सतह रसायन | अधिशोषण और अवशोषण में अन्तर | उत्प्रेरण
सतह रसायन (Surface Chemistry)
यह रसायन शास्त्र की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत ठोसों के पृष्ठ तल (surface) के गुणों का अध्ययन किया जाता है। दो पावस्थाओं को पृथक् करने वाली परिसीमा को सतह कहते हैं।
अधिशोषणऔरअवशोषणमेंअन्तर
अधिशोषण (Adsorption)
अवशोषण (Absorption)
1. यह एक पृष्ठीय प्रक्रिया है। 2. द्रव या गैस की ठोस पदार्थ की सतह पर सान्द्रता अन्य स्थानों से अधिक होती है।3. अधिशोषण की गति शुरू में अधिक और बाद में मंद होती जाती है।
1. यह सम्पूर्ण पदार्थ में समान रूप से होने वाली प्रक्रिया है। 2. इसमें एक पदार्थ के अणु दूसरे पदार्थ के स्थूल तथा सतह में समान रूप से वितरित होते हैं। 3. अवशोषण समान वेग के साथ होता है।
अधिशोषण में किसी अधिशोषक के केवल पृष्ठ के कण ही सक्रिय भाग लेते हैं। इन कणों में विभिन्न प्रकार के असन्तुलित या अप्रयुक्त बल, जैसे-वाण्डर वाल्स बल (vander Waals’ Forces) तथा रासायनिक आबन्ध बल (chemical bond forces) होते हैं। जैसे ही कोई ठोस दो नवीन सतहों को उत्पन्न करने के लिए दो भागों में खण्डित किया जाता है, ये बल उत्पन्न हो जाते हैं। प्रत्येक सम्पूर्ण टुकड़े के भीतरी भागों में प्रत्येक जगह उपलब्ध बल घटक कणों को परस्पर बाँधने में प्रयुक्त होते हैं। अत: नवीन सतह उत्पन्न करने पर, कुछ बल गैसों तथा विलयनों के कणों पर क्रिया करके आकर्षित करने के लिए तथा उनको सतह पर रोकने के लिए स्वतन्त्र रह जाते हैं। इस प्रकार अधिशोषण प्रक्रम घटित होता है।
भौतिकएवंरासायनिकअधिशोषणमेंअन्तर–
भौतिक अधिशोषण (वाण्डर वाल्स अधिशोषण)
रासायनिक अधिशोषण (लेंगम्यूर अधिशोषण)
1.यह वाण्डर वाल्स बलों के कारण होता है। अधिशोष्य और अधिशोषक के मध्य दुर्बल वाण्डर वाल्स बल कार्य करते हैं। निम्न अधिशोषण ऊर्जा (20-40 kJ mol-1) होती है। 2. सामान्यत: ये निम्न ताप पर होता है तथा ताप बढ़ाने पर घटता है। 3. उत्क्रमणीय प्रक्रम 4 अधिशोषण की मात्रा गैस के द्रवण की सहजता पर निर्भर करती है। 5. इसकी प्रकृति विशिष्ट (specific) नहीं होती है। 6. बहुअणुक (multi-molecular) स्तरें बनाता है। 7. अधिशोषण की दर अधिशोषक के दाब में वृद्धि के साथ बढ़ती है।
1. यह रासायनिक बन्ध बनने के कारण होता है। अधिशोष्य और अधिशोषक के मध्य प्रबल रासायनिक बल कार्य करते हैं। उच्च अधिशोषण ऊर्जा (200-400 kJ mol-1) होती है। 2. उच्च ताप पर होता है। 3. अनुत्क्रमणीय प्रक्रम 4. अधिशोषण की मात्रा और द्रवण की सहजता में कोई सह-सम्बन्ध नहीं। 5.इसकी प्रकृति विशिष्ट होती है 6. एक-अणु (mono-molecular) स्तर बनाता है। 7. अधिशोषण में वृद्धि की दर दाब बढ़ने के साथ क्रमिक रूप से घटती है।
अधिशोषणकेअनुप्रयोग– 1 चीनी को रंगहीन करने में (In Decolorising the Sugar) 2 विषमांगी उत्प्रेरण में (In Heterogeneous Catalysi)
गैस मास्क में
निर्वात् उत्पन्न करने में (In Producing Vacuum)
क्रोमैटोग्राफी में । (In Chromatography)-
पेण्ट उद्योग में । (In Paint Industry)
अधिशोषण सूचक में (In Adsorption Indicators)-
पेट्रोलियम परिष्करण में (In Petroleum Refining)
वातावरण की नमी के शुष्कीकरण में (In Drying Moisture of Atmosphere)
ठोसोंकेद्वारागैसोंकेअधिशोषणकोप्रभावितकरनेवालेकारक (Factors affecting Adsorption of Gases by Solids)
अधिशोषककीप्रकृतिएवंपृष्ठक्षेत्रफल (Nature and Surface Area of the Adsorbent)-ताप पर एक ही गैस विभिन्न ठोसों पर भिन्न-भिन्न परिमाण में अधिशोषित होती है। अधिशोषक का पृष्ठ क्षेत्रफल जितना अधिक होता है वह गैसों के उतने अधिक आयतन को अधिशोषित करता है। चारकोल तथा सिलिका जैल उत्तम कोटि के अधिशोषक होते हैं, .
अधिशोषितहोनेवालीगैसोंकीप्रकृति (Nature of the Adsorbent Gases)-एक ही अधिशोषक पर विभिन्न गैसें भिन्न-भिन्न मात्रा में अधिशोषित होती हैं।
उत्प्रेरण[CATALYSIS)-
बर्जीलियस ने सन् 1835 में यह देखा कि कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं, जो स्वयं तो क्रिया में भाग नहीं लेते हैं, किन्तु वे अभिक्रिया के वेग को बढ़ा देते हैं ऐसे पदार्थ उत्प्रेरक (catalyst) कहलाते हैं और उत्प्रेरक की उपस्थिति में अभिक्रिया के वेग परिवर्तन को उत्प्रेरण (catalysis) कहते हैं। ओस्टवाल्डकेअनसार, “वह पदार्थ जो अपनी उपस्थिति मात्र से किसी रासायनिक क्रिया के वेग को घटा या बढ़ा देता है और स्वयं क्रिया के अन्त में, भार व रासायनिक दृष्टि (बनावट) सा अपरिवर्तित रहता है, उत्प्रेरक कहलाता है और इस प्रकार की अभिक्रिया उत्प्रेरण कहलाती है।”
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