ऊष्मागतिकी प्रक्रम –
बह क्रिया जो किसी भौतिक व रासायनिक अवस्था में ऊर्जा परिवर्तन कराती हो, ऊष्मागतिक प्रक्रम या प्रक्रिया कहलाती है। के आधार पर इन को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है-
(i)समतापी प्रक्रम (Isothermal Process)-ऐसे प्रक्रम के प्रत्येक पद में तन्त्र का तापमान स्थिर रहता है। अत:
(ii) रुद्धोष्म प्रक्रम (Adiabatic Process)- ऐसे प्रक्रम के प्रत्येक पद (step) में तन्त्र न तो ऊष्मा लेता है और न ही ऊष्मा देता है अर्थात् तन्त्र का तापमान परिवर्तित होता रहता है। अत:
(iii) समदाबी प्रक्रम (Isobaric Process)-समदाबी प्रक्रम के प्रत्येक पद में तन्त्र का दाब स्थिर रहता है। इस प्रकार के प्रक्रम में तन्त्र के आयतन में परिवर्तन होता है। अत:
(iv) समआयतनी प्रक्रम (Isochoric Process)-समआयतनी प्रक्रम के प्रत्येक पद में तन्त्र का आयतन निश्चित रहता है अर्थात् दाब परिवर्तित होता है। अत:
(v) चक्रीय प्रक्रम (Cyclic Process)-इस प्रकार के परिवर्तन में , तन्त्र परिवर्तनों की एक श्रृंखला से गुजरकर पुन: अपनी मूल अवस्था में आ जाता है
सारणी : उत्क्रमणीय तथा अनुत्क्रमणीय प्रक्रमों की तुलना
उत्क्रमणीय प्रक्रम | अनुत्क्रमणीय प्रक्रम |
1 .अनन्त मंद गति से होता है।
2.प्रक्रम विपरीत दिशा में सम्भव है। 3.यह आदर्श प्रक्रम है। 4.अनन्त समय में होता है। 5.प्रेरक बल व विरोधी बलों के परिमाण में अनन्त सूक्ष्म अन्तर पाया जाता है। 6..अधिकतम कार्य होता हैं। 7..यह एक परिकल्पित प्रक्रम है। |
1.तीव्र गति से होता है।
2.प्रक्रम विपरीत दिशा में नहीं होता है। 3.यह स्वतः प्रक्रम है। 4.निश्चित समय में होता है। 5.प्रेरक बल व विरोधी बलों के.परिमाण में बहुत अन्तर पाया जाता है। 6..उत्क्रमणीय प्रक्रम से कम कार्य होता है। 7.यह प्राकृतिक प्रक्रम है। |
आन्तरिक ऊर्जा-
ऊष्मागतिक तन्त्र में उपस्थित प्रत्येक पदार्थ में एक निश्चित मात्रा की ऊर्जा संलग्न रहती है जो कि उसके ताप, दाब, आयतन व रासायनिक प्रकृति पर निर्भर करती है।
- आन्तरिक ऊर्जा अवस्था–फलन है
निकाय की आन्तरिक ऊर्जा उसमें उपस्थित पदार्थों की अनेक प्रकार की ऊर्जाओं का योग है। विभिन्न प्रकार की ऊर्जाएँ जो आन्तरिक ऊर्जा में सम्मिलित हैं, जो निम्नलिखित हैं-
(i) स्थानान्तरीय ऊर्जा (Translational Energy) (E)
(ii) घूर्णन ऊर्जा (Rotational Energy) (E)
(iii) कम्पन ऊर्जा (Vibrational Energy) (E)
(iv) इलेक्ट्रॉनिक ऊर्जा
(v) अणुओं की अन्योन्य क्रिया ऊर्जा
(vi) नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy) (E)
अतः आन्तरिक ऊर्जा U = (i) + (ii) +(iii) + (iv) +(v) + (vi)
अत: निकाय में उपस्थित पदार्थ की सभी प्रकार की सम्भव ऊर्जाएँ जो उसमें निहित रहती हैं, का योग आन्तरिक ऊर्जा (U) कहलाता है। आन्तरिक ऊर्जा का सही परिमाण ज्ञात करना सम्भव नहीं है,
माना कि किसी निकाय की प्रारम्भिक तथा अन्तिम आन्तरिक ऊर्जाएँ क्रमश: U1 तथा U2 हैं तब-
U1 – U2 = U.
ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम-
- ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम को ऊर्जा संरक्षण (conservation of energy) का नियम कहते हैं।
- तंत्र और परिवेश (surrounding) के मध्य ऊर्जा का आदान-प्रदान ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम द्वारा स्पष्ट होता है।
इस नियम के अनुसार – ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट। इसे तो एक रूप से दूसरे रूप में केवल परिवर्तित किया जा सकता है।
प्रथम नियम की सत्यता की पुष्टि
- ऐसी कोई मशीन नहीं जो बिना ऊर्जा के चलती हो और कार्य करती हो
- जब किसी तापक (heater) में वैद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो वह गरम हो जाता है। यहाँ वैद्युत ऊर्जा ताप ऊर्जा में परिवर्तित होती है।
- रासायनिक क्रियाओं में भी ऊर्जा का संरक्षण होता है। उदाहरण के लिए, जल के वैद्युत-अपघटन में
एन्थैल्पी
एन्थैल्पी किसी तन्त्र में संलग्न वह सम्पूर्ण ऊर्जा है जिसमें आन्तरिक ऊर्जा और वायुमण्डलीय कारकों जैसे-दाब तथा आयतन के कारण प्राप्त ऊर्जा भी सम्मिलित है। एन्थैल्पी विशेष परिस्थितियों में किसी तन्त्र में अन्तर्निहित ऊष्मा का माप है, इसलिए इसे अन्तर्निहित ऊष्मा भी कहते हैं। इसे संकेत H द्वारा दर्शाते हैं। अत: H का मान
H = U+ PV
अत: स्थिर दाब पर किसी तन्त्र की सम्पूर्ण ऊष्मा, आन्तरिक ऊर्जा (U) तथा PV ऊष्मा के योग के बराबर होती है।
एन्थैल्पी (H) भी अवस्था फलन है।
किसी रासायनिक परिवर्तन में एन्थैल्पी परिवर्तन (AH) को निम्न व्यंजक द्वारा व्यक्त किया जा सकता है-
Hp = उत्पादों की एन्थैल्पी Hr = क्रियाकारकों की एन्थैल्पी।