द्रव-स्नेही तथा द्रव-विरोधी कोलॉइडों में अन्तर | कोलॉइडी विलयन बनाने की विधियाँ

द्रवस्नेही तथा द्रवविरोधी कोलॉइडों में अन्तर

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गुण द्रव-स्नेही कोलॉइड द्रव-विरोधी कोलॉइड
कणों की प्रकृति बड़े-बड़े अणु कणों के रूप में रहते हैं। इनके कण छोटे-छोटे अणुओं के परस्पर जुड़ने से बनते हैं।
कोलॉइडी बनाने की विधि विलायक में घोलने से बनते हैं। विशेष विधियाँ प्रयुक्त होती हैं।
श्यानता इनकी श्यानता परिक्षेपण माध्यम से अधिक होती है। इनकी श्यानता परिक्षेपण माध्यम के बराबर होती है।
स्थायित्व अधिक स्थायी होते हैं। कम स्थायी होते हैं।
कणों की दृश्यता अति सूक्ष्मदर्शी से सरलता से दिखायी नहीं पड़ते हैं। अति सूक्ष्मदर्शी से सुगमता से दिखायी पड़ते हैं
आवेश इन कणों पर धन, ऋण या शून्य आवेश हो सकता है इन कणों पर धन या ऋण आवेश होता है।
.विद्युतक्षेत्र में कणों का अभिगमन किसी भी दिशा में हो सकता है अथवा बिलकुल नहीं होता केवल एक ही दिशा में होता है।
इन्हें उत्क्रमणीय कोलॉइड कहते हैं। इन्हें अनुत्क्रमणीय कोलॉइड भी कहते हैं।

(3) परिक्षिप्त प्रावस्था के कणों का प्रकार

  (क) बहुआण्विक कोलॉइड बहु-आण्विक कोलॉइडी विलयनों में, कोलॉइडी कण 10 A से कम व्यास के परमाणुओं या लघु अणुओं के समहों से बने होते हैं। इनमें अणु या परमाणु परस्पर वाण्डर वाल्स बल द्वारा बँधे रहते हैं। उदाहरणार्थ, गोल्ड सॉल में कोलॉइडी कण गोल्ड के अनेक परमाणुओं से बने विभिन्न आकार के कण होते हैं। सल्फर सॉल में अनेक S अणु परस्पर वाण्डर वाल्स बलों द्वारा बंधे रहते हैं। () बृहदआण्विक कोलॉइडइस प्रकार के कोलॉइडी विलयन में परिक्षिप्त कण बृहद अणु होते हैं। इनको बृहद अणु भी कहते हैं। इनके आण्विक द्रव्यमान अत्यधिक उच्च होते हैं। ये पदार्थ सामान्यत: बहुलक होते हैं। प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले बृहद अणुओं के उदाहरण स्टार्च, सेलुलोस. प्रोटीन आदि हैं। कोलॉइड (macro-molecular colloids) कहलाते हैं। (ग) संगुणित कोलॉइड-कुछ कोलॉइड ऐसे होते हैं जो कम सान्द्रताओं में सामान्य प्रबल विद्युत अपघट्यों की तरह व्यवहार करते हैं, किन्तु उच्च सान्द्रताओं पर उनके झुण्ड बनाकर आयन कोलॉइडी अवस्था के गुण प्रदर्शित करते हैं। प्रदर्शित करते हैं। इन पुंजित कणों को मिसेल  कहते हैं। इन्हें संगणित कोलॉइड भी कहते हैं। जैसे-साबुन, संश्लेषित डिटरजेण्ट आदि।
  • मिसेल केवल एक निश्चित ताप से अधिक ताप पर बनते हैं जिसे क्राफ्ट ताप कहते हैं, एवं सान्द्रता एक निश्चित सान्द्रता से अधिक होती है, जिसे क्रान्तिक मिसेल सान्द्रता (CMC) कहते हैं। साबुनों के लिए यह CMC का मान 10-4 से 10-3 mol L-1 होता है।

कोलॉइडी विलयन (सॉल) बनाने की विधियाँ

  1. विद्यत परिक्षेपण अथवा बेडिग आर्क विधि

-इस विधि से सोना, चाँदी, प्लैटिनम, इलेक्ट्रोड ताँबा आदि धातुओं के कोलॉइडी विलयन (सॉल) बनाये जाते हैं। जिस धातु का कोलॉइडी विलयन प्राप्त उसकी दो छड़ों को बर्फ में ठण्डा किये गये पानी में डुबोकर उसमें विद्युत प्रवाहित करते हैं। विद्युत् आर्क स्थापित हो जाता है और ऊष्मा के प्रभाव से धातु की वाष्पें उत्पन्न होती हैं जो ठण्डे जल में संघनित होकर कोलॉइडी आकार के धातु के कण देती हैं। ये कोलॉइडी कण जल (परिक्षेपण माध्यम) में परिक्षेपित होकर कोलॉइडी विलयन बनाते हैं। पानी ब्रेडिग विधि द्वारा सॉल का निर्माण को सुचालक बनाने के लिए और कोलॉइडी विलयन (सॉल) को स्थायित्व प्रदान करने के लिए जल में थोड़ा-सा KOH मिला दिया जाता है।

(b) पेप्टीकरण विधि

किसी अवक्षेप को विद्युत्-अपघट्य की थोड़ी-सी मात्रा की उपस्थिति में परिक्षेपण माध्यम के साथ हिलाकर कोलॉइडी सॉल में परिवर्तित करने वाला प्रक्रम पेप्टीकरण (peptization) कहलाता है। इस प्रक्रम में प्रयुक्त विद्युत्-अपघट्य पेप्टीकारक या पेप्टीकर्मक कहलाता है। यह स्कन्दन के विपरीत क्रिया है। इस विधि में ताजे बने हुए अवक्षेप को किसी उपयुक्त विद्युत्-अपघट्य की सहायता से कोलॉइडी विलयन में परिवर्तित किया जाता है। वास्तविक विलयन तथा कोलॉइडी विलयन में अन्तर
गुण वास्तविक विलयन कोलॉइडी विलयन
1. प्रकृति समांग तन्त्र। विषमांग तन्त्र।
2 कणों का आकार   विलेय तथा विलायक के कणों का आकार समान होता है जो कि 10-9m से कम होता है। इसके कण अणु या आयन होते हैं यह बड़े अणु या अणुओं का संग्रह होता है। कोलॉइडी कणों का आकार 10-7m से 10-9 m होता है और विलायक कणों का आकार 10-9 m होता है।
3. छनना   साधारण फिल्टर पत्र या जन्तु झिल्ली में से निकल जाते हैं।   साधारण फिल्टर पत्र में से निकल जाते हैं, किन्तु जन्तु झिल्ली में से बाहर नहीं निकलते हैं।
4. अणुभार कम होता है। अधिक होता है।
5 परासरण दाब अधिक होता है। कम होता है।
6 दिखायी देना आँख या सूक्ष्मदर्शी से दिखायी नहीं देता। केवल अति सूक्ष्मदर्शी से प्रकाश बिन्दु के रूप में दिखायी देता है।
7. रंग   विलेय में उपस्थित अणु या आयन के रंग पर निर्भर करता है। रंग कणों के आकार पर निर्भर करता है
8. टिण्डल प्रभाव प्रदर्शित नहीं करता है। प्रदर्शित करता है
9. ब्राउनी गति नहीं होती है। प्रदर्शित करता है
10. स्कन्दन नहीं होता है। प्रदर्शित करता है
11. वैद्युत कण संचलन नहीं होता है। प्रदर्शित करता है
  लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type oucan
  1. अधिशोषण किसे कहते हैं? इसको प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  2. भौतिक तथा रासायनिक अधिशोषण का तुलनात्मक वर्णन कीजिए।
  3. द्रव स्नेही कोलॉइंड एवं द्रव विरोधी कोलॉइड की तुलना कीजिए।
4 उत्क्रमणीय तथा अनुत्क्रमणीय कोलॉइड में क्या अन्तर होता है ?
  1. उत्प्रेरण क्या है ? समांग तथा विषमांग उत्प्रेरण को एक-एक उदाहरण देकर समझाइए।
6 स्व-उत्प्रेरण व प्रेरित उत्प्रेरण किसे कहते हैं ? उदाहरण देकर समझाइए। 7.आकाश का रंग नीला क्यों दिखायी पड़ता है ?
  1. कोलॉइडी कणों में ऋण विद्युत् संचलन को समझाइए।
  2. मिसेल क्या होते हैं ? इसके उदाहरण एवं उपयोग लिखिए।
11.पेप्टीकरण तथा स्कन्दन को सोदाहरण समझाइए।
  1. कोलॉइडी विलयन के शोधन की विद्युत अपोहन विधि को समझाइए।
13.बहआण्विक तथा दीर्घ आण्विक कोलॉइड किसे कहते हैं? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
  1. टिण्डल प्रभाव एवं ग्राउनी गति को चित्र बनाकर समझाइये।
  2. पायस क्या है ? इसके उदाहरण एवं उपयोग दीजिए।
  3. कोलॉइटी विलयनों को परिक्षिप्त प्रावस्था एवं परिक्षेपण माध्यम की भौतिक अवस्थाओं के आधार पर कैसे वर्गीकृत किया गया
  4. वैद्युत अपोहन क्या है ?
  5. रक्षी कोलॉइड क्या है ? इनकी स्वर्ण संख्या को उदाहरण देकर समशाए।
  6. द्रव विरोधी सॉल आसानी से स्कंदित क्यों हो जाते हैं?
  7. निम्नलिखित परिस्थितियों में आप क्या प्रेक्षण करेंगे-
  8. अधिशोषण क्या होता है ? इसके प्रकार लिखिए एवं इसके पाँच प्रमुख अनुप्रयोगों का वर्णन कीजिए।
  9. द्रव-स्नेही कोलॉइड तथा द्रव-विरोधी कोलाइड में कोई पाँच अन्तर लिखिए।
  10. अधिशोषण के पाँच अनुप्रयोग लिखिए। उत्प्रेरक कितने प्रकार के होते हैं ? उपयुवत उदाहरणों सहित वर्णन कीजिए।
  11. एन्जाइम उत्प्रेरक व सामान्य उत्प्रेरक में कोई पाँच अन्तर लिखिए।
10.भौतिक एवं रासायनिक अधिशोषण में कोई पाँच अन्तर लिखिए।
  1. उत्प्रेरक क्या है ? धनात्मक उत्प्रेरक, ऋणात्मक उत्प्रेरक, स्व-उत्प्रेरक, उत्प्रेरक वर्षक एवं उत्प्रेरक विष को उदाहरण सहित समझाइए।
  2. अधिशोषण को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  3. समांगी और विषमांगी उत्प्रेरण, धनात्मक और ऋणात्मक उत्प्रेरण एवं उत्प्रेरक-वर्धक को उदाहरण देकर समझाइए