सूरदास का जीवन परिचय (Surdas Ka Jivan Parichay)
प्रस्तावना (Surdas Ka Jivan Parichay)
नमस्कार प्यारे दोस्तों में हूँ AKASH SAHU, आपका हमारे एमपी बोर्ड ब्लॉग पर एक बार फिर से स्वागत करता हूँ । आज के इस आर्टिकल में हम सूरदास जी का जीवन परिचय पढ़ने जा रहें है।
सूरदास की प्रमुख रचनाएँ, साहित्यिक विशेषताएं और भाषा शैली को भी पढ़ सकते है। इसी प्रकार के अन्य जीवन परिचय पढ़ने के लिए आप हमारी वेबसाइट को विजिट करते रहें।
नमस्कार दोस्तों मैं हूं AKASH SAHU साहू यदि आप akashlectureonline.com देख रहे हैं तो कुछ अच्छा देख रहे हैं तो आज के इस पोस्ट में हम बात करेंगे सूरदास के बारे में ,सूरदास कौन है, सूरदास वास्तविक नाम क्या है, सूरदास जन्म कब हुआ था, सूरदास के पिता का नाम क्या है, उनकी माता का नाम क्या है इनके बारे में और उनके जीवन के बारे में आज हम पढ़ेंगे इस पोस्ट में
| 1 | बोर्ड | एमपी बोर्ड |
| 2 | पाठयपुस्तक | एनसीईआरटी |
| 3 | कक्षा | कक्षा 10वीं |
| 4 | विषय | हिंदी |
| 5 | खंड | गद्य खंड |
| 6 | अध्याय | अध्याय 1 |
| 7 | अध्याय का नाम | पद |
| 8 | लेखक का नाम | सूरदास |
| 9 | अभ्यास पुस्तिका | पाठ्यपुस्तक एवं अतिरिक्त |
| 10 | वर्ग | एनसीईआरटी समाधान |
सूरदास का जीवन परिचय (सन् 1478-1583 ई.) :
भक्त शिरोमणि सूरदास हिन्दी साहित्य अम्बर के सूर्य तथा ब्रजभाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इनके जन्मकाल के विषय में विद्वानों में मतभेद है। सूर के जन्म- स्थान के विषय में भी विद्वानों में मतभेद है। डॉ० श्यामसुन्दर दास तथा पं० रामचन्द्र शुक्ल सूर का जन्म आगरा से मथुरा जाने वाली संड़क पर स्थित रुनकता (रेणुका) नामक गाँव में सारस्वत ब्राह्मण परिवार में मानते हैं
सूरदास का जीवन परिचय | Surdas Ka Jivan Parichay
सूरदास भक्ति-काव्य की सगुण धारा की कृष्ण भक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। ऐसा माना जाता है कि इनका जन्म आगरा से मथुरा जाने वाली सड़क पर स्थित रुनकता में सन् 1478 ई. में हुआ था। इनके जन्म को लेकर बहुत मत भेद है, इसलिए जन्म की पुष्टि सही से नही हो पाई है, कुछ विद्वान् का मानना है की इनका जन्म दिल्ली के निकट सीही नामक ग्राम में मानते हैं। पं. रामदास सारस्वत इनके पिता का नाम था। ऐसा कहा जाता है कि सूरदास जन्म से ही अन्धे थे।
विद्वानों का कहना है कि बाल-मनोवृत्तियों एवं चेष्टाओं का जैसा सूक्ष्म वर्णन सूरदास जी ने किया है, वैसा वर्णन कोई जन्मान्ध व्यक्ति कर ही नहीं सकता, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि वे सम्भवतः बाद में अन्धे हुए होंगे।
सूरदास का कार्य :-
सूरदास को हिंदी साहित्य का सूरज कहा जाता है। वे अपनी कृति “सूरसागर” के लिये प्रसिद्ध है। कहा जाता है की उनकी इस कृति में लगभग 100000 गीत है, जिनमे से आज केवल 8000 ही बचे है। उनके इन गीतों में कृष्ण के बचपन और उनकी लीला का वर्णन किया गया है। सूरदास कृष्ण भक्ति के साथ ही अपनी प्रसिद्ध कृति सूरसागर के लिये भी जाने जाते है। इतना ही नहीं सूरसागर के साथ उन्होंने सुर-सारावली और सहित्य-लहरी की भी रचना की है।
सूरदास की मधुर कविताये और भक्तिमय गीत लोगो को भगवान् की तरफ आकर्षित करते थे। धीरे-धीरे उनकी ख्याति बढती गयी, और मुगल शासक अकबर (1542-1605) भी उन्हें दर्शक बन गये। सूरदास ने अपने जीवन के अंतिम वर्षो को ब्रज में बिताया। और भजन गाने के बदले उन्हें जो कुछ भी मिलता उन्ही से उनका गुजारा होता था। कहा जाता है की इसवी सन 1584 में उनकी मृत्यु हुई थी।
