कोलॉइडी विलयन
कोलॉइडी विलयनों के गुण
- 1. आकार– कोलॉइडी विलयन में उपस्थित कोलॉइड के कणों का आकार 10Å से 1000Å होता है। ये कण अणुओं से बड़े, किन्तु निलम्बन से छोटे होते हैं। ये माइक्रोस्कोप में अदृश्य होते हैं तथा फिल्टर पत्र में से बाहर निकल जाते हैं।
- विषमांग प्रकृति– कोलॉइडी विलयन विषमांग होते हैं। इनमें दो प्रावस्थाएँ-परिक्षिप्त प्रावस्था और परिक्षेपण माध्यम होती हैं।
- 3. अणुसंख्यक गुणधर्म (Colligative Properties)-कोलॉइडी विलयनों में सामान्य विलयनों की अपेक्षा विलेय के कणों की संख्या कम होती है इसलिए इनका परासरण दाब, क्वथनांक में उन्नयन व हिमांक में अवनमन आदि बहुत कम होता है।
- प्रकाशीय गुण (Optical Properties)
टिण्डल प्रभाव–
परिभाषा-जब तीव्र प्रकाश की किरण पुंज किसी लेंस द्वारा कोलॉइडी विलयन में केन्द्रित की जाती है, तब किरण पुंज का मार्ग प्रदीप्त हो जाता है। अंधेरे में प्रकाश का मार्ग एक चमकीले शंकु के रूप में दिखायी देता है। टिण्डल प्रभाव कहते हैं और चमकीले शंकु को टिण्डल शंकु कहते हैं। कारण-कोलॉइडी कण प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करके स्वयं दीप्त हो जाते हैं और फिर अवशोषित प्रकाश को छोटी-छोटी तरंगदैर्घ्य की किरणों के रूप में प्रकीर्णित होने लगते हैं। प्रकाश का यह प्रकीर्णन प्रकाश के मार्ग के लम्बवत् होता है। इसलिए प्रकाश के मार्ग को समकोण पर देखने पर यह दिखायी देता है। टिण्डल प्रभाव उस अवस्था में अधिक होता है जब दो प्रावस्थाओं के अपवर्तनांकों में अन्तर अधिक होता है। उदाहरण-(1) अन्धेरे कमरे में किसी रोशनदान से आते हुए प्रकाश मार्ग में धूल के कण तैरते हुए दिखायी देते हैं, (2) टिण्डल प्रभाव के कारण ही आकाश व समुद्र नीले रंग के दिखायी देते हैं।
(ii) ब्राउनी गति–
“कोलॉइडी कणों की निरन्तर और तीव्र अनियमित टेढ़ी-मेढ़ी (zig- Zag) गति ब्राउनी गति कहलाती है।” इस प्रकार की गति को सबसे पहले अंग्रेज वनस्पतिशास्त्री रॉबर्ट ब्राउन ने सन् 1827 में अति सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा था, इसलिए इसे ब्राउनी गति कहते हैं। बीनर के अनुसार, यह गति टेडी-मेड़ी गति कोलॉइडी कणों के परिक्षेपण माध्यम के अणु के साथ असमान रूप से टकराने से उत्पन्न होती है। उदाहरण-ब्राउनी गति के कारण, रोशनदान से आते हुए प्रकाश मार्ग में धल – कण तैरते हुए दिखायी देते हैं।
वैद्युत कण संचलन –
विद्युत् क्षेत्र के प्रभाव में कोलॉइडी कणों का अभिगमन वैद्युत कण संचलन कहलाता है। इसके द्वारा कोलाइडी कणों पर उपस्थित आवेश की प्रकृति ज्ञात की जाती है।
स्कंदन –
कोलॉइडी कणों के अवक्षेपण की क्रिया स्कंदन कहलाती है। इसके लिए कोलॉइडी विलयन में वैद्युत-अपघट्य मिलाते हैं अथवा दो विपरीत आवेश वाले कोलॉइडी विलयनो का मिला देते हैं।
हार्डी–शल्जे नियम –
स्कंदन क्रिया में वैद्युत अपघट्य की स्कंदन क्षमता आयन पर उपस्थित आवेश के परिमाण पर निर्भर करती है आयन पर जितना अधिक आवेश होता है उसकी स्कंदन क्षमता उतनी ही अधिक होती है।
स्वर्ण संख्या –
यह किसी रक्षी कोलॉइड की मिलीग्राम में वह मात्रा है जो मानक गोल्ड हाइड्रोसॉल के 10 ml में डाले जाने पर इसका एक1ml, 10% NaCl होने वाले स्कंदन को रोकता है।
अधिशोषण के फ्राउण्डलिक समतापी क्या हैं ?
उत्तर-फ्राउण्डलिक ने ठोस अधिशोषक के इकाई द्रव्यमान द्वारा एक निश्चित ताप पर अधिशोषित गैस की मात्रा एवं दाब के मध्य निम्न प्रायोगिक सम्बन्ध दिया जहाँ p दाब पर m द्रव्यमान के अधिशोषक द्वारा अधिशोषित गैस का द्रव्यमान x है,k तथा n किसी विशिष्ट अधिशोषक तथा गैस के लिए स्थिरांक हैं। – वp के मध्य खींचा गया ग्राफ फ्राउण्डलिक समतापी कहलाता है।
पायस –
यह एक द्रव-द्रव कोलॉइड निकाय है। इसमें एक द्रव दूसरे द्रव परिक्षिप्त रहता है अर्थात् परिक्षिप्त प्रावस्था व परिक्षेपण माध्यम दोनों ही द्रव अवस्था में पाये जाते हैं, जैसे-दूध आदि।
कोलॉइड के अनुप्रयोग
- 1.आषधियाँ-
- साबुन से कपड़े साफ करना-
- जल का शुद्ध करना
- धुआँ अवक्षेपण
- नदियों के डेल्टे में
- आकाश का नीला दिखायी पड़ना
- उद्योग में-
कोलॉइडी विलयन aapko achhi tarah se samajh aa gya hai https://akashlectureonline.com/विलयन-की-परिभाषा/ https://akashlectureonline.com/क्रिस्टल-तन्त्र-कक्षा-12/