भूगोल एक विषय के रूप में (Geography as a Subject)
हम पर जन्म से मृत्युपर्यन्त भूगोल का प्रभाव बना रहता है । हमारे जीवन का प्रत्येक पहलू भूगोल एवं उसके विभिन्न घटकों से जुड़ा है। ब्रह्माण्ड बहुआयामी रूप से अनेकानेक रहस्यों से भरा है। ब्रह्माण्ड जो सम्पूर्णता का द्योतक है, जिसका मानव को प्रारम्भिक ज्ञान भी सही रूप में प्राप्त नहीं हो पाया है ।
ब्रह्माण्ड में अरबों आकाशगंगाएँ और निहारिकाएँ, उनमें अरबों तारे और तारों से जुड़े अरबों ग्रह, धूल कण एवं गैस के बादल, गुरूत्वाकर्षण एवं अन्य बलों का प्रभाव एक रहस्यमय चित्र प्रस्तुत करता है । ये ब्रह्माण्ड रूपी रहस्यमयी चित्र कब, कैसे और किसके द्वारा निर्मित किया गया है। इसका रूप, स्वरूप, आकार और विस्तार कितना है, इन प्रश्नों के उत्तर मनुष्य प्रारम्भ से ढूँढता रहा हैं ।
इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हमारी आकाश गंगा या मंदाकिनी सर्पिला कार ‘दुग्ध मेखला ‘ ( Milky way) है, जिसमें असंख्य तारा समूह हैं । उनमें से एक हमारा ‘सौर परिवार’ (Solar System) है, जिसमें सूर्य कुछ ग्रह, उपग्रह, उल्कापिण्ड, क्षुद्रग्रह, धूमकेतू आदि स्थित हैं । वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर ब्रह्माण्ड की आयु लगभग 14 अरब वर्ष, सौर मण्डल की आयु 10 अरब वर्ष एवं हमारी पृथ्वी की आयु 4.6 अरब वर्ष बतायी गई है।
पृथ्वी पर पहले जल में सूक्ष्म वनस्पति एवं जीवों ने जन्म लिया, उसके पश्चात वायुमण्डल संगठित होता गया और जीवनदायिनी ऑक्सीजन गैस बढ़ती हुई 21% तक पहुँची, तत्पश्चात शनै- शनै पूरी पृथ्वी पर वनस्पति एवं जीव-जन्तुओं का विस्तार हुआ । |
पृथ्वी पर मानव का आगमन सबसे बाद में हुआ, मानव का जन्म पृथ्वी पर लगभग 20 लाख वर्ष पूर्व हुआ । जंगलों में रहता हुआ मानव सभ्यता की दहलीज पार कर, विकास के पथ पर बढ़ता हुआ वर्तमान स्थिति में पहुँचा है । इस दौर में मानव ने अग्नि एवं पहिये के प्रारम्भिक आविष्कार किये, जो मानव विकास में मील का पत्थर सिद्ध हुए ।
लोबैक के अनुसार भूगोल की परिभाषा
भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है। लोबैक के अनुसार जीव और उसके भौतिक वातावरण के सम्बंधों का अध्ययन भूगोल की विषय वस्तु है तथा भौतिक वातावरण का अध्ययन भौतिक भूगोल है ।
“The subject matter of geography may be defined as the study of the relationship existing between life and physical environment. The study of physical environment alone constitutes physiography.” -Lobeck
भौतिक भूगोल का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Physical Geography)—
फिलिप के अनुसार भूगोल की परिभाषा
इसमें कोई सन्देह नहीं है कि भौतिक भूगोल, भूगोल रूपी वृहद् विज्ञान की एक महत्वपूर्ण एवम् आधारभूत शाखा है । विद्वान फिलिप (Philip ) के शब्दों में ‘भूगोल एक वृक्ष है जिसकी जड़ें भौतिक भूगोल की मिट्टी में स्थित है तथा इसकी शाखाएँ मानवीय, क्रिया-कलाप के प्रत्येक पक्ष का अध्ययन करती है (The tree of geography has its roots in the soil of physical geography. Its branches cover every phase of human activity.)