सूरदास जी को वल्लभाचार्य के आठ शिष्यों में प्रमुख स्थान प्राप्त था। इनकी मृत्यु सन 1583 ई० में पारसौली नामक स्थान पर हुई। कहा जाता है कि सूरदास ने सवा लाख पदों की रचना की। इनके सभी पद रागनियों पर आधारित हैं। सूरदास जी द्वारा रचित कुल पांच ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं, जो निम्नलिखित हैं: सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती और ब्याहलो। इनमें से नल दमयन्ती और ब्याहलो की कोई भी प्राचीन प्रति नहीं मिली है। कुछ विद्वान तो केवल सूर सागर को ही प्रामाणिक रचना मानने के पक्ष में हैं।
मदन मोहन एक सुंदर नवयुवक था तथा हर रोज़ सरोवर के किनारे जा बैठता तथा गीत लिखता रहता| एक दिन ऐसा कौतुक हुआ, जिस ने उसके मन को मोह लिया| वह कौतुक यह था कि सरोवर के किनारे, एक सुन्दर नवयुवती, गुलाब की पत्तियों जैसा उसका तन था | पतली धोती बांध कर वह सरोवर पर कपड़े धो रही थी| उस समय मदन मोहन का ध्यान उसकी तरफ चला गया, जैसे कि आंखों का कर्म होता है, सुन्दर वस्तुओं को देखना| सुन्दरता हरेक को आकर्षित करती है|
सूरदास गीत गाने लगा| वह इतना विख्यात हो गया कि दिल्ली के बादशाह के पास भी उसकी शोभा जा पहुंची| अपने अहलकारों द्वारा बादशाह ने सूरदास को अपने दरबार में बुला लिया| उसके गीत सुन कर वह इतना खुश हुआ कि सूरदास को एक कस्बे का हाकिम बना दिया, पर ईर्ष्या करने वालों ने बादशाह के पास चुगली करके फिर उसे बुला लिया और जेल में नज़रबंद कर दिया|सूरदास जेल में रहता था| उसने जब जेल के दरोगा से पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है? तो उसने कहा -‘तिमर|’
यह सुन कर सूरदास बहुत हैरान हुआ कवि था, ख्यालों की उड़ान में सोचा, ‘तिमर….मेरी आंखें नहीं मेरा जीवन तिमर (अन्धेर) में, बंदीखाना तिमर (अन्धेरा) तथा रक्षक भी तिमर (अन्धेर)!’ उसने एक गीत की रचना की तथा उस गीत को बार-बार गाने लगा| वह गीत जब बादशाह ने सुना तो खुश होकर सूरदास को आज़ाद कर दिया, तथा सूरदास दिल्ली जेल में से निकल कर मथुरा की तरफ चला गया| रास्ते में कुआं था, उसमें गिरा, पर बच गया तथा मथुरा-वृंदावन पहुंच गया| वहां भगवान कृष्ण का यश गाने लगा|
सूरदास की कृतियॉं:
सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, सूर पच्चीसी, नाग लीला, पद संग्रह, गोवर्धन लीला
भक्त शिरोमणि सूरदास जी ने लगभग सवा लाख पदों की रचना की थी, जिनमें से केवल आठ से दस हजार पद ही प्राप्त हो पाए हैं। ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ के पुस्तकालय में ये रचनाएँ सुरक्षित हैं। पुस्तकालय में सुरक्षित रचनाओं के आधार पर सूरदास जी के ग्रन्थों की संख्या 25 मानी जाती है, किन्तु इनके तीन ग्रन्थ ही उपलब्ध हुए हैं, जो नीचे दी गयी हैं:-
सूरसागर: यह सूरदास जी की एकमात्र प्रामाणिक कृति है। इसमें कृष्ण की बाल-लीलाओं, गोपी-प्रेम, गोपी-विरह, उद्धद गोपी संवा T बड़ा मनोवैज्ञानिक और सरस वर्णन है।
सूरसारावली: यह भी सूरदास जी की एक प्रामाणिक कृति है। इसमें 1107 पद हैं।
साहित्य लहरी: इस ग्रन्थ में 118 दृष्टकूट पदों का संग्रह है कहीं-कहीं श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन तथा एक-दो स्थलों पर ‘महाभारत’ की कथा के अंशों की झलक भी दिखाई देती है।
काव्य रचनाओं की विशेषताएं
भाव पक्ष एवं कला पक्ष
सूरदास जी की रचनाओं में भक्ति रस के साथ श्रृंगार रस का भी उपयोग देखने को मिलता है। इन दोनों में वर्णित छंद और पद अत्यंत ही दुर्लभ हैं।
सूरदास की रचनाओं में छंद पदों का उपयोग हुआ है।
सूरदास जी की रचनाओं में भावानुकूल शब्द-चयन , सार्थक अलंकार , भाषा की सजीवता आदि को बहुत ही अच्छे तरीके से निरूपित किया है।
सूरदास ने अपने कविताओं और दोहों में श्री कृष्ण भगवान जी माता यशोदा मां के शील , शीतल गुणों को बहुत अच्छी तरह से चित्रित किया है।
सूरदास जी ने अपनी रचनाओं में श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन बहुत ही मनमोहक किया है।
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