्त कर सकते हैं – 

किसी संख्या के उन अंकों (0 से लेकर 9 तक) को जिनके द्वारा किसी भौतिक राशि के परिमाण को पूर्णतः  इसके यथार्थमान तक व्यक्त करते हैं, सार्थक अंक (Significant Figure) कहते हैं । 

सार्थक अंक के नियम

सार्थक अंक की गणना में निम्न नियमों का पालन  सही मान के लिये आवश्यक होता है – 

सार्थक अंक की गणना के नियम

(1) शून्य को छोड़कर सभी अंक 1, 2, 3, 4, 5, 6,7,8,9  सार्थक है जैसे – 

  • 3.12 में तीन सार्थक अंक है ।
  • 4.364 में चार सार्थक अंक है ।

(2) शून्य जब दो अन्य अंकों के मध्य आता है तो वह एक सार्थक अंक होता है जैसे – 

  • 2.02 में तीन सार्थक अंक है ।
  • 4.002 में चार सार्थक अंक है ।

(3) प्रारम्भिक शून्य कभी सार्थक नहीं होता । इसका उपयोग केवल दशमलव दर्शाने के लिए होता है। जैसे- 

  • 0.312 में तीन सार्थक अंक है ।
  • 0.012 में दो सार्थक अंक है
  • 0.002 में एक सार्थक अंक है ।

(4) अनुगामी (Trailing) शून्य (दाहिने अंत के शून्य) भी सार्थक अंक होते हैं । (मापन की परिशुद्धता के ‘ 

आधार पर) जैसे- 

  • 31300 ग्रा. में पांच सार्थक अंक है जबकि तुला, ग्राम में नजदीकी अंक तक मापती है ।
  • 31300 ग्रा. में चार सार्थक अंक है जबकि तुला- ग्राम के दसवें अंक तक मापती है ।
  • 31300 ग्रा. में तीन सार्थक अंक हैं जब तुला ग्राम के 100वें अंक तक मापती है ।

( 5 ) चरघातांकी संकेतन (Exponential Notation) में संख्यात्मक भाग, सार्थक अंक के नम्बर को दर्शाता है,  जैसे- 

  • 2.13 x 10-2 में तीन सार्थक अंक है ।
  • 6.023 x 1023 में चार सार्थक अंक है ।

सार्थक अंक का निकटन अंक

वैज्ञानिक जांच के परिणाम को अधिक उपयुक्त  (Meaningful ) बनाने के लिए मापन के अ- सार्थक अंकों को निकटन अंक तक ले लिया जाता है और अंतिम अंक को, यदि वह 5 से अधिक है तो उसे पूर्णांक मान लेते हैं । जैसे- 

  • 2.17 को निकटन अंक 2.2 में
  • 2.58 को निकटन अंक 2.6 में
  • 3.69 को निकट अंक 3.7 में

इसी प्रकार यदि अंतिम अंक पांच से कम होते हैं तो उस अंक को बिना बदले रहने दिया जाता है जैसे- 

  • 2.12 को निकटन अंक 2.1 में
  • 2.44 को निकटन अंक 2.4 में

सार्थक अंकों से सम्बद्ध (निहित) गणनाएं (Calculations involving Significant figures)

प्रत्येक प्रयोग से मापों की अनेक संख्याएं सम्बद्ध (संयुक्त) रहती हैं जो सही एवं विशेष परिणाम की प्राप्ति के लिये जोड़, घटाना, गुणा एवं भाग में भिन्नता रहती हैं । चूँकि सभी मापों में वही परिशुद्धता नहीं रहती इसलिए यह स्वाभाविक है कि अंतिम परिणाम भी पर्याप्त एवं अधिक परिशुद्ध नहीं रहेगा । इसीलिए गणनाओं में नापों की अल्पतम् परिशुद्धता संबद्ध रहती है । 

सार्थक अंकों के अल्पतम परिशुद्ध मापों को ध्यान में रखते हुए, निष्पादन के मूल्यांक (Value of an expression) को निर्धारित करने में निम्न नियम सहायक होते हैं । 

नियम 1 :- सामूहिक मानों (मूल्यों) का जोड़ घटाने में, सार्थक अंकों की अनेक संख्याएं, परिणाम में, अल्पतम परिशुद्ध मानों के रूप में आती है। जैसे – 

3.5+4.43+6.001 = 13.931 = 13.9 उत्तर 

चूंकि अल्पतम शुद्ध मूल्य ( 3.5) में केवल एक दशमलव अंश है इसलिए परिणाम को केवल एक दशमलव अंश तक ही पूर्णांक करने के पश्चात् दर्शाया जायेगा । जैसे- 

13.9 

अभ्यास 1.3- 

सार्थक अंकों के सही मूल्यों का ध्यान रखते हुए निम्न दर्शाये गये परिणामों की गणना कीजिए – 

(1) 11.234 +2.1+442.4+0.0023

उत्तर- ( 1 ) 455.7 (1) 

(2) 2.4+22.4+0.014. 

उत्तर- 24.8 

नियम 2 – सामूहिक मूल्य (मान) में गुणा या भाग के अंतिम परिणाम में सार्थक अंकों की संख्या अल्पतम शुद्धतम 

गुणक या भाजक में सार्थक अंकों की संख्या से अधिकतम नहीं होगी। जैसे – 

11.501X3.1= 35.6 

चूँकि अल्पतम शुद्धमूल्य ( 3.1 ) में केवल एक दशमलव अंश है । इसलिए परिणाम की गणना केवल एक दशमलव अंश तक ही की जावेगी । 

सार्थक अंक की उपयोगिता-

  • शुद्ध गणना करने में |
  • इसका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे कि विज्ञान, गणित, और प्रौद्योगिकी |

प्रश्न: सार्थक अंक का उपयोग क्यों जरुरी है?

इसका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे कि विज्ञान, गणित, और प्रौद्योगिकी |

सार्थक अंक क्या होते हैं?

किसी संख्या के उन अंकों (0 से लेकर 9 तक) को जिनके द्वारा किसी भौतिक राशि के परिमाण को पूर्णतः  इसके यथार्थमान तक व्यक्त करते हैं, सार्थक अंक (Significant Figure) कहते हैं । 

  • इसका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे कि विज्ञान, गणित, और प्रौद्योगिकी |
Akash Sahu

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