अन्य विद्वानों ने भी भौतिक वातावरण के अध्ययन को भौतिक भूगोल की संज्ञा देते हुए पृथ्वीतल के धरातलीय स्वरूपों, सागरों एवम् महासागरों, जैव मण्डल तथा वायुमण्डल के अध्ययन को भौतिक भूगोल के अन्तर्गत सम्मिलित किया है। यद्यपि वर्तमान में मानवीय क्रिया-कलापों के पक्षों के अध्ययन पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा है, किन्तु इससे भौतिक भूगोल के अध्ययन का महत्व कम नहीं हो जाता है । इसी कारण भौतिक भूगोल का प्रारंभिक एवम् सारभूत ज्ञान, भूगोल की किसी भी शाखा के अध्ययन में आवश्यक है। प्रसिद्ध विद्वान स्ट्रालर ( Strahler) के अनुसार भौतिक भूगोल अनेक भूमि विज्ञानों ( Earth Sciences) का समन्वित अध्ययन है, जो मानव के वातावरण का अध्ययन करते हैं ।
पृथ्वी सतह पर धरातल एवम् स्थलाकृतियाँ सर्वत्र समान नहीं है तथा स्थलमण्डल का विस्तार भी सर्वत्र नहीं है। जलमण्डल का विस्तार स्थलमण्डल से लगभग ढाई गुना अधिक होने के साथ ही वायुमण्डल का आवरण भी पृथ्वी के चारों ओर है । उक्त तीनों मण्डल प्राकृतिक वातावरण के अभिन्न अंग होने के साथ ही परस्पर एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं। यह प्राकृतिक वातावरण जैव मण्डल को प्रभावित करते हुए उसके साथ अन्तर्क्रिया करता है तथा इसका अध्ययन भौतिक भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है ।
यद्यपि सभी भूगोलवेत्ता भौतिक भूगोल के अध्ययन में जैवमण्डल को सम्मिलित करने के सम्बंध में एकमत नहीं हैं, किन्तु अब अधिकांश भूगोलवेत्ता भौतिक भूगोल की एक प्रमुख शाखा के रूप में वातावरण के तत्वों के स्थानिक प्रतिरूपों के प्रादेशिक प्रारूपों के कारणों की व्याख्या भी करता है, इसी के साथ स्थान तथा समय परिवेश में पर्यावरणीय तत्वों के परिवर्तनों की व्याख्या तथा उसके कारणों का अध्ययन करता है । अतः स्पष्ट है कि पृथ्वी पर स्थित जैव मण्डल भौतिक भूगोल के अध्ययन का मूल केन्द्र है जिसमें वायु, स्थल तथा जल का आवरण है, जिसके अन्तर्गत वनस्पति तथा प्राणी जगत का जीवन संभव हो पाता है ।
सही अर्थों में भौतिक भूगोल का जन्म पृथ्वी की उत्पत्ति के साथ ही हो गया था जबकि मानव भूगोल की शाखा का जन्म मानव के उद्भव के बाद ही हुआ । अतः कहा जा सकता है कि भौतिक भूगोल का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि स्वयं भूगोल विषय का है । भूगोल तथा भौतिक भूगोल दोनों एक दूसरे के पूरक है, क्योंकि भौतिक भूगोल में मुख्यतः पृथ्वी का ही अध्ययन किया जाता है तथा भूगोल का सम्बंध भी पृथ्वी से ही है।
फिंच और ट्रिवार्था के अनुसार
फिंच और ट्रिवार्था ने भूगोल को भूतल का विज्ञान (Science of Earth Surface) कहा है, जबकि आर्थर होम्स ने मानव के निवास-स्थल का अध्ययन (Study of man’s Habitat ) कहा है । अतः स्पष्ट है कि भौतिक भूगोल का सम्बंध विस्तृत और व्यापक है। वर्तमान समय में भौतिक भूगोल के अन्तर्गत भौतिक वातावरण के क्रमबद्ध अध्ययन के साथ ही साथ भौतिक वातावरण तथा मानव के मध्य पारस्परिक क्रियाओं का भी अध्ययन किया जाने लगा है ।
सारांश रूप में कहा जा सकता है कि स्थलमण्डल, जल मण्डल, वायुमण्डल एवम् जैवमण्डल के क्रमबद्ध अध्ययन तथा इनके मध्य पारस्परिक क्रियाओं एवम् अन्तर्सम्बंधों को भौतिक भूगोल के अध्ययन के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है।
भौतिक भूगोल के अन्तर्गत स्थलमण्डल, जलमण्डल एवम् वायुमण्डल तीनों अंगों के प्राकृतिक स्वरूपों के अन्तर्सम्बंधों एवम् उनसे उत्पन्न भूतल की प्राकृतिक भिन्नताओं की व्याख्या की जाती है। यद्यपि कुछ भूगोलवेत्ता भौतिक भूगोल को केवल प्राकृतिक वातावरण का अध्ययन मानते हैं । कुछ भूगोलवेत्ताओं ने भौतिक भूगोल को इस प्रकार परिभाषित किया है-
कान्ट के अनुसार भूगोल की परिभाषा
कान्ट के अनुसार “भौतिक भूगोल विश्व के ज्ञान का प्रथम भाग है एवम् निश्चित ही विश्व का वस्तुबोध को समझने के है लिये एक प्राथमिक आवश्यकता है ।”
“Physical Geography is the first part of knowledge of world, indeed it is essential preliminary for understanding our perceptions of the world.”
