अर्थशास्त्र की परिभाषाएँ | एडम स्मिथ | प्रो.अल्फ्रेड मार्शल

अर्थशास्त्र की परिभाषाएँ

अर्थशास्त्र की परिभाषा के सम्बन्ध में भिन्‍न-भिन्‍न अर्थशास्त्रियों के भिन्‍न-2 विचार हैं। बारबरा वूटन का यह कथन उपर्युक्त लगता है कि, “जहाँ कहीं भी छ: अर्थशास्त्री एकत्रित होते हैं, वहाँ सात मत बन जाते हैं।* 

कीन्स ने तो यहाँ तक कहा है, कि “राजनीतिक अर्थव्यवस्था ने परिभाषाओं से अपना गला घोट लिया है।” अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से अर्थशास्त्र की परिभाषाओं को हम मुख्य चार वर्गों में विभक्त कर सकते हैं | 

परिभाषाओं का वर्गीकरण –

धन का शास्त्र मानने वाली परिभाषाएँ या धन-केन्द्रित परिभाषाएँ

प्रतिष्ठित या प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को धन का शास्त्र माना है। अर्थशास्त्र के विषय पर सर्वप्रथम एडम स्मिथ ने सन्‌ 1776 में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक लिखी थी। इस कारण इन्हें आधुनिक अर्थशास्त्र का जनक माना जाता है। अर्थशास्त्र को धन का शास्त्र मानने वाली प्रमुख परिभाषाएँ निम्नानुसार हैं

1, एडमस्मिथ -अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है।

  1. बॉकर-अर्थशास्त्र ज्ञान की वह शाखा है जो धन से सम्बन्धित है ।
  2. जे.बी.से- अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो धन या सम्पत्ति की विवेचना करता है।*.
  3. जे.एस.मिल- अर्थशास्त्र मनुष्य से सम्बन्धित धन का विज्ञान है।””

एडम स्मिथ अर्थशास्त्र के जनक क्‍यों ?

एडम स्मिथ के महान ग्रन्थ वैल्थ ऑफ नेशन्स’ के प्रकाशन ने आर्थिक विचारों में क्रान्ति उत्पन्न की। स्मिथ वास्तव में “अर्थशास्त्र के पिता’ की पदवी के पात्र हैं। उनसे पहले आर्थिक लेखकों ने कुछ फुटकर आर्थिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन तो कर दिया परन्तु वे किसी विचार प्रणाली का निर्माण नहीं का पाये थे। स्मिथ ने सही और अच्छे विचारों को चुनकर एक आर्थिक प्रणाली का निर्माण किया।

 ‘मेक क्लोच के शब्दों में “स्मिथ ने वह सब ग्रहण कर लिया जो फ़ैन्च और इंग्लिश लेखकों के विचारों में सर्वोत्तम था। उसने इन सब विचारों को एक नया रूप दिया और विभिन्‍न सिद्धान्तों को एक सूत्र में बाँधकर आर्थिक विचारों के एक सुन्दर, अनुरूप तथा तर्कशील कलेबर का निर्माण किया। स्मिथ ने बड़ी सावधानीपूर्वक पूर्व लेखकों के सिद्धान्तों को उनकी त्रुटियों से पृथक्‌ किया और उन्हें पारस्परिक सम्बन्धों के आधार पर एक समबद्ध सूत्र में बाँध किया ।

विशेषताएँ – 

धन सम्बन्धी परिभाषाओं की प्रमुख विशेषताएँ निम्नानुसार हैं-…

(1) धन ही अर्थशास्त्र के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु है – 

धन से आशय भौतिक वस्तुओं से था जैसे रुपया, पैसा, मकान, अनाज आदि। धन का अध्ययन मुख्य है और मनुष्य का अध्ययन गौण है।

(2) सभी मानवीय गुणों का आधार धन ही है- 

धन के बिना सुख-सुविधाएँ प्राप्त नहीं की जा सकती हैं, क्योंकि मानवीय सुख का आधार धन माना गया है।

(3) व्यक्तिगत समृद्धि से ही सामूहिक समृद्धि सम्भव है

प्रत्येक व्यक्ति स्वहित की दृष्टि से काम करता है। अतः व्यक्तिगत समृद्धि से ही सामूहिक समृद्धि प्राप्त होती है।

(4) निजी धन की वृद्धि से ही राष्ट्रीय धन एवं सम्पत्ति में वृद्धि होती है।

धन का शास्त्र मानने वाली परिभाषाओं की आलोचना

उक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र को धन का शास्त्र माना जाता था। मनुष्य से अधिक धन को महत्व दिया गया था। इस कारण अर्थशास्त्र को घृणा की दृष्टि से देखा जाने लगा। रस्किन, विलियम मौरिस, चार्ल्स डिकिन्स जैसे महान्‌ लेखकों ने इसे ““कंजूसों की विद्या’” ““घृणित विज्ञान” “रोटी मक्खन का विज्ञान” “कुबेर का शास्त्र ‘ जैसे नामों से पुकारा है।

इनकी प्रमुख आलोचनाएँ निम्नानुसार हैं

मनुष्य को कम महत्व दिया है – एडमस्मिथ तथा उनके अनुयायियों ने मनुष्य की अपेक्षा धन को अधिक महत्व दिया है जो उचित नहीं है, क्योंकि धन तो मनुष्य के कल्याण का एक साधन है, साध्य नहीं। इसलिए रस्किन, कार्लाइल आदि अर्थशास्त्रियों ने इसे कुबेर का शास्त्र, रोटी मक्खन का शास्त्र आदि नामों से सम्बोधित किया है।

