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आचार्य कणाद का जीवन परिचय aacharya kanad ka jeevan parichay

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आचार्य कणाद का जीवन परिचय aacharya kanad ka jeevan parichay

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जानिए आचार्य कणाद के बारे में अधिक।

आचार्य कणाद कौन थे?

आचार्य कणाद, जो भारतीय दर्शन के एक प्रमुख थे। वे भारतीय दर्शन और वैज्ञानिक संस्कृति के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे अत्यंत विद्वान थे और अपनी दिव्य ज्ञान के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने लोगों को वैज्ञानिक विचार वाले दर्शनों के माध्यम से जागरूक किया था।

आचार्य कणाद का प्रसिद्ध होने के कारण

आचार्य कणाद का प्रसिद्ध होने के कारण उनके द्वारा की गयी कण की खोज थी, जो खोज सबसे बड़ी साबित हुई |

आचार्य कणाद के बारे में विस्तार से जानिए

आचार्य कणाद का जीवन परिचय aacharya kanad ka jeevan parichay

विज्ञानिक का नाम

महर्षि कणाद

जन्म ईसा से 600 वर्ष पूर्व
शहर प्रयाग के पास प्रभाव ग्राम में
खोज  कण की खोज
ग्रन्थ की रचना वैश्लेषिक दर्शन

आचार्य कणाद को न्यायशास्त्र के जनक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने  वस्तुओं के भेद को समझने के लिए अणुगति सिद्धांत की खोज की थी। इस प्रकार, आचार्य कणाद नाम का यह व्यक्तित्व भारतीय दर्शन और विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐसा नाम है जो हर भारतीय को जानना चाहिए।

शिक्षा 

आचार्य कणाद की प्रसिद्ध रचनाओं में ‘वैशेषिक सूत्र के लेखक होने के साथ ही अद्वैतवाद के सिद्धांत का विवेचन भी किया। वे भारतीय दर्शन के इतिहास में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखते हैं। अचार्य कणाद जी ने अपनी शिक्षा को दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के कुंडलीपुरम नामक स्थान से प्राप्त किया था। इनकी शिक्षा का मुख्य ध्येय लोगों के दुःख को दूर करना था। वे ध्यान, तपस्या और वेदों के अध्ययन में लगे रहते थे। अपने जीवन के दौरान वे न्यायशास्त्र के विभिन्न विषयों पर कई पुस्तकें लिख चुके हैं जिनमें से कुछ हैं न्यायसूत्र, वैशेषिक सूत्र और प्रमाण सूत्र जैसी महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं।

इनका काल ईसा से 600 वर्ष पूर्व के आसपास माना जाता है। उनका जन्म प्रयाग के पास प्रभाव ग्राम में कश्यप ऋषि के गोत्र में हुआ था। 

  • महर्षि कणाद का वैश्लेषिक दर्शन, वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। प्राचीन अणु विज्ञानियों में महर्षि कणाद का नाम अग्रणी है। इन्हें परमाणुवाद का प्रथम प्रवक्ता और व्याख्याकार कह सकते हैं। इन्होंने ‘वैशेषिक सूत्र’ नामक ग्रंथ की रचना की । 
  • इनके अनुसार प्रकृति अणुमय है, तथा इसके समस्त पदार्थ अणुओं से ही बने हैं। ये स्वतंत्र रूप से नहीं रह सकते। न ही इन्द्रियों से इनका पता लगाया जा सकता है।
  •  महर्षि ने अणुकों को “मूलकणानम” नाम दिया। वह आज मोलीक्यूल शब्द से जाना जाता हैं ।

आचार्य कणाद एक प्राचीन भारतीय दार्शनिक और वैज्ञानिक थे, जो आयुर्वेद, ज्योतिष और योग जैसी विभिन्न विषयों पर अपनी जानकारी से जाने जाते थे। वे भारतीय दर्शन शास्त्र के सम्राट थे और अणुवाद विज्ञान के संस्थापक माने जाते हैं।

आचार्य कणाद के कण की परिकल्पना

महर्षि कणाद ने सबसे पहले कण  के बारे में बताया था कण  पदार्थ की सबसे छोटी इकाई है यह इतनी छोटी इकाई है, कि इसे और अधिक भागों में विभाजित नहीं किया जा सकता इनके अनुसार ब्रह्मांड कणमय है | यह परिकल्पना महर्षि कणाद के द्वारा की गई और यह परिकल्पना सर्वश्रेष्ठ साबित हुई और बहुत अधिक विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान में सुविधा हुई |

यह परिकल्पना डाल्टन के हजारों वर्ष पूर्व की गई, चुकी हम जानते हैं डाल्टन ने परमाणु वाद सिद्धांत सन 1808 में दिया |  इन्होंने पदार्थ के छोटे कण को बाद में परमाणु कहा, इनके अनुसार परमाणु अविभाज्य लेकिन आज आधुनिक विधियों द्वारा उसे तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- जैसे इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन और न्यूट्रॉन |

FAQ 

महर्षि कणाद कौन थे ?

कणाद भारत के एक प्राचीन ऋषि थे। उन्हें आज से हजारों साल पूर्व पदार्थ के सूक्ष्म कण अर्थात् परमाणु तत्व का ज्ञान था। इसलिए इनका नाम “कणाद” पड़ा ।

परमाणु सिद्धांत के प्रतिपादक कौन थे?

जॉन डाल्टन को परमाणु सिद्धांत के प्रतिपादक कहा जाता है। डाल्टन के पदार्थ की रचना सम्बन्धी सिद्धान्त ‘डाल्टन के परमाणु सिद्धान्त’ के नाम से प्रसिद्ध है।

महर्षि कणाद ने परमाणु की जानकारी कब दी थी ?

महर्षि कनाद में परमाणु की संकल्पना की जानकारी आज से हजारों साल पूर्व दे दी थी। उसी सिद्धांत को बाद में डाल्टन ने प्रतिपादित कर दुनियाँ को बताया।

महर्षि कणाद ने परमाणु की जानकारी कब दी थी ?

कहा जाता है महर्षि कनाद में परमाणु की संकल्पना की जानकारी आज से हजारों साल पूर्व दे दी थी। उसी सिद्धांत को बाद में डाल्टन ने प्रतिपादित कर दुनियाँ को बताया।

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