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गुरुबीजाणु जनन | megaspore reproduction | भ्रूणकोष

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गुरुबीजाणु जनन

  • गुरुबीजाणु मातृ कोशिका से अर्थसूत्री विभाजन के द्वारा गुरुबीजाणु के बनने की क्रिया को गुरुबीजाणु जनन कहते हैं।
  • बीजाण्ड के विकास के दोरान, इस प्रक्रिया के प्रारंभ में बीजाण्डासन ऊतक से बीजाण्डकाय का निर्माण एक गोल घुण्डीनुमा अतिवृद्धि के रूप में होता है। इस अवस्था में बीजाण्डकाय की समस्त कोशिकाएं अविभेदित व समरूपी और विभज्योतकी होती हैं। बीजाण्डकाय की यह समरूपी कोशिकाएं एक कोशिका स्तर मोटी अधिचर्म से ढकी होती है। बीजाण्डकाय की एक अध:श्चर्मी कोशिका आकार में बड़ी होकर अपने स्पष्ट केन्द्रक तथा सघन कोशिका द्रव्य की उपस्थिति से अन्य से भिन्‍न हो जाती है इसे आर्कीस्पोरियल कोशिका कहते हैं।
  • इस कोशिका में परिनत विभाजन से, बाहर की ओर (बीजाण्डकाय की अधिचर्म के ठीक नीचे ) एक भित्तीय कोशिका तथा भीतर की ओर प्राथमिक बीजाणु जनन कोशिका का निर्माण होता है। प्राथमिक भित्तीय कोशिका की क्रियाशीलता पादप के प्रकार पर निर्भर करती है। यदि पादप गेमोपटेली का सदस्य है तो यह टेनीन्यूसेलेट प्रकार के बीजाण्ड का निर्माण करता है और यदि पादप पोलीपटेली का सदस्य हे तो क्रेसीन्यूसेलिट प्रकार का बीजाण्ड बनाता है। प्राथमिक बीजाणु जनन कोशिका सीधी ही गुरूबीजाणु मातृ कोशिका की तरह कार्य करती है। ये द्विगुणित (2n) होती है। इनमें अर्धसूत्री विभाजन होता है जिससे चार अगुणित गुरुबीजाणु बनते हें।
  • इस प्रकार बने 4 अगुणित बीजाणु प्राय: एक रेखीय चतुष्क में विन्यासित रहते हैं। सामान्यतः: सबसे निचला या निभागीय गुरुबीजाणु क्रियाशील रहता हे। लम्बवत्‌ चतुष्क में स्थित चार गुरूबीजाणुओं में से तीन बीजाण्डद्वार की तरफ वाले गुरूबीजाणु नष्ट हो जाते हैं। केवल एक क्रियाशील गुरू बीजाणु मादा युग्मकोद्भिद्‌ का निर्माण करता है। गुरूबीजाणु, बहुत से आवृतबीजियों ( कंप्सेला) में निभागीय गुरुबीजाणु क्रियाशील रहता है।

भ्रूणकोष या मादा युग्मकोद्भिद्‌ का निर्माण या गुरुयुग्मकजनन

  • गुरूबीजाणु मादा युग्मकोद्भिद्‌ की प्रथम कोशिका है।
  • यह आकार में वृद्धि करके बीजाण्डकाय से पोषण प्राप्त करता है। इसका केन्द्रक समसूत्री विभाजन से विभाजित होकर दो केन्द्रकों का निर्माण करता है। दोनों केन्द्रक गमन करके विपरीत श्रुवों पर पहुंच जाते हैं। दोनों ध्रुवों पर स्थित ये केन्द्रक सामान्यतः दो-दो बार साधारण विभाजन (समसूत्री) से विभाजित होते हैं। इस विभाजन के परिणामस्वरूप प्रत्येक धुव पर चार-चार ( कुल आठ ) केन्द्रक बन जाते हैं।
  • प्रत्येक भ्रुव से एक-एक केन्द्रक (एक केन्द्रक निभाग से तथा एक केन्द्रक बीजाण्डद्वार से) केन्द्र की ओर बढ़ने लगता है, इनको श्रुवीय केन्द्रक कहते हैं। दोनों ही ध्रुवीय केन्द्रक मध्य में स्थित हो जाते हैं।
  • दोनों ध्रुवों पर शेष तीन-तीन केन्द्रक अपने चारों ओर कोशिकाद्रव् एकत्रित करके कोशिकाओं का निर्माण करते हैं। इन कोशिकाओं में बीजाण्डद्वार की तरफ स्थित तीन कोशिकाओं में से एक कोशिका अधिक बड़ी व स्पष्ट दिखाई देती है। इसे अण्ड कोशिका तथा शेष दोनों छोटी कोशिकायें सहाय कोशिकायें कहलाती है। इन तीनों कोशिकाओं को सम्मिलित रूप से अण्ड उपकरण [1 अण्ड कोशिका +2 सहाय कोशिकाएं ] कहते हैं।
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निभाग वाले ध्रुव की ओर स्थित तीनों केन्द्रकों से बनने वाली कोशिकायें प्रतिमुखी कोशिकायें कहलाती हैं। .

