रामवृक्ष बेनीपुरी जी का जीवन परिचय, रचनाएँ, भाषा शैली, हिंदी साहित्य में स्थान-

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रामवृक्ष बेनीपुरी जी का जीवन परिचय-

जीवन परिचय-

जीवन परिचय से आशय किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व  की वह परिभाषा है, जो उसके बारे में सामने बाले को जानकारी देता है | जीवन परिचय में व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक होने बलि सभी घटनाओ का वर्णन होता है | व्यक्ति का जन्म स्थान ,नाम ,पता ,परिवार की जानकारी ,आदि की जानकारी होती है साथ में व्यक्ति ने अपने बचपन की पढाई किन हालातो में की और किन संघर्षों से निकलने के बाद उसने कौन कौन सी उपलब्धिया हासिल की और उसके द्वारा लिखित पुस्तको की जानकारी होती है |

नमस्कार दोस्तों , स्वागत है आपका अपनी वेबसाइट में आज की इस पोस्ट में हम आपको लेकर आये है जीवन परिचय के बारे में जानकारिया |

दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम पढने वाले है रामवृक्ष बेनीपुरी जी के बारे में ,दोस्तों आप किसी भी क्लास में हो या फिर कॉलेज में हो ,किसी भी बोर्ड से हो किसी भी एग्जाम में जहाँ पर भी रामवृक्ष बेनीपुरी जी का जीवन परिचय आता है आप आज की पोस्ट में बताये गए इस जीवन परिचय को लिख सकते है |

जीवन परिचय को किस तरह से लिखना है बो भी में आपको व्यस्थित तरीके से बताऊंगा और साथ में  रामवृक्ष बेनीपुरी जी के बारे में थोडा विस्तृत जानेगे | चलिए शुरू करते है हम इस लेख को अगर ये लेख आपको अच्छा लगे तों इसे दोस्तों के साथ जरुर शेयर करे |

जन्म स्थान – स्वतन्त्रता संग्राम के अमर सेनानी श्री रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 1902 में बिहार राज्य के  मुजफ्फरपुर जिले के अंतर्गत बेनीपुर नामक गाँव में हुआ था।

” बेनीपुरी जी का जन्म एक ऐसे गरीब किसान परिवार में हुआ था, जिसका प्रत्येक सदस्य कड़ी मेहनत करके भी   साधारण ग्रस्त जीवन नहीं व्यतीत कर सकता था।

नाम- इनके बचपन का नाम ‘रामवृक्ष’ था | ‘रामवृक्ष’ जी अपने माता पिता की एकमात्र संतान थे |

“उपनाम-

आचार्य रामलोचन शरण, ‘रामवृक्ष’ जी के बारे में लिखते है कि -बेनीपुरी पहले रामवृक्ष शर्मा लिखते थे और रामलोचन ने ही उन्हें बेनीपुरी लिखने के लिए कहा था बेनीपुरी जी के पूर्वज अपने नाम के पीछे शर्मा, लिखा करते थे। अतः में इन्होंने अपने गांव  बेनीपुर से  उपनाम रख दिया |

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बेनीपुरी जी का बचपन

बचपन में इन्हें सब बबुआ कहकर बुलाते थे मां के निधन के पश्चात पिताजी ने दूसरी शादी कर ली रामवृक्ष के प्रारम्भिक दिन अपने गाँव बेनीपुरी और बंशीपचड़ा में बीते। इनकी प्राथमिक शिक्षा बंशीपचड़ा गाव में हुई |

विवाह – बेनीपुरी जी का विवाह 16 वर्ष की उम्र में सीतामढ़ी जिले के मुसहरी गांव  के श्री महादेव शरण सिंह की अनपढ़ कन्याकुमारी से हुआ था |

‘रामवृक्ष’ बेनीपुरी जी की पत्नी का नाम उमारानी था वो अपनी पत्नी के बारे में लिखते है कि – मेरी देशभक्ति का जितना दिया था उसे रानी ने अकेले ही पी लिया मुझे तो सिर्फ अमृत ही मिला है

शिक्षा-

अपनी प्राथमिक शिक्षा उन्होंने गाँव से ही पूरी की बाद में वह मुज़फ़्फ़रपुर  चले गए जहा से उन्होंने कॉलेज की पढाई पूरी की

पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य- पत्रकारिता को लेकर उनके मान में बहुत उमंगें थी खासकर देशभक्ति को लेकर , 1921 में बेनीपुरी जी ने पत्रकारिता में पहला कदम रखा

बेनीपुरी जी की रचनाएँ-

रामवृक्ष बेनीपुरी जी की रचनाये राष्ट्रीय भावना से ओत-पोत है | उन्होंने हर एक क्षेत्र में अपना प्रकाश डाला ,

उनके द्वारा लिखे गये रेखाचित्र- माटी की मूरतें, लालतारा,संस्मरण – जंजीरें और दीवारें, मील के पत्थर, उनके द्वारा चिता के फूल रचना एक कहानी है ,और भी अन्य रचनाये है जैसे –  महाराणा प्रताप,  विद्यापति पदावली, तरुण भारती, कर्मवीर, किसान मित्र, नई धारा, गेहूँ और गुलाब,  पैरों में पंख बांधकर आदि |

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निधन

रामवृक्ष बेनीपुरी जी का निधन 7 सितम्बर, 1968 को बिहार में हुआ था

अभी तक हमने रामवृक्ष बेनीपुरी जी के बारे में बहुत सारी जानकारिया प्राप्त की , अब हम एक बार फिर से रामवृक्ष बेनीपुरी जी का जीवन परिचय लिखेगे जो परीक्षा की द्रष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण होगा –

किसी भी परीक्षा में अगर रामवृक्ष बेनीपुरी जी का जीवन परिचय लिखने को आता है तों आप इसे लिखे –

रचनाएँ –

गेहूँ और गुलाब, चिता के फूल, कर्मवीर

भाषा शैली-

भाषा- बेनीपुरी जी की भाषा सरल,सहज,सुबोध,और सजीवता से युक्त है | इनकी रचनाओ में तत्सम, तद्भव, देशज, उर्दू, फारसी आदि शब्दों का सटीक प्रयोग देखने को मिलता है इसी वजह से  उन्हें ‘शब्दों का जादूगर’ भी कहा जाता है। इन्होने अपनी रचनाओं में मुहावरों तथा कहावतों का भी खुलकर प्रयोग किया है, जिससे उनकी भाषा जीवंत हो उठी है।

शैली

बेनीपुरी जी की रचनाओं में, वर्णनात्मक शैली, भावात्मक शैली, शब्दचित्रात्मक शैली, प्रतीकात्मक शैली देखने को मिलती है इनकी वर्णनात्मक शैली बड़ी सजीव, चित्रोपम, तथा रोचक है। इन्होने जीवनी, कहानी, यात्रावृत्त निबंधों और संस्मरणों लिखते समय इस शैली का प्रयोग किया है बेनीपुरी जी ने सीधे-सीधे बात को न कहकर उसे प्रतीकों के माध्यम से ही व्यक्त किया है जिसे हम उनकी रचना गेहूँ और गुलाब में देख सकते है जिससे पता चलता है कि इनकी शैली प्रतीकात्मक शैली भी है

हिंदी साहित्य में स्थान-

बेनीपुरी जी का हिंदी साहित्य में उच्च कोटि का स्थान रहा है बेनीपुरी जी को ‘शब्दों का जादूगर’ के साथ -साथ भाषा के सम्राट भी कहा जाता है अपनी अमूल्य रचनाओ के कारण वे हिंदी साहित्य में स्मरणीय साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

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