आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का जन्म सन 1964 में श्रावण शुक्ल एकादशी को भारत के उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ था इनके पिताजी पंडित अनमोल द्विवेदी एक संस्कृत के विद्वान थे।ब्राह्मण कुल में जन्मे थे जिसके कारण संस्कृत में निपुण थे क्योंकि इन्होंने पंडित होने के लिए संस्कृत की पढ़ाई की थी इन के बचपन का नाम बैद्यनाथ द्विवेदी था एवं इनका विवाह भगवती देवी से सन 1927 में हुआ आचार्य प्रसाद जी को ब्रेन ट्यूमर था जिसके कारण उनका निधन हो गया था उन्होंने एक लंबी आयु प्राप्त की 72 वर्ष की आयु में इनका निधन हो गया अगर इनका साहित्यिक व्यक्तित्व देखें तो बहुत विलक्षण था
द्विवेदी जी को संस्कृत विषय में ज्योतिष आचार्य की उपाधि से सम्मानित किया गया और उन्होंने इंटर की परीक्षा भी पास की हजारी प्रसाद द्विवेदी एक निबंधकार उपन्यासकार आलोचक एवं संपादक थे
नाम | हजारी प्रसाद द्विवेदी (Hazari Prasad Dwivedi) |
जन्म तिथि और स्थान | 19 अगस्त 1907 बलिया, उत्तर प्रदेश, भारत |
मृत्यु की तिथि और स्थान | 19 मई 1979 दिल्ली, भारत |
व्यवसाय | लेखक, आलोचक, प्राध्यापक (writer, critic, professor) |
हिंदी साहित्य का काल | आधुनिक काल |
हिंदी साहित्य विधा | हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार (Hindi essayist, critic and novelist) |
बचपन का नाम | वैद्यनाथ द्विवेदी (Vaidyanath Dwivedi) |
माता पिता का नाम | अनमोल द्विवेदी, ज्योतिष्मती |
सम्मान/ पुरस्कार | 1. साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन 1957 में पद्म भूषण से सम्मानित 2. आलोक पर्व निबंध के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 3. लखनऊ विश्वविद्यालय ने इनको Doctor of Letters (डॉक्टर ऑफ लेटर्स) का सम्मान दिया। |
पत्नी का नाम | भगवती देवी |
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की भाषा परमार्जित खड़ी बोली है। हजारी जी ने अपनी रचनाओं में सही समय पर सही भाषा शैली का प्रयोग किया है। हजारी जी की भाषा सरल थी और वे भाषा के प्रकांड पंडित थे। आचार्य जी ने निबन्धों में उर्दू, फ़ारसी और अंग्रेजी और ग्रामीण शब्दों के साथ साथ संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का प्रयोग भी किया था।
इसके आलावा उन्होंने मुहावरेदार भाषा का प्रयोग भी किया था। आचार्य हजारी प्रसाद जी ने गवेषणात्मक, आलोचनात्मक, भावात्मक, हास्य व्यंग्यात्मक और उद्दरण शैली का प्रयोग किया था।
द्विवेदी जी की वर्णनात्मक शैली अत्यंत स्वाभाविक एवं रोचक है। इस शैली में हिंदी के शब्दों की प्रधानता है, इसके साथ ही संस्कृत के तत्सम और उर्दू के प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। वाक्य अपेक्षाकृत बड़े हैं। द्विवेदी जी के निबंधों में व्यंग्यात्मक शैली का बहुत ही सफल और सुंदर प्रयोग हुआ है। इस शैली में उर्दू, फारसी आदि के शब्दों का भी प्रयोग देखने को मिलता है।
डॉ० हजारीप्रसाद द्विवेदी की कृतियाँ हिन्दी-साहित्य की श्रेष्ठ निधि हैं। उनके निबन्धों एवं आलोचनाओं में उच्चकोटि की विचारात्मक क्षमता के दर्शन होते हैं। हिन्दी-साहित्य-जगत में उन्हें एक विद्वान् समालोचक, निबन्धकार एवं आत्मकथा-लेखक के रूप में ख्याति प्राप्त है। वस्तुत: वे एक महान् साहित्यकार थे। आधुनिक युग के गद्यकारों में उनका विशिष्ट स्थान है।
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के द्वारा कई सारी रचनाएं की गई जिसमें से उन्होंने कई सारे निबंध लिखे निबंध के विषय पर भारतीय संस्कृति इतिहास ज्योतिषी साहित्य और संप्रदायों का अध्ययन किया तथा उन पर लेख लिखे इनकी वर्गीकरण की दृष्टि के अनुसार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने बहुत सारे आलोचनात्मक विचारात्मक लेख लिखें साहित्य संस्कृत की जिनमें स्पष्ट झलक देखने के लिए मिलती है |
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कल्पतरु
19 अगस्त 1907 बलिया, उत्तर प्रदेश, भारत
19 मई 1979 दिल्ली, भारत
भगवती देवी
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