  • दोनों ही ध्रुवीय केन्द्रक केन्द्रीय कोशिका में उपस्थित होते हैं। निषेचन से कुछ पूर्व ये एक दूसरे से जुड़कर द्वितीयक केन्‍द्रक का निर्माण करते हैं। यह द्विगुणित (2n) होता है तथा संख्या में एक होता है। इस प्रकार भ्रुणकोष में 7 कोशिकायें तथा 8 केन्द्रक उपस्थित होते हैं। इस सात कोशिकीय तथा 8 केन्द्रक वाली संरचना को मादा युग्मकोद्भिद्‌ या आवृतबीजियों का भ्रूणकोष कहते हैं। इसको खोज स्टासबर्गर ने पोलीगोनम पादप में की थी। अत: इस प्रकार के भ्रूणणोष को पोलीगोनम प्रकार का भ्रूणकोष कहते हैं। कंप्सेला तथा अधिकांश एंजियोस्पर्म में इसी प्रकार का भ्रूणकोष पा जाता है। यह सबसे सामान्य प्रकार का है। इस भ्रूणकोष का विकाए एक गुरूबीजाणु से होता है अत: इसे एकबीजाणुक भ्रूणकोष कहते है
  • सहाय कोशिकाओं की बाहरी कोशिका भित्ति से अंगुली समान प्रवर्धों का निर्माण होता है। इन संरचनाओं को तंतुमय उपकरण कहते हैं। इनकी सहायता से सहाय कोशिकाये न्यूसेलस से भोजन अवशोषित कर भ्रूणकोष को प्रदान करती है। यह तंतुमय उपकरण प्रतिमुखी कोशिकाओं में बहुत कम विकसित होता है। यह उपकरण कुछ रासायनिक पदार्थ भी स्रावित करता है जो परागनलिका को आकर्षित करता हे।
  • कुछ पादपों में मादा युग्मकोद्भिद के ऊपर अथवा नीचे की ओर अवरोध पाये जाते हें ये अवरोध बीजाण्डकाय की मोटी भित्ति वाली कोशिकाओं के बने होते हैं। ये भ्रणकोष को बीजाण्डद्वार या निभाग की तरफ जाने से रोकते हैं। अवरोध जो निभाग की तरफ होता है उस हाइपोस्टेस कहते हें। उदाहरण – अम्बेलीफेरी कल तथा जास्टेरा व क्रोजोफोरा पादप। जो अवरोध बीजाण्डद्वार की तरफ होता है उसे एपीस्टेस कहते हें। उदाहरण – कॉस्टेलिया तथा कॉस्टसा

भ्रूणकोष के प्रकार

एकबीजाणुक भ्रूणकोष

  • यह दो प्रकार का होता है – पोलीगोनम ओर आइनोथेया
  • पोलीगोनम प्रकार का भ्रृणफोष आठ केन्द्रकीय तथा सात कोशिकीय होता है।
  • आइवनोथेर प्रकार का भ्रूणफोष अपवादस्वरूप चार केन्द्रकीय होता है, जिसमें केन्द्रीय कोशिका में केवल एक केद्धक तथा तीन केन्द्रक अण्ड उपकरण के रूप में व्यवस्थित होते हैं। प्रतिमुखी कोशिकाएं अनुपस्थित होती है। (बीजाण्डद्वार गुरुबीजाणु क्रियाशील होता है।)
  • द्विबीजाणुक भ्रूणकोष-
    • इसका निर्माण दो गुरूबीजाणुओं से होता है अर्थात्‌ इस भ्रूणकोष का निर्माण दो केन्द्रकीय गुरूबीजाणु मिलकर करते हैं।
    • यह दो प्रकार के होते हैं
      • एलियम प्रकार : आठ केन्द्रकीय और सात कोशिकीय होता है। इसका निर्माण निभागीग्र गुरूबीजाणुओं के द्वारा होता है।
      • एण्डाइमिओन प्रकार : यह आठ केन्‍्द्रकीय और सात कोशिकीय होता है। भ्रूणकोष का निर्माण बीजाण्डद्वारीय गुरूबीजाणुओं के द्वारा होता है।
    • चतुर्बीजाणुक भ्रूणकोष –
      • इसका निर्माण गुरूबीजाणु मातृ कोशिका के अर्धसूत्री विभाजन के बाद बने चारों अगुणित केन्द्रक करते हैं क्योंकि इसमें भित्ति निर्माण की क्रिया नहीं होती।
      • चोरों की को सम्मिलित रूप में संगुरु बीजाणु कहते हैं।
      • इसमें सभी केन्द्रक सामान्यतः 7 कोशिकीय तथा 8 केन्द्रकीय भ्रूणकोष के निर्माण में भाग लेते हैं। परन्तु अनेक प्रकार के भ्रूणकोष भी बनते हैं। कुछ आवृतबीजियों में केन्द्रकों की व्यवस्था भ्रूणकोष में निश्चित . नहीं होती। इसलिए विभिन्‍न प्रकार के भ्रूणकोष बनते हैं।

Hello! My name is Akash Sahu. My website provides valuable information for students. I have completed my graduation in Pharmacy and have been teaching for over 5 years now.

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