पियरे बाइरट के अनुसार भूगोल की परिभाषा
पियरे बाइरट के अनुसार – “मानव सभ्यता से अप्रभावित पृथ्वी के दृश्य प्राकृतिक धरातल का अध्ययन भौतिक भूगोल है ।”
“Physical Geography is the study of visible natural surface…..before the intervention of mankind……” Pierre Byrot.”
आर्थर होम्स के अनुसार भौतिक भूगोल परिभाषा
आर्थर होम्स के अनुसार – “भौतिक पर्यावरण का अध्ययन ही स्वयं में भौतिक भूगोल है, जिसके अन्तर्गत स्थलाकृति (भू-आकृति विज्ञान), सागरों व महासागरों (समुद्र विज्ञान ) एवम् वायुमण्डल (मौसम व जलवायु विज्ञान) का अध्ययन सम्मिलित है ।
“The study of the physical environment by itself is physical geography, which includes consideration of the surface relief of the globe (Geomorphology), of the seas and oceans (Oceanography) and of the air (Meteorology and Climatology). “A. Holmes
आर्थर होम्स ने उपरोक्त परिभाषा द्वारा मोटे रूप में भौतिक भूगोल के तीन घटक माने हैं, जो स्थलमण्डल, जलमण्डल एवम् वायुमण्डल के रूप में है ।
लोबैक के अनुसार – “भौतिक वातावरण एवम् जीवन के अन्तर्सम्बंध का अध्ययन भौतिक भूगोल है । “Physical Geography is the study of the interrelationship of the physical environment and life.” A.K. Lobeck
केन के अनुसार भौतिक भूगोल की परिभाषा
केन के अनुसार भौतिक भूगोल है ।” “भौतिक वातावरण का अध्ययन ही “The study of the physical environment is called Physical Geography.” H.R. Cain ―
हैमण्ड व हॉर्न के अनुसार भौतिक भूगोल की परिभाषा
हैमण्ड व हॉर्न के अनुसार “भौतिक भूगोल प्राकृतिक घटनाओं के अध्ययन से सम्बंधित है । “The study of physical Geography deals with natural phenomena. ” Hammond & Horn.
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भौतिक एवं जैविक वातावरण के वितरण प्रारूपों एवम् अन्तर्सम्बंधों का विश्लेषणात्मक अध्ययन भौतिक भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है और इन भौतिक एवम् जैविक वातावरण के विभिन्न अवयवों एवम् उनकी अन्तर्क्रिया को भूतल भौतिक भूगोल के अन्तर्गत आधार प्रदान करता है। स्ट्रालर का मत है कि भौतिक भूगोल के अन्तर्गत विभिन्न प्राकृतिक विज्ञानों की विषय-वस्तु का उपयोग भौतिक एवम् जैविक वातावरण के अन्तर्सम्बंध को भली भांति समझने के लिये किया जाता है (चित्र 1.2 ) ।
उनके मतानुसार एक अत्यन्त सीमित परत जिसे उन्होंने जैविक परत (Life Layer) कहा है, के अन्तर्गत मानव एवम् उसके भौतिक वातावरण की अन्तर्क्रिया होती है । वायुमण्डल-स्थलमण्डल एवम् वायुमण्डल – जलमण्डल के मिलन की पतली परत का यह सम्पर्क क्षेत्र (Contact Zone) है | उनके इस सम्पर्क क्षेत्र को अन्तरापृष्ठ (Interfaces) भी कहा जा सकता है। विभिन्न भौतिक शक्तियों की गहन क्रियाऐं एवम् प्रतिक्रियाऐं उक्त सम्पर्क क्षेत्र में होती रहती हैं तथा इन क्रिया-प्रतिक्रियाओं का एवम् उनके परिणामों का वितरण अत्यन्त असमान पाया जाता है, जैविक परत की स्थानिक भिन्नता का वितरण अत्यन्त असमान पाया जाता है। उनका मानना है कि जैविक परत की स्थानिक भिन्नता का अध्ययन भौतिक भूगोल में किया जाता है । मानव भूतल पर निवास करता है तथा भौतिक वातावरण से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। अतः उसकी जिज्ञासा अपने भौतिक वातावरण एवम् उसकी स्थानिक भिन्नताओं को अधिकाधिक समझने की प्रारम्भ से ही स्वाभाविक रूप से रही है ।