उत्प्रेरक एवं प्रकार
बर्जीलियस ( 1835 ) ke anusar कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं, जो स्वयं तो क्रिया में भाग नहीं लेते हैं, किन्तु वे अभिक्रिया के वेग को बढ़ा देते हैं ऐसे पदार्थ उत्प्रेरक कहलाते हैं |
ओस्टवाल्ड के अनसार, “वह पदार्थ जो अपनी उपस्थिति मात्र से किसी रासायनिक क्रिया के वेग को घटा या बढ़ा देता है , उत्प्रेरक कहलाता है और इस प्रकार की अभिक्रिया उत्प्रेरण कहलाती है।”
उदाहरणार्थ-(i) जब पोटैशियम क्लोरेट को गरम किया जाता है तब 620 K पर भी धीरे-धीरे ऑक्सीजन देता है, किन्तु जब इसको थोड़ा MnO, मिलाकर गरम किया जाता है, तब 620 K पर ही ऑक्सीजन तीव्र गति से पर्याप्त मात्रा में उत्पन्न होने लगती है। अभिक्रिया समाप्त होने पर मैंगनीज डाइऑक्साइड का भार और रासायनिक संघटन अपरिवर्तित रहता है। यहां MnO2 एक उत्प्रेरक का कार्य करता है।
2KCIO₃ + (Mno₂) → 2KCI + 30₂, + (Mno₂)
उत्प्रेरण के प्रकार
धनात्मक उत्प्रेरण (Positive Catalysis)-
जब कोई पदार्थ किसी अभिक्रिया के वेग को बढ़ा देता है, तो इस उत्प्रेरक
को धनात्मक उत्प्रेरक और अभिक्रिया के वेग में वृद्धि होने को धनात्मक उत्प्रेरण कहते हैं।
2KCIO₃ + Mno₂ → 2KCI + 30₂ + Mno₂
MnO – धनात्मक उत्प्रेरक
ऋणात्मक उत्प्रेरण (Negative Catalysis)
ऐसे पदार्थ जो किसी रासायनिक अभिक्रिया की गति को मन्द कर देते हैं, ऋणात्मक उत्प्रेरक कहलाते हैं और अभिक्रिया का वेग मन्द होने की क्रिया को ऋणात्मक उत्प्रेरण कहते हैं।
CHCI
3 +[0] → COCl2 + HCI (Present ऐल्कोहॉल) क्लोरोफॉर्म वायु की उपस्थिति में फॉस्जीन में अपघटित हो जाता है। इसमें ऐल्कोहॉल मिला देने पर क्लोरोफॉर्म का कास्जीन में अपघटन मन्द गति से होने लगता है। ऐल्कोहॉल यहाँ पर ऋणात्मक उत्प्रेरक का कार्य करता है।
इसी प्रकार ग्लिसरॉल का मशीनों में जंग लगने से रोकना भी ऋणात्मक उत्प्रेरण का उदाहरण है।
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स्व-उत्प्रेरण (Auto Catalysis) –
कभी-कभी ऐसा होता है कि अभिकारकों के बीच अभिक्रिया से बना कोई पदार्थ
उस अभिक्रिया के लिए उत्प्रेरक का कार्य करने लगता है। ऐसे पदार्थों को स्व-उत्प्रेरक और अभिक्रिया को स्व-उत्प्रेरण कहते हैं।
एथिल ऐसीटेट के जल-अपघटन से ऐसीटिक अम्ल बनता है जो कि स्व-उत्प्रेरक का कार्य करता है की क्रिया प्रारम्भ में मन्द गति से होती है, किन्तु बाद में तेजी से होने लगती है।
- प्रेरित उत्प्रेरण (Induced Catalysis)-जब एक रासायनिक अभिक्रिया किसी दूसरी अभिक्रिया के लिए उत्प्रेरक का कार्य करती है तो इसे प्रेरित उत्प्रेरण (induced catalysis) कहते हैं।
उत्प्रेरकों के प्रमुख गुण
- रासायनिक अभिक्रिया में उत्प्रेरक के भार व रासायनिक संघटन में कोई परिवर्तन नहीं होता है, केवल रूप में थोड़ा परिवर्तन हो सकता है
- उत्प्रेरक की अल्प मात्रा ही रासायनिक क्रिया के वेग को प्रभावित करने में पर्याप्त होती है
- उत्प्रेरक किसी रासायनिक क्रिया को प्रारम्भ नहीं करता है, केवल उसके वेग को घटा या बढ़ा सकता है।
- उत्क्रमणीय अभिक्रिया -उत्प्रेरक साम्यावस्था को नहीं बदलता है,
- विशिष्ट कार्य- प्रत्येक उत्प्रेरक का कार्य विशिष्ट होता है
- उत्प्रेरक के उत्तेजक या वद्धक -कुछ पदार्थ उत्प्रेरक की उत्प्रेरण शक्ति को उत्तेजित या तीव्र कर देते हैं किन्तु स्वयं उत्प्रेरक का कार्य नही करते ऐसे पदार्थों को उत्प्रेरक-वर्द्धक कहते हैं;
जैसे-हैबर में मोलिब्डिनम, आयरन उत्प्रेरक के साथ उत्प्रेरक-वर्द्धक का कार्य करता है।
- उत्प्रेरक के विष -कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जो अपनी उपस्थिति में उत्प्रेरक निष्क्रिय कर देते हैं अथवा उत्प्रेरक शक्ति को घटा देते हैं। ऐसे पदार्थों को उत्प्रेरक नाशक या उत्प्रेरक विष कहते हैं। जैसे-सल्फ्यूरिक अम्ल की स्पर्श (सम्पर्क) विधि में SO3 बनाने में As₂S₃ प्लैटिनाइज्ड ऐस्बेस्टॉस (उत्प्रेरक) के लिए विष का कार्य करता है |
- उत्प्रेरक उत्पाद की प्रकृति को नहीं बदल सकता-
EX-नाइट्रोजन और हाइड्रोजन के संयोग से सदैव अमोनिया बनेगी चाहे उत्प्रेरक प्रयुक्त किया जाये अथवा नहीं।
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