  1. आर्थिक मनुष्य की कल्पना की गई है- प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक मनुष्य की कल्पना की है, जिसमें स्वयं के हित के अतिरिक्त अन्य कोई भावना या अनुभूति नहीं होती है, जबकि मनुष्य स्वयं के हित की पूर्ति के अलावा दया, प्रेम, धर्म, राजनीति, देश-प्रेम आदि से प्रेरित होकर भी कार्य करता है।
  1. अर्थशास्त्र का क्षेत्र संकुचित कर दिया है- अर्थशास्त्र को धन का शास्त्र कहकर इसके अध्ययन को भौतिक पदार्थों के उत्पादन और उपभोग तक ही सीमित कर दिया है।

4, धन’ का संकुचित अर्थ लगाया गया है- प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने धन का अर्थ केवल भौतिक वस्तुओं जैसेअनाज, पुस्तक, कुर्सी, मकान आदि से ही लगाया है जबकि आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने भौतिक वस्तुओं के साथ सेवाओं को भी धन माना है जो मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है तथा जिनमें सीमितता तथा परिवर्तनशीलता का गुण पाया जाता है। अतः धन का संकुचित अर्थ लेकर प्राचीन अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र को भी सीमित कर दिया है।

इस प्रकार अर्थशास्त्र की धन सम्बन्धी परिभाषाएँ अपूर्ण हैं, इसलिए उनन्‍नीसवीं शताब्दी के अन्त में अर्थशास्त्र की इन धन सम्बन्धी परिभाषाओं का परित्याग कर दिया गया है।

कल्याण का शास्त्र मानने वाली या कल्याण-केन्द्रित परिभाषाएँ-

अर्थशास्त्र को धन सम्बन्धी परिभाषाओं की संकुचित विचारधारा से बाहर निकालकर असत्य एवं घृणा से ओत-प्रोत विचारों को दूर रखते हुए इंग्लैण्ड के एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. मार्शल ने अर्थशास्त्र की परिभाषा को एक नई दिशा देकर क्रान्तिकारी परिवर्तन किया है। |

डॉ. मार्शल, पीगू आदि अर्थशास्त्री अर्थशास्त्र को भौतिक कल्याण का शास्त्र मानते हैं। प्रो.मार्शल एवं उनके अनुयायियों की मान्यता है कि धन मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य धन के लिए अर्थात्‌ धन साध्य नहीं है, बल्कि साधन मात्र है। साध्य मानवीय कल्याण है, इसकी प्राप्ति के लिए धन का सहारा लिया जाता है। इस प्रकार मार्शल तथा उनके साथी, पीगू, क्लार्क, कैनन आदि अर्थशास्त्रियों ने धन की अपेक्षा मनुष्य के भौतिक कल्याण पर अधिक बल दिया है। इस विचारधारा के समर्थक प्रमुख अर्थशास्त्रियों की परिभाषाएँ निम्नानुसार हैं।

:प्रो.अल्फ्रेड मार्शल – 

अर्थशास्त्र मनुष्य के जीवन में साधारण व्यापार सम्बन्धी क्रियाओं का अध्ययन है। यह इस बात का पता लगाता है कि मनुष्य किस प्रकार आय प्राप्त करता है और किस ग्रकार उसका उपभोग करता है….. इस प्रकार यह एक ओर धन का अध्ययन है और – दूसरी ओर जो इससे थी अधिक महत्त्वपूर्ण है, मनुष्य के अध्ययन का एक भाग है।’

अन्यत्र प्रो.मार्शल ने अपनी पुस्तक में अर्थशास्त्र की परिभाषा देते हुए लिखा है “शाजनैतिक अर्थव्यवस्था या अर्थशास्त्र जीवन के साधारण व्यवसाय के सम्बन्ध में मानव जाति का अध्ययन है, यह व्यक्तिगत एवं सामाजिक क्रियाओं के उस भाग का परीक्षण करता है जिसका विशेष सम्बन्ध जीवन में भौतिक कल्याण अधवा सुख से सम्बन्धित पदार्थों की प्राप्ति एवं उपयोग है।

 मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र एक ओर तो धन का अध्ययन है तथा दूसरी ओर उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण यह मानव के अध्ययन का एक भाग है। 

म्रार्शश के अतिरिक्त कुछ अन्य विद्वानों ने भी इसी प्रकार विचार व्यक्त किए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नानुसार हैं’ 

  1. पीगू(अर्थशास्त्र आर्थिक कल्याण का अध्ययन है। आर्थिक कल्याण साम्राजिक कल्याण का वह भाय है जो प्रत्यक्ष या प्ररोक्ष रूप से मुद्रा के द्वारा मापा जा सकता है।” 
  2. प्रो, पेन्सन“अर्थशास्त्र भौतिक छुख का विज्ञान है।
  3. प्रो. फेयर चाइल्ड(अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जिसके द्वारा भौतिक साधन सम्पन्न मनुष्य चेष्ट होकर अपनी इच्छाओं की पूर्ति के निर्मित ज्ञान प्राप्त करता है।”

5. प्रो. चेपमैन – 

अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो मनुष्य को धन कमाने और धन. व्यय करने की वाओं का अध्ययन कराता है।”’ मार्शल के समर्थक अर्थशात्त्रियों ने मार्शल द्वारा दी गई “कल्याण की दशा” का ही समर्थन किया. था धन के साथ मानव कल्याण पर अधिक बल विया है।